राजकुमार हिरानी एवं रणबीर कपूर का तिलिस्म / जयप्रकाश चौकसे

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राजकुमार हिरानी एवं रणबीर कपूर का तिलिस्म
प्रकाशन तिथि : 30 जून 2018


राजकुमार हिरानी ने अपने पंद्रह वर्ष के कॅरिअर में पांच सार्थक फिल्मों को रचा है और शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त करने वाले वे पहले भारतीय फिल्मकार हैं। शांताराम, मेहबूब खान, बिमल रॉय, राज कपूर और गुरुदत्त ने भी बॉक्स ऑफिस पर कुछ असफल फिल्में बनाईं। यह बात अलग है कि बॉक्स ऑफिस पर इन महान फिल्मकारों की असफल फिल्में भी अत्यंत सार्थक फिल्में रही हैं। हिरानी की 'संजू' में रणबीर कपूर ने जीवंत अभिनय प्रस्तुत किया है और उनका इस फिल्म में किया गया अभिनय उसी श्रेणी का माना जा सकता है, जिसमें हम शांताराम का 'दो आंखें बारह हाथ' में, राज कपूर का 'जागते रहो', दिलीप कुमार का 'गंगा-जमुना' और संजीव कुमार का 'अंगूर' में किया गया अभिनय रखते हैं।

बहरहाल, हिरानी ने संजय दत्त की सारी बुराइयां, अपराध और भयावह इरादों को पूरी ईमानदारी और शिद्दत से प्रस्तुत किया है तथा इसी प्रक्रिया के तहत सुनील दत्त को आदरांजलि दी है। फिल्म में प्रस्तुत प्रमुख पात्र के कमीनेपन की हद इस तरह दिखाई है कि वह अपने सबसे नज़दीकी मित्र के साथ विवाह करने के लिए आई युवती के साथ संबंध बनाता है और सफाई यह देता है कि वह उस युवती की परीक्षा ले रहा था। अपनी मां नरगिस के कैंसर का इलाज होने के दरमियान भी उसने ड्रग्स लिए हैं और यौनाचार किया है।

राजकुमार हिरानी की पटकथा का आधार संजय दत्त द्वारा बताई गई बातें हैं, परंतु दत्त परिवार के जीवन में ऐसा भी बहुत कुछ है जो संजय दत्त को ज्ञात नहीं है। यह बात गौरतलब है कि हिरानी ने साफगोई बरतते हुए संजय दत्त के सारे दोष बताते हुए भी कुछ हद तक उसे महिमामंडित भी किया है। राजकुमार हिरानी को यह तथ्य बताया ही नहीं गया कि संजय दत्त के अत्यंत निकट रहे नरगिस के भाई अनवर के सुपुत्र ने उसके अवचेतन में एक वर्ग विशेष के प्रति जहर भर दिया था। नरगिस की शवयात्रा के समय भी इन्हीं चंद लोगों ने जोर दिया कि नरगिस को उसकी मां जद्‌दबाई के निकट दफनाया जाए और एक समझौते के तहत हिन्दू सधवा की तरह वे बिदा की गईं और आधे रास्ते बाद जनाजे का सफर शुरू हुआ। बहरहाल, यह फिल्म रणबीर कपूर के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी और वे अपने इम्तेहान में अव्वल नंबर पर आए हैं।

यह सभी लोग जानते हैं कि नरगिस दत्त और इंदिरा गांधी के बीच गहरी मित्रता रही और अनेक लोग मानते हैं कि सुनील दत्त ने तत्कालीन सत्तासीन नेताओं से अपने पारिवारिक संबंध के आधार पर संजय दत्त को टाडा से मुक्त कराया और केवल अवैध हथियार रखने के प्रकरण में मुकदमा चलाया गया। फिल्म के एक हिस्से में बड़ा जोर देकर यह बात रेखांकित की गई है कि सनसनी फैलाने वाली पत्रकारिता के कारण सत्य उजागर नहीं होता। फिल्म में दिखाया गया है कि टाडा से मुक्त हो जाने के बाद भी संजय दत्त को मीडिया ने टाडा के तहत दोषी करार दिया था। बहरहाल, हिरानी व उनके पटकथा लेखक ने उपलब्ध सामग्री को प्रस्तुत किया है। उन्होंने खोजी पत्रकार की तरह काम नहीं किया जैसा कि हमने 'नो वन किल्ड जेसिका' में देखा था। फिल्म के प्रति दर्शकों में इतना जोश था कि पहले दिन प्रात: दस बजे आरंभ होने वाले शो में 87 फीसदी टिकट बिके। यह एक अत्यंत भव्य प्रारंभ है। फिल्म के बारे में दर्शक की मिश्रित प्रतिक्रिया आने के बाद भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई करेगी। यह भी संभव है कि निर्मल आनंद देने वाली फिल्मों से भी अधिक आय 'संजू' प्राप्त करे।

कहावत रही है कि यथार्थ जीवन में अपराध कभी अच्छे परिणाम नहीं देता परंतु अपराधी पर बनाई गई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लाभ के परिणाम देती हैं। ज्ञात हुआ है कि एकल सिनेमाघरों में भीड़ कम है, परंतु मल्टीप्लेक्स में हाउसफुल हैं।