राजकुमार की प्रतिज्ञा / यशपाल जैन / पृष्ठ 2

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कोई चारा नहीं था।

राजकुमार नीचे उतरा और परी के साथ हो लिया। दोनों राजकुमारी के पास पहुंचे। राजकुमारी ने सरक कर सिंहासन पर जगह कर दी और कहा, "आओ, यहां बैठ ज़ाओ।"

राजकुमार ने उसकी बात सुनी,पर उसकी बैठने की हिम्मत न हुई। राजकुमारी ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "तुम कौन हो?"

राजकुमार ने धीरे से कहा, "मैं राजगढ़ के राजा का बेटा हूं।"

"तो तुम राजकुमार हो!" राजकुमार ने मुस्कराकर कहा।"

राजकुमार चुपचाप खड़ा रहा।

राजकुमारी ने कहा, "देखो, यहां से कोसों दूर हमारा राज है। मैं वहां की राजकुमारी हूं। बहुत दिनों से इंतजार कर रही थी कि कोई राजकुमार यहां आये। आज तुम आ गये।"

इतना कहकर राजकुमारी राजकुमार की ओर एकटक देखने लगी।

राजकुमार को लगा कि वह बेहोश होकर गिर पड़ेगा, पर उसने अपने को संभाला।

राजकुमारी की मुस्कराहट और चौड़ी हो गई। बड़े मधुर शब्दों में बोली, "तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा।"

राजकुमार पर मानो बिजली गिरी। उसने कहा, "यह नहीं हो सकता।"

"क्यों?" राजकुमारी ने थोड़ा कठोर होकर पूछा।

"इसलिए कि," राजकुमार ने कहा, "मैं रानी पद्मिनी की तलाश में निकला हूं। मैंने प्रतिज्ञा की है कि जबतक वह नहीं मिल जायेगी, मैं अपने महल का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा।"

"ओह! यह बात है?" राजकुमारी ने बड़े तरल स्वर में कहा, "मैं नहीं चाहूंगी

कि तुम अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ो। प्रतिज्ञा बड़ी पवित्र होती है। उसे तोड़ना नहीं चाहिए। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। मैं उसमें तुम्हारी मदद करूंगी। पर एक शर्त पर।"

राजकुमार ने कहा, "वह शर्त क्या है?"

राजकुमार बोली, "पद्मिनी को लेकर तुम यहां आओगे और मेरे साथ शादी करके अपने राज्य को जाओगे।"

राजकुमार ने कहा, "इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है?"

राजकुमारी थोड़ी देर मौन रही, फिर बोली, "तुम सिंहल द्वीप चहुंचोगे कैसे?"

राजकुमार ने कहा, "क्यों, उसमें क्या दिक्कत है!"

राजकुमारी हंसने लगी। हंसते-हंसते बोली,

"तुम बड़े भोले हो। अरे, वहां पहुंचना हंसी-खेल नहीं है। रास्ते में एक जादू की नगरी पड़ती है। सिंहल द्वीप का रास्ता वहीं से होकर जाता है। कोई भी तुम्हें अपने जादू में फंसा लेगा।"

"तब?" राजकुमार ने हैरान होकर कहा।

राजकुमारी बोली, "तुम उसकी चिन्ता न करो। यह लो, मैं तुम्हें एक अंगूठी देती हूं। तुम जबतक इसे अपनी उंगली में पहने रहोगे, तुम पर किसी का जादू असर नहीं करेगा।"

इतना कहकर राजकुमारी ने एक अंगूठी उसकी ओर बढ़ा दी।

राजकुमार ने कहा, "राजकुमारी मैं, तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूंगा।"

राजकुमारी बोली, "इसमें अहसान की क्या बात है! इंसान को इंसान की मदद करनी ही चाहिए।


राजकुमारी एक अंगूठी उसे दे दी। तुम्हारी यात्रा सफल हो, तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी हो!"

राजकुमार ने उसका आभार मानते हुए सिर झुका दिया।

रात बीतने वाली थी। राजकुमारी उठी और अपने उड़न-खटोले पर बैठकर चली गई। परियों ने सारा सामान समेटा और वे भी अपनी-अपनी दिशा को प्रस्थान कर गईं।

राजकुमारी से विदा होकर राजकुमार डगमगाते पैरों से, पर खुश-खुश, वहां आया, जहां वजीर का लड़का बड़ी व्यग्रता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

राजकुमार को सही-सलामत लौट आया देखकर वजीर के लड़के की जान-में-जान आई। वह पेड़ पर से उतरा। राजकुमार ने उसे आपबीती सुनाकर कहा,

"देखो, कभी-कभी बुराई में से भलाई निकल आती है।"

फिर दोनों ने अपने-अपने घोड़े तैयार किये और उनपर सवार होकर चल पड़े। जैसे हीफाटक पर आये कि वह खुल गया। दोनों बाहर हो गये।

जकुमार ने चलते-चलते कहा, "यह तो पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव और आयेंगे।"

वजीर का लड़का गंभीर होकर बोला, "यहां से तो हम राजी-खुशी निकल आये, पर आगे हमें होशियार रहना चाहिए।"

वे लोग उस जादुई बाग से कुछ ही दूर गये होंगे कि आसमान में काले-काले बादल घिर आये। खूब जोर की वर्षा होने लगी। वे एक घर में रुक गये। दोनों रात-भर के जगे थे। राजकुमार लेट गया और गहरी नींद में सो गया। वजीर के लड़के को नींद नहीं आई। वह बैठा रहा। अचानक देखता क्या है कि बराबर के कमरे से एक काला नाग आया। यह उसी का घर था। अपने घर में उन अजनबी आदमियों को देखकर वह गुस्से से आग-बबूला हो गया। बड़े जोर की फुंफकार मार कर वह राजकुमार की ओर बढ़ा। राजकुमार तो बेखबर सो रहा था। वजीर के लड़के ने म्यान से तलवार निकाल कर सांप पर वार किया और उसके दो टुकड़े कर डाले, फिर तलवार से उसे एक कोने में पटक दिया।

बाहर अब भी पानी पड़ रहा था। वजीर का लड़का उठकर घर के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। थोड़ी देर बाहर का नजारा देखता रहा। सोचने लगा कि बैठे-ठाले राजकुमार ने यह क्या मुसीबत मोल ले ली। अच्छा होगा कि अब भी उसका मन फिर जाये और हम वापस लौट जायें, पर वह राजकुमार को जानता था। वह बड़ा हठी था। जो सोच लेता था, उसे पूरा करके रहता था। और न जाने क्या-क्या विचार उसके दिमाग में चक्कर लगाते रहे।

पानी थम गया तो उसने राजकुमार को जगाया। राजकुमार उठ बैठा। बोला, "बड़े जोर की नींद आ गई। अगर तुम जगाते नहीं तो मैं घंटों सोता रहता।"

तभी उसकी निगाह एक ओर की पड़े नागराज पर गई। वह चौंक कर खड़ा हो गया और विस्मित आवाज में बोला, "यह क्या?"

वजीर के लड़के ने सारा हाल सुनाते हुए कहा, "वह तो अच्छा हुआ कि मुझे नींद नहीं आई। अगर सो गया होता तो यह नाग हम दोनों को डस लेता और हमारा सफर यहीं खत्म हो गया होता।"

राजकुमार वजीर के लड़के के मुंह से सारी दास्तान सुनकर बोला, "मित्र, जिसे भगवान बचाता है, उसे कोई नहीं मार सकता! यह भी याद रक्खो, हम लोग एक बड़े काम के लिए निकले हैं। जबतक वह काम पूरा नहीं हो जायेगा, हमारा बाल बांका नहीं होगा।"

वजीर के लड़के ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दोनों ने सामान संभाला, घोड़ों पर ज़ीन कसे और आगे बढ़ चले। चलते-चलते एक तालाब आया। सूरज सिर पर आ गया था। आसमान एकदम निर्मल हो गया था। वहां वे रुक गये। भोजन किया। थोड़ी देर विश्राम किया। फिर आगे चल दिये।

आगे एक बड़ा घना जंगल था। इतना घना कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था। उसमें जंगली जानवर निडर होकर घूमते थे। डाकू छिपे रहते थे। वहां से निकलना हंसी खेल नहीं था।

जब उन्हें यह जानकारी मिली तो वजीर के लड़के का दिल दहल उठा। उसने राजकुमार की ओर देखा, पर राजकुमार तो जान हथेली पर लेकर महल से निकला था। उसने कहा, "अगर हम इन छोटी-छोटी बातों से घबरा जायेंगे तो कैसे काम चलेगा?"

दोनों उस जंगल में घुसे। जैसा बताया था, वैसा ही उन्होंने उसे पाया। अंधियारी रात-का-सा अंधकार फैला था। आगे-आगे राजकुमार, पीछे वजीर का लड़का। जानवरों की नाना प्रकार की आवाजें आ रही थीं, पक्षी कलराव कर रहे थे। वे लोग बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।

अचानक उन्हें दो चमकती आंखें दिखाई दीं। राजकुमार ने अपने घोड़े को रोक लिया। खड़े होकर देखा तो सामने एक बाघ खड़ा था। क्षणभर में उन दोनों का खात्मा हो जाने वाला था। पर मौत सामने आ जाती तो कायर भी शूर बन जाता है। वजीर के लड़के ने आव देखा न ताव, घोड़े पर से कूदा और तलवार से उस पर बड़े जोर का वार किया। राजकुमार ने भी भाले से उस पर हमला किया। बाघ वहीं ढेर हो गया।