रांझा रांझा कर दी मैं खुद रांझा भई / जयप्रकाश चौकसे

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रांझा रांझा कर दी मैं खुद रांझा भई
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2018


जेम्स आइवरी को 'कॉल मी बाय योर नेम' नामक फिल्म की पटकथा लिखने के लिए ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया है। पुरस्कार लेते समय जेम्स आइवरी ने अपने भागीदार इस्माइल मर्चेंट को याद किया। उन्होंने कहा कि इस्माइल फिल्म निर्माण के लिए पूंजी एवं साधन जुटाने के काम में कुछ इस तरह माहिर थे कि कंजूस से दमड़ी निकाल सकें और रेगिस्तान में पानी निकाल लें। उन्होंने कहा कि इस्माइल मर्चेंट प्राय: आर्थिक कठिनाइयों में उलझ जाते थे और हमें डर लगता था कि फिल्म अधूरी छोड़नी होगी परंतु शशि कपूर हमें धन देकर बचा लेते थे। इसी तरह शशि कपूर की पत्नी जेनिफर केंडल कपूर के रहते हमें भूखा नहीं सोना पड़ा। उनके अक्षय पात्र से हमें कुछ न कुछ मिल ही जाता था। कपूर परिवार की बहुएं पराए दर्द को बिना व्यक्त किए ही जान लेती थीं।

बहरहाल, जेम्स आइवरी-इस्माइल मर्चेंट की निर्माण संस्था ने हमेशा साहित्य प्रेरित फिल्मों का निर्माण किया है और उनकी पटकथाएं दिल्ली में रहने वाली रुथ प्रवर झाबवाला ने लिखी है। सृजनधर्मी लोग सरहदों को नहीं स्वीकार करते और उनके लिए पूरा विश्व एक परिवार है। मौजूदा व्यवस्था भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुए संकीर्णता को लादने का काम करती है। इस निर्माण संस्था की फिल्म 'मुहाफिज' की पूरी शूटिंग भोपाल में हुई है। यह एक उम्रदराज शायर के जीवन के आखिरी पड़ाव की मार्मिक कथा प्रस्तुत करती है। यह उनकी निर्माण संस्था की एकमात्र फिल्म है। जिसे हमेशा साधन जुटाने वाले भागीदार इस्माइल मर्चेंट ने निर्देशित किया है। अन्य सभी फिल्में जेम्स आइवरी ने निर्देशित की हैं। 'मुहाफिज' गंगा जमुनी संस्कृति से उत्पन्न उर्दू भाषा को आदरांजलि की तरह गढ़ी गई है। इस फिल्म के प्रदर्शन पूर्व प्रचार के लिए खाकसार ने उर्दू भाषा में हैंडबिल छपवाए और उन्हें पुराने भोपाल की गलियों में बांटने गया। इस्लाम को मानने वाले एक युवा ने कहा कि उनकी पीढ़ी में शायद ही कोई इस जबान को पढ़ सकता हैै। नौकरियां दिला सकने वाली भाषा ही लोग सीखते हैं।

यह भी गौरतलब है कि वर्तमान समय में उर्दू भाषा को पढ़ने वालों की संख्या न्यूनतम हो गई है परंतु ग़ालिब, मीर तक़ी मीर, मजाज़ लखनवी इत्यादि शायरों के कलाम के हिंदी, गुजराती, मराठी और अन्य भाषाओं में हुए अनुवाद खूब पढ़े जा रहे हैं। ग़ालिब ने फारसी भाषा में बहुत कुछ लिखा है और उनके समझने वालों का कहना है कि उनका श्रेष्ठतम फारसी में हैै, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है। अदीबों के लिए यह बताना हमेशा कठिन होता है कि उनका सर्वश्रेष्ठ क्या है?

जेम्स आइवरी को अपनी लिखी पटकथा से प्रेरित फिल्म बनाने वाले फिल्मकार से यह शिकायत है कि उन्होंने कुछ साहसी दृश्यों को फिल्माने में हौसला खो दिया और परम्परावादी दशकों की नाराजगी फिल्मकार मोल नहीं लेना चाहता था। हाल ही में 'केदारनाथ' फिल्म पर सेंसर को शिकायत थी। दरअसल, उन्हें दो अलग मजहबों से आए प्रेमियों से खौफ लगता था परंतु शिकायत किसी और बात पर की गई। संकीर्णता जब दयावान होने का मुखौटा अपनाने लगती है तब और अधिक निर्मम हो जाती है। ताजे चुनाव में संकीर्णता लादने के खिलाफ अवाम ने मत दिया है परंतु उन्होंने यह नतीजा निकाला कि शायद उन्हें और अधिक क्रूर होना चाहिए था। बहरहाल, जेम्स आइवरी की फिल्म का नाम ही बहुत कुछ बयां कर देता है- 'कॉल मी बाय योर नेम' मुझे अपने नाम से पुकारो। प्रेम की मिक्सी में दो व्यक्तित्व इस तरह घुल-मिल जाते हैं कि उनके अलग-अलग तत्वों की पहचान गुम हो जाती है। भाषाएं और संस्कृतियां हिंसक नहीं होतीं, वे एक-दूसरे से इस कदर मिल जाती हैं कि उनका वजूद मिट जाता है। इसी तरह जेम्स आइवरी में उनका दिवंगत भागीदार इस्माइल मर्चेंट अभी तक मुस्कुरा रहा है। जेम्स आइवरी ने अपना ऑस्कर पुरस्कार अवश्य स्माइल मर्चेंट की तस्वीर के पास रखा होगा और स्थिर चित्र पर जीवंत मुस्कुराहट स्पंदित हो रही होगी। गालिब का शेर है-'दूसरों से मिलना बहुत आसां है साकी, अपनी हस्ती से मुलाकात बड़ी मुश्किल है'। एक और शेर है- ईमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र/ काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।