राखी गुलजार के तेवर / जयप्रकाश चौकसे

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राखी गुलजार के तेवर

प्रकाशन तिथि : 20 सितम्बर 2012

राखी गुलजार उम्र के उस मोड़ पर हैं, जहां व्यक्ति विगत की जुगाली करना पसंद करता है। वह कहीं स्थिर-सा बैठ जाता है और गुजश्ता जिंदगी का कारवां उसकी आंखों से गुजरता है। इस मोड़ पर वह संजय भी है और युधिष्ठिर भी है और देख रहा है कि वह कब जीता, कब हारा। वह तो कृष्ण ही थे, जो सब करवा रहे थे। मैं सिर्फ माध्यम था। इस मोड़ का आध्यात्मिक सोच श्मशान वैराग्य की तरह है।

बहरहाल, राखी कहती हैं कि एक बार अमिताभ बच्चन उनसे इसलिए खफा हो गए थे क्योंकि उन्होंने अमिताभ के पीने के पानी से पौधों को सींच दिया था। राखी ने उनसे कहा कि मेरा यह काम आपको अर्थहीन लग सकता है, जैसे मुझे आपका आउटडोर शूटिंग में सितार ले जाना, जो आप कभी बजाते ही नहीं, शायद आता भी नहीं। राखी ने फिल्मों में अमिताभ की प्रेमिका व पत्नी की भूमिकाएं निभाई हैं, तो रमेश सिप्पी की 'शक्ति' में उनकी मां की भूमिका भी की। उन्होंने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्मों का अंतर अपने ढंग से परिभाषित किया, जिसका तात्पर्य मासूमियत बनाम क्रूरता कहा जा सकता है।

उनका कहना है कि आज केवल सप्ताहांत के लिए फिल्में बनती हैं और पूरा सप्ताह चलने वाली फिल्म को सफल माना जाता है। आंकड़ों के खेल से गुणवत्ता परखी जा रही है। उनसे पूछे जाने पर कि उनकी बेटी बोस्की अब क्या बनाने जा रही है, उनका कथन था कि गुलजार ही लंबे समय से फिल्म नहीं बना रहे हैं और बोस्की के लिए आज के दौर के सिनेमाई मूल्यों से समझौता करना कठिन है।

राखी गुलजार ने 'कभी कभी', 'दाग', 'त्रिशूल', 'जीवन मृत्यु' या 'शर्मीली' में अपने अभिनय को श्रेष्ठ न मानते हुए 'ब्लैकमेल' को श्रेष्ठ अभिनय बताया है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि राखी लोकप्रियता और गुणवत्ता के बीच के अंतर को जानती हैं। वह अपना अधिकांश समय अपने पनवेल स्थित फार्महाउस में गुजारती हैं और उन्हें पेड़-पौधों तथा जानवरों के प्रति बहुत स्नेह है। उनका यह फार्महाउस सलीम खान के फार्महाउस के निकट है और बहुत साल पहले उस सुनसान जगह पर अकेली महिला की सुरक्षा के लिए सलीम खान ने उन्हें एक नकली रिवॉल्वर दिया था, जिससे डराया जा सकता था, परंतु मारा नहीं जा सकता था। वह एक महंगा विदेशी रिवॉल्वर था। कुछ समय बाद राखी की गैरहाजिरी में फार्महाउस में चोरी हुई और कुछ सामान के साथ रिवॉल्वर भी चोरी हो गया। कुछ समय बाद चोर रिवॉल्वर बेचने के कारण पकड़ा गया और उसे बरामद करके असली समझा गया और राखी से पूछताछ हुई। सलीम खान से भी पूछा गया। मुतमईन होने पर पुलिस ने चोर को सजा दी, परंतु रिवॉल्वर के अलावा कुछ भी बरामद नहीं हुआ।

बहरहाल, राखी गुलजार ने राजश्री की 'जीवन मृत्यु' से हिंदी सिनेमा में प्रवेश किया था और 'शर्मीली' में उनकी दोहरी भूमिकाएं थीं। अपने पहले पति से तलाक के बाद उन्होंने गुलजार से शादी की और फिल्मों से संन्यास ले लिया, परंतु महज कुछ वर्ष पश्चात ही यश चोपड़ा ने उन्हें 'कभी कभी' के लिए मना लिया और फिर उन्होंने लंबी पारी खेली। अनेक वर्षों से वह गुलजार से अलग रहती हैं, परंतु संबंधों में कड़वाहट नहीं है। यह संभव है कि गुलजार ने उनकी फिल्मों में वापसी को पसंद न किया हो, परंतु एक व्यावहारिक बुद्धिजीवी की तरह वह यश चोपड़ा से खफा नहीं हैं और उनकी फिल्मों में गाने भी लिखते हैं। हाल ही में यशजी की आगामी फिल्म 'जब तक है जान' के लिए गीत लिखे हैं और एक गीत को बतौर विज्ञापन कई अखबारों के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया गया। दशकों पूर्व रमेश सहगल की 'फिर सुबह होगी' के गीत को भी इस तरह से प्रचारित किया गया था, परंतु वह साहिर का लिखा श्रेष्ठ गीत था- 'वह सुबह कभी तो आएगी। जब दु:ख के बादल पिघलेंगे। जब सुख का सूरज चमकेगा। ...मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा। मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा। हक मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी। वह सुबह कभी तो आएगी।'

राखी गुलजार हमेशा ही अत्यंत स्वाभिमानी और मूडी रही हैं तथा उनकी इच्छा के विपरीत उनसे कोई काम नहीं कराया जा सकता था। उन्होंने अपर्णा सेन की 'परोमा' में पुरस्कार पाने वाला अभिनय किया था। उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया। ऐसा माना जाता है कि २ जून १९८८ को प्रदर्शित 'मेरे बाद' फिल्म में उन्होंने अभिनय के साथ निर्देशन भी किया था, या संभव है कि वह सृजन ऊर्जा हों, परंतु नाम नहीं दिया। फिल्म में अनुपम खेर के फैक्टरी मं दुर्घटना के कारण दोनों हाथ कट जाते हैं और पत्नी राखी को कैंसर है, अत: वे विज्ञापन देकर अपने बच्चों को नि:संतान लोगों को गोद दे देते हैं, परंतु बच्चों को अपना सुविधाहीन घर और मजबूर मां-बाप इतने याद आते हैं कि वे अपने गोद लेने वाले संपन्न घरों को छोड़कर अपने घर आते हैं। वे अभावों से जूझना जानते हैं। यह एक कमाल की फिल्म थी, परंतु प्रदर्शन के दिन (२ जून १९८८ को) राज कपूर की मृत्यु के कारण लोग टेलीविजन से चिपके रहे और सिनेमाघर वालों ने भी 'मेरे बाद' हटाकर राज कपूर की पुरानी फिल्में लगा दीं। इस तरह राज कपूर की मृत्यु का दु:ख किसी अन्य रूप में भी राखी के घर तक जा पहुंचा। इस उद्योग में मय्यत कहीं होती है और जनाजा कहीं और से उठता है।