राजनीतिक पंडागिरी / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती
इस बार भी राजनीतिक पार्टियों की धमाचौकड़ी और उथल-पुथल भीतर-ही-भीतर जेल में खूब रही। एक राजबंदी ने बैठे-बिठाए एक मनोरंजक कार्टून (व्यंग्य-चित्र) इससंबंध में बना डाला जो इन पार्टियों की मनोवृत्ति पर पूरा प्रकाश डालता था और पार्टियों के तथाकथित संचालक-सूत्रधार क्या करते हैं उसका खासा चित्रण था। चित्र में इन सूत्रधारों के हाथों में वंशी पकड़ा दी गई थी और उसे ले कर ये लोग जेल के फाटक पर खड़े थे। उधरसे कोई नया राजबंदी आया कि वहीं उसके फँसाने की कोशिश शुरू हो गई। इस काम के लिए कपड़ा-लत्ता, बीड़ी-सिगरेट आदि सभी प्रकार की चीजें इन आगंतुकों को दी जाती थीं,ताकि वे किसी पार्टी के सदस्य बनें और कायम रहें। हर पार्टीवालों को यही कोशिश होती थी कि वह हमारे चंगुल में फँसे। गया प्रभृति तीर्थों के पंडे अपने एजेंटों और दलालों को स्टेशनों एवंधर्मशालाओं में भेज कर अपने-अपने यात्रियों को'गिरफ्तार'करते हैं। यही बात यहाँ भी थी। पंडों के दलाल यात्रियों के घर द्वार पूछ कर ही उन्हें अपने यहाँ ले जाते हैं। यहाँ भी कुछ उसी प्रकार की बातें होती थीं और आगंतुक राजबंदियों के साथ अपने तथा अपनों के पूर्व परिचयों से अनुचित लाभ उठाया जाता था,जबकि पंडे ऐसा लाभ नहीं उठा सकते। इस प्रकार यह निराली राजनीतिक पंडागिरी खूब चलती थी और अंततोगत्वा अधिकांश आगंतुक किसी न किसी पार्टी में फँसी जाते थे यदि वह घोरगाँधीवादी या बहुत ही पक्के विचार के न हुए। यह बात मुझे बहुत ही खलती थी,खासकर इसलिए कि धार्मिक संप्रदायों की ही तरह ये राजनीतिक संप्रदाय एक-दूसरे को गालियाँ देते और उनके नेताओं को देशद्रोही और गद्दार तक कह डालते हैं। हर पार्टी सोचती है कि देश का उध्दार एकमात्र उसी के बताए रास्ते से हो सकता है। धर्मवाले भी मुक्ति के बारे में ऐसा ही मानते हैं। एक ओर तो ये भलेमानस देशव्यापी राष्ट्रीय एकता की बात बोलते हैं। दूसरी ओर जो लोग हिमालय-लंघन जैसी कठिन एकता के लाने में सहायक हो सकते हैं। वही आपस में जूती पैजार करते रहते हैं। आखिर इन पार्टियों तथा उनके नेताओं में ही तो समझदारी और राजनीतिक चेतना है और बाकियों को यही समझा सकते हैं। किंतु खुद यही नासमझ बने आपसी टीका-टिप्पणी और छिद्रान्वेषण में ही सारा समय बिताते हैं! मैं इसे निरा पागलपन मानता हूँ कि किसी पार्टी में जाते ही बड़े-से-बड़ा देशभक्त देशद्रोही माना जाने लगे। मैं इतनी दूर जाने की हिम्मत नहीं रखता।