रवींद्र कालिया को भुलाना और भी मुश्किल / काशीनाथ सिंह

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एक पीढ़ी के चार यार थे ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, मैं और रवींद्र कालिया। चार यार के नाम से ये कुख्यात थे। 50 वर्ष की इस दोस्ती में कालिया सबसे छोटा था। खुशमिजाज, जीवंत और भावुक लेखक।

कालिया से मेरी पहली बार मुलाकात 1967 में बिहार के आरा में एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी। यह दोस्ती उसी साल इलाहाबाद में परवान चढ़ी जब वह धर्मयुग छोड़कर वहाँ आया था। रानी मंडी में उसके घर पर इलाहाबाद के लेखकों का अड्डा था। मैं भी वहाँ जाता रहता था। बाद में मैं जब भी इलाहाबाद जाता कालिया के घर पर ही रुकता था। खूब गप्पें होती थीं। फिल्मी गाने सुनते थे। हँसी-मजाक भी खूब होता था।

कालिया की कहानी 'नौ साल छोटी पत्नी' अकहानी आंदोलन के युग की शुरुआत थी। भाषा, विषय और कथ्य के मामले में यह सबसे अलग कहानी थी। इसी नाम से उसका एक कहानी संग्रह भी है। धर्मयुग में काम करते हुए कालिया ने 'काला रजिस्टर' कहानी लिखी जो काफी चर्चित हुई थी। वह सही मायने में उस पीढ़ी का स्तंभ था। इलाहाबाद में रहते हुए कालिया ने 'खुदा सही सलामत है' उपन्यास लिखा। यह हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे का सर्वोत्तम उपन्यास रहा। इसके बाद कालिया अपने संस्मरणों के कारण चर्चा में आया। पत्रिका 'हंस' में एक धारावाहिक प्रकाशित हुआ 'गालिब छुटी शराब'। यह संस्मरणों में पढ़ा जाने वाला सबसे लोकप्रिय और रोचक संस्मरण था।

वह जितना बड़ा कथाकार, संस्मरणकार था उससे भी ज्यादा बड़ा संपादक था। 90 के दशक में उसने 'वर्तमान साहित्य' के कहानी महाविशेषांक का दो भागों में संपादन किया। यह ऐतिहासिक महत्व का महाविशेषांक है। इसने कई नए कहानीकारों का साहित्य जगत से परिचय कराया, जो बाद में महत्वपूर्ण कथाकार हुए। बाद में कालिया इलाहाबाद से कलकत्ता चला गया 'वागर्थ' पत्रिका का संपादक होकर। वहाँ संपादन का एक नया प्रतिमान बनाया। 2000 के बाद की नई पीढ़ी के लिए नवलेखन अंक निकाले। यह नई पीढ़ी के लेखकों और संपादकों के लिए बड़ा प्लेटफार्म बना। यह कहानीकार जब कलकत्ता से दिल्ली भारतीय ज्ञानपीठ में गया तो वहाँ नया ज्ञानोदय पत्रिका का संपादन शुरू किया। विमर्शों से हटकर युवा कहानीकारों को मौका देना शुरू किया और पत्रिका को एक मॉडल के रूप में स्थापित किया। संपादक के रूप में उसका योगदान ऐतिहासिक है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

कालिया से मेरी अंतिम मुलाकात पिछले दिनों लखनऊ में हुई जब 'चार यार और आठ कहानियाँ' का लोकार्पण था। बीमार था पर उतना ही मस्त, हँसमुख और छेड़छाड़ में मजा लेने वाला इनसान। कथाकार आते रहेंगे, लेकिन कालिया जैसा बहुआयामी लेखक आना बहुत मुश्किल है। उसे भूलना और भी मुश्किल है। रवींद्र की पत्नी ममता कालिया उतनी ही बड़ी कथाकार हैं। मेरी पूरी संवेदना उसके परिवार से है। वह मेरे परिवार का ही हिस्सा है।