रहबर / जगदीश कश्यप
मैंने कहा— 'उठो साहब ।' उपमंत्री को झंझोड़ा गया तो उन्होंने मिचमिची आँखों में क्रोध भरकर देखा कि हुजूम उनके कमरे में विद्यमान था । कुछ लोग हाथ जोड़े हुए थे । उपमंत्री तुरंत ही चेहरे पर सौम्यता लाए और बोले— 'कहो भाई मधुकर, कैसे हो ? तुम कल दिखाई ही नहीं दिए ।'
मधुकर स्थानीय अख़बार का रिपोर्टर था और उसने अपने दोस्त को जितवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था । वह बोला— 'मैं बाद में, पहले इन लोगों की फ़रियाद सुनो! नगर प्रशासन ने इनके घर यह कहकर गिरा दिए है कि वे एल०एम०सी० की ज़मीन पर बने थे । अब बताओ ये लोग कहाँ जाएँ !'
उपमंत्री सुनते ही रोष में आ गए और सेक्रेटरी को बुलाकर फ़ोन मिलवाया । चैयरमेन को फ़ोन पर बुरा-भला कहा । परगनाधिकारी से भी बातचीत की ।
'आप लोग जाएँ । मैंने बात कर ली है । मैं इस केस को पूरी तरह देखूँगा ।' ग़रीब मज़दूर, 'जी हुज़ूर, माई-बाप' कहते हुए चले गए ।
'कहो मधुकर, कैसा चल रहा है ?'
तभी सेक्रेटरी ने बीच में आकर कहा—‘चीफ़ मिनिस्टर आपसे बात करना चाहते हैं ।' उपमंत्री ने चोगा कान से लगाकर कहा—'यस सर !'
उधर से कुछ कहा गया तो उपमंत्री विशेष अंदाज़ में सावधान हो गए और बोले— 'मैं रवाना हो रहा हूँ । सॉरी सर ! यहाँ लोगों के घर गिरा दिए गए थे, उसी सिलसिले में फँस गया था । यस...यस...यस सर, नहीं मैं इस मामले में नहीं पड़ना चाहता । अवैध निर्माण होंगे तो गिरेंगे ही... यस सर, इसमें हम क्या कर सकते हैं.... डोंट वरी, सर, मैं अभी रवाना हो रहा हूँ ।'