रहम दिल बादशाह / एक्वेरियम / ममता व्यास
"दुनियाभर को कहानी सुनाते हो, कभी मुझे भी कोई कहानी सुनाओ न।" उसने आग्रह किया।
"ठीक है वह कहानी तो तुम्हें याद होगी न।" जिसमें एक क्रूर राजा किसी बात से नाराज होकर एक गरीब आदमी को सर्दी के मौसम में निर्वस्त्र करके नदी में रातभर खड़े रहने की सजा सुनाता है, ताकि वह ठंड से ठिठुर कर मर जाए.
"अब सुना दो आगे क्या हुआ इस कहानी में।" उसने उत्सुकता दिखाई.
"हाँ, तो सुबह राजा जब उस आदमी के पास आता है तो हैरान होता है कि वह अब भी मुस्कुरा रहा है। राजा के पूछने पर गरीब कहता है महाराज वह बहुत दूर आपके महल में एक दीपक सारी रात जलता था। उसे देख-देख मैं सब दर्द सह गया। उस दीपक ने मुझे सब्र और हौसला दिया मैं सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा।"
राजा गुस्से से भर गया-"तो तुम मेरे महल के दीपक से रोशनी चुराते रहे? आज रात फिर से तुम्हें सजा सुनाई जाती है जाओ फिर से उस नदी में खड़े रहो सुबह तक।"
उस रात महल में जलते उस दीपक को भी बुझा दिया गया।
अगली सुबह वह गरीब फिर मुस्काता मिला। राजा अब गुस्से से पागल हो गया "अब भी नहीं मरे तुम! कैसे?"
"महाराज मैं सारी रात आसमान के तारे देखता रहा, उनके साथ सुबह का इन्तजार करता रहा।"
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया-"आज रात आसमान के सभी तारों को बुझा दिया जाए."
"लेकिन ये असम्भव है।" सेनापति ने सलाह दी।
"क्यों न इसके आंखों के तारे ही बुझा दिए जाएँ, समस्या तो देख-देख कर जीवित रहने की है न। सारा झमेला तो इसकी आंखों का है न।"
राजा को सुझाव पसंद आया और उसी रात उस गरीब की आंखें फोड़ दी गयीं।
"कहानी खत्म हो गयी, अब सो जाओ मैं भी सो रहा हूँ।" वह सो गया।
लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी वह खुद से बातें करने लगी और कहानी को आगे बढ़ाने लगी।
सुनो! कहानी यहीं खत्म नहीं होती उस दिन वह गरीब मुझे रास्ते में मिल गया। मैंने उससे पूछा-"अरे ...तुम अभी तक मरे नहीं और वह राजा कहाँ है?"
उस गरीब ने बताया उस दिन राजा ने मेरी दोनों आंखें फुड़वा दीं। लेकिन मेरे चेहरे से मुस्कान नहीं जा रही थी। मेरी मुस्कान उस क्रूर राजा से देखी नहीं जाती थी। अबकी बार उसने मुझे जंजीरों में जकड़ कर फिर से पानी में छोड़ दिया था। मर जाने के लिए. अब वह बहुत खुश था अपनी चतुराई पर, लेकिन तभी अजीब बात हो गयी। मेरे मन के अन्दर अचानक रोशनी भर गयी और मेरी देह से प्रकाश फूटने लगा। उस रोशनी से महल के सारे दिए जलने लगे और आसमान के सारे तारे चमकने लगे। अब चारों ओर उजाला था।
हर रोशनी में मेरा चेहरा उस राजा को दिख रहा था। अब पागल होने की बारी राजा की थी। वह उसी समय निर्वस्त्र होकर ठंडे पानी में खड़ा हो गया वह देखना चाहता था। कैसे महल के दीपक और आसमान के तारे से रोशनी चुराई जाती है।
लोग कहते हैं कि आज भी उसकी रूह भटकती है और कहती है मुझे भी चाहिए वह नजर जो तारों को खोज ले। मुझे भी चाहिए वह आंखें जो मीलों दूर के जलते दीपक देख लें।
"पर तुमने ये कमाल किया कैसे?" उसने पूछा।
वो गरीब ठंडी आह भर कर बोला-"दोस्त, जब बिना कसूर के आपको सजा दी जाती है। जब आपके मासूम होंठों से मुस्कान छीन ली जाती है। जब आपकी आंखों में दर्द उभर आता है। जब आपकी देह को कोई राजा यातना देता है। जब आपकी रूह पीड़ा से कांपती है, तब कहीं जाकर आपकी आहों में असर होता है।"
जब दूर-दूर तक जीने की कोई वजह नजर नहीं आती। जब आपके जीने के, मुस्काने के, सांस लेने के, सभी दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। तब आप खुद को बचाए रखने के लिए दीपक खोजते हैं, तारे उगाते हैं। ये तारे उस ईश्वर के प्रतीक हैं जो आपको मरने से बचाते हैं।
ये दीपक आपके जीने की वजह बनते हैं।
हम सभी किसी न किसी राजा की यातना के शिकार हैं। जिंदा रहने के लिए रिश्तों के तारे उगाते हैं। ये दीपक, ये तारे हमें ज़िन्दगी की ठिठुरती सर्द रातों में आंच देते हैं।
"तुम कमाल हो।" वह चहक पड़ी।
वो हंसा और बोला-" हा-हा हा... कमाल तो वह राजा था। जो आज भी मुझे याद करता होगा और हाँ वह तारा भी कमाल का था जिसे देख-देख मैंने खुद को मरने से बचाया था।
सुना है, वह तारा आज भी उदास और अकेला है मेरे बिना।