राजकुमार राव : विलक्षण अभिनेता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 मई 2018
आम आदमी की तरह साधारण-सी शक्लोसूरत वाले राजकुमार राव सफल कलाकार हैं। उन्होंने 'क्वीन' कंगना रनौत के साथ भी काम किया है। हिन्दुस्तानी सिनेमा में इस तरह के अनेक कलाकार हुए हैं जैसे महान बलराज साहनी, अमोल पालेकर, अनवर हुसैन इत्यादि। यहां तक कि धर्मेन्द्र के समकालीन मनोज कुमार भी औसत मध्यम वर्ग के युवा की तरह दिखते थे। धर्मेन्द्र के सगे भाई अजीत का पुत्र अभय देओल भी साधारण-सा दिखता है। उसी ने सबसे पहले निर्देशक इम्तियाज अली को अवसर दिया था। सनी देओल के पुत्र की पहली फिल्म के लिए भी इम्तियाज अली से चर्चा हुई थी परंतु सनी देओल स्वयं ही उस फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं। अभय देओल और इम्तियाज अली की उस पिल्म का नाम था 'सोचा न था'। इसी कथा का दूसरा रूप है 'जब वी मैट' जो करीना कपूर की श्रेष्ठतम फिल्म मानी जा सकती है।
राजकुमार राव 'फन्ने खां', 'लव सोनिया' और 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' में काम कर रहे हैं। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 ए लव स्टोरी' में जावेद अख्तर ने 'एक लड़की को देखा' गीत में इक्कीस उपमाओं का इस्तेमाल किया है। दरअसल, इस तरह का पहला गीत जोश मलीहाबादी ने लिखा था 'गब्बर अनार देखो, फौजों की मौजां देखो'।
विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 ए लव स्टोरी' में गीतों के फिल्मांकन में कमाल किया गया था। राहुल देव बर्मन ने फिल्म में कमाल का माधुर्य रचा था परंतु इसकी लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए वे जीवित नहीं रहे। इस तरह यह उनका 'स्वान सॉन्ग' रहा। अंग्रेजी भाषा में अंतिम रचना को 'स्वान सॉन्ग' कहते हैं। राजकुमार राव एक फिल्म में बाइसवें माले में फंस जाते हैं। उस फिल्म का नाम था 'ट्रैप्ड'। अधबनी इमारत में कोई किरायेदार नहीं आया है। उनकी आवाज भी कोई सुन नहीं पाता। एक तरह से यह एकल अभिनेता फिल्म थी। वर्षों पूर्व सुनील दत्त भी 'यादें' नामक एकल अभिनेता फिल्म बना चुके हैं। सुनील दत्त ने नरगिस से विवाह के बाद अजन्ता फिल्म्स नामक निर्माण संस्था के तहत कुछ फिल्में बनाई। उनकी 'रेशमा और शेरा' में इंदिरा गांधी की सिफारिश पर उन्होंने अमिताभ बच्चन को गूंगे भाई की भूमिका दी थी, जबकि बाद के वर्षों में अमिताभ बच्चन की आवाज का जादू सबने स्वीकार किया। उनकी आवाज को ऑल इंडिया रेडियो भी अस्वीकृत कर चुका था। अपनी आवाज के उतार-चढ़ाव पर उनका संपूर्ण नियंत्रण है। 'पिंक' के अदालत के दृश्य में उनकी आवाज यह प्रभाव देती है कि यह व्यक्ति बेइन्तिहा दर्द सहन कर रहा है। मुकदमे के दौरान ही उस पात्र की पत्नी की मृत्यु हुई थी।
राजकुमार राव की शक्लो सीरत मामूली है और आवाज भी साधारण है परंतु उनकी यही बातें उन्हें आम दर्शक से तादात्म्य बनाने में सहायक सिद्ध होती है। लोकप्रियता का रसायन ही विचित्र होता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी अत्यंत साधारण व्यक्ति दिखते थे परंतु उन्होंने विलक्षण काम किए। जिस आर्थिक उदारवाद का श्रीगणेश उन्होंने ही किया था। अगर अगले आम चुनाव में कांग्रेस उन्हें अपना नेतृत्व सौंपे तो नतीजों की कल्पना नहीं की जा सकती। भारी उलटफेर हो सकता है, क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है और युवा राहुल गांधी कुछ वर्ष उनको गुरु बनाकर बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। सोनिया गांधी की लोकप्रियता उस समय शिखर पर पहुंची जब उन्होंने स्वयं पद न लेकर डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद दिया।
भारत में सत्ता छोड़ने का प्रयास ही व्यक्ति को लोकप्रियता के शिखर पर बैठा देता है। श्रीराम ने सिंहासन तजकर वनवास लिया और वे पूजे जाते हैं। निदा फ़ाज़ली याद आते हैं, 'तुझ से पहले बीत गया जो वह इतिहास है तेरा/तुझको ही पूरा करना है/जो बनवास है तेरा/तेरी सांसें जिया नहीं जो/घर-आंगन का दिया नहीं जो/वो तुलसी की रामायण हैतेरा राम नहीं।
सिनेमा आम आदमी का मनोरंजन है परंतु नायक का चिकना-चुपड़ा व खूबसूरत होना जाने कैसे जरूरी माना गया। संभवत: राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद के कारण ऐसा हुआ। शैलेन्द्र फणीश्वर नाथ रेणु की 'तीसरी कसम' बनाना चाहते थे। उन्होंने 'रेणु' की मुलाकात राज कपूर से कराई तो रेणु ने कहा कि इतना खूबसूरत, यूरोपीयन-सा दिखने वाला व्यक्ति गंवई गांव के बैलगाड़ी चलाने वाले हीरामन के पात्र को कैसे अभिनीत कर सकता है। शैलेन्द्र ने उन्हें कहा कि प्रारंभिक शूटिंग का रश प्रिंट देखकर वे किसी निर्णय पर पहुंचें। प्रारंभिक रीलों को देखकर रेणु जी ने कहा, 'यह साक्षात हीरामन लगता है'। अभिनय कला अजूबे घटित कर देती है। 'तीसरी कसम' एक महान फिल्म सिद्ध हुई परंतु शैलेन्द्र की मृत्यु के कारण वे रेणु के उपन्यास 'परती परीकथा' पर फिल्म नहीं बना पाए।