राकेश रोशन और पिंकी की प्रेमकहानी / जयप्रकाश चौकसे
मोहन कुमार के सहायक होने के कारण युवा राकेश रोशन की मुलाकात जे. ओमप्रकाश की इकलौती बेटी पामेला अर्थात पिंकी से मुलाकात हुई। संभवत: यह प्रथम दृष्टि में उत्पन्न प्रेम था और उसी प्रेम ने पिता की मृत्यु से जन्मे दु:ख से उभरने में राकेश रोशन की सहायता की। प्रेम की ताकत ने राकेश रोशन को दु:ख के तूफानी सागर से बाहर निकलने में मदद की ंह सोलह नवंबर 1967 की मनहूस रात थी जब महान संगीतकार रोशन ने अपनी फिल्म ‘अनोखी रात’ के लिए एक मधुर गीत रचा ‘खुशी-खुशी कर दो बिदा कि रानी बेटी राज करेगी’ और एक प्रीमियर के बदले मित्र हरिवालिया के घर दावत में जाने का निर्णय लिया और उस रात, प्रात: खामोश और मितभाषी रोशन साहब इतने वाचाल और खुश थे कि उनके लतीफों पर पूरी महफिल हंस-हंसकर लोटपोट हो रही थी। उनकी पत्नी ठहाका लगाते हुए बहते आंसू थामने के लिए वाश रूम गई और लौटी तो देखा कि हंसते हुए रोशन साहब नीचे गिर गए और क्षणांश में उनकी मृत्यु हो गई, यह भीषण तीव्र हार्ट अटैक था और उनके चेहरे पर मुस्कराहट अभी भी थमी हुई थी। जबकि मृत्यु उनके प्राण ले चुकी थी। उस समय उनके पुत्र राकेश रोशन मात्र अठारह वर्ष के थे तथा कॉलेज में मौज-मस्ती का समय बिता रहे थे। वे कक्षा में कम और कैंपस कैंटीन में अधिक समय देखे जाते थे। वे एक लापरवाह-से अल्हड़ युवा थे और पिता की मृत्यु ने उनका काया कल्प कर दिया, वे पूरी तरह से बदल गए, क्योंकि उनके पिता ने सुपरहिट संगीत देते हुए भी ढ़ेर साधन नहीं कमाया था। उन्हें अपनी प्रतिभा की मार्केटिंग नहीं आती थी। धुनें ही उनकी संपत्ति थी और पुत्र राजेश भी उनकी परंपरा पर चलने का प्रयास कर रहा था। घोर आर्थिक संकट था और राजेश, लक्ष्मी प्यारे के यहां सहायक बना तथा राकेश, लक्ष्मी प्यारे के यहां सहायक बना तथा राकेश रोशन, मोहन कुमार का सहायक निर्देशक बना। दोनों भाइयों का वेतन महज तीन सौ रुपये में महीने भर का खर्च संभालना होता था। मोहन सहगल की निर्माण संस्था में युवा मोहन कुमार सहायक निर्देशक थे और जे. ओमप्रकाश अकाउटेंट थे। जो ओमप्रकाश अत्यंत तीव्र बुद्धि के साहसी व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी निर्माण संस्था में पहली फिल्म ‘आस का पंछी’ बनाई जिसमें उस दौर के सुपर सितारे राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला ने अभिनय किया तथा मोहन कुमार ने निर्देशन किया। इन्ही मोहन कुमार के सहायक होने के कारण युवा राकेश रोशन की मुलाकात जे. ओमप्रकाश की इकलौती बेटी पामेला अर्थात पिंकी से मुलाकात हुई। संभवत: यह प्रथम दृष्टि में उत्पन्न प्रेम था और उसी प्रेम ने पिता की मृत्यु से जन्मे दु:ख से उभरने में राकेश रोशन की सहायता की। प्रेम की ताकत ने राकेश रोशन को दु:ख के तूफानी सागर से बाहर निकलने में मदद की और 1970 में बतौर नायक उनकी ‘घर-घर की कहानी’ का प्रदर्शन हुआ तथा जे. ओमप्रकाश ने उनका विवाह अपनी पुत्री के साथ किया। राकेश रोशन ने अपनी अभिनय यात्रा के पहले चरण में ही ‘ आपके दीवाने’ नायक प्रेम तिकोन की फिल्म अपने मित्र ऋषि कपूर और टीना मुनीम के साथ निर्मित की और निर्माण का सिलसिला हर हाल में जारी रखा। उनकी निर्मित और अभिनीत कमजोर सफल रही और वह कथा आज भी बनाई जा सकती है।
राकेश रोशन ने ‘खुदगर्ज’ के साथ निर्देशन प्रारंभ किया। वे बहुत पहले ही समझ चुके थे कि अच्छा कलाकार होते हुए भी वे कभी सुपर सितारा नही बन पायेंगे परंतु सुपर सितारा निर्देशक बनने के उद्देश्य के लिए उन्होंने बहुत ही दिल तोड़ देने वाला संघर्ष किया। सलमान खान और शाहरुख अभिनीत करण अर्जुन उन्होंने बनाई और संभवत: सितारा मूड को झेलते हुए। यह विचार भी किया कि सुपुत्र रितिक को सितारा बनाया जाए। राकेश रोशन और रितिक रोशन के पिता-पुत्र टीम ने चार सुपरहिट फिल्में बनाई हैं और आज के सभी निर्देशकों से राकेश रोशन की सफलता का प्रतिशत अधिक है। उनकी नाटकीय यात्रा में उनकी पत्नी पिंकी हमेशा उनकी ताकत रहीं और ससुर जे. ओमप्रकाश भी उनका मार्ग दर्शन करते रहे हैं। पिता की अकाल मृत्यु और घोर संघर्ष ने उन्हें पैसे और समय का मूल्य इस तरह समझाया है कि आज भी उनकी स्थिरता और मजबूती एक मिसाल है। जिस मार्केटिंग ने उनके अपार प्रतिभाशाली पिता को उनका जायज एक नही दिलाया, उसे राकेश रोशन बखूबी समझते हैं परंतु निरंतर बेहतर काम की इच्छा फिल्म उद्योग में रोशन घराने को सम्मान की दृष्टि से देखता है।