राजनीतिक शिक्षा नहीं / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती
हमारी जेलयात्रा के बाद महात्माजी के द्वारा कांग्रेस का व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया गया जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख कांग्रेसी जेल में आ बैठे। इस तरह हजारीबाग जेल में प्राय: तीन-चार सौ ऐसे सज्जन थे जो बिहार के चुने-चुनाए कांग्रेसजन थे। उनमें कुछ तो काफी पढ़े-पढ़ाए लोग थे। फिर भी अधिकांश राजनीति के यथार्थ ज्ञान से बहुत दूर थे। आज तो राजनीति दर्शन और विज्ञान बन गई है। फलत: उसके अधययन-मंथन की बड़ी जरूरत है। इसके बिना हमें धोखा होगा। फिर भी देखा कि सबों का जोर केवल चर्खे पर था। राजनीति में तो शायद कुछेक की रुचि थी। मैंने लोगों से कहा भी। मगरउत्तरमिला कि राजनीति तो महात्मागाँधी के ही जिम्मे है,हमें उसकी विशेष जानकारी से क्या काम?हम तो आज्ञाकारी सिपाही हैं जिन्हें केवल चर्खा चलाना है! मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने सोचा, आखिर चर्खा तो हाथ-पाँव से चलता है, न कि दिमाग से। अगर दिमाग ने भी वही काम किया तो आदमी गधा बन जाएगा। क्योंकि दिमाग के विकसित न होने का नतीजा यही होता है। हमारा देश जैसे गधों का मुल्क है, जहाँ अंधपरंपरा के पीछे हम मरे जाते हैं और संपत्ति,प्रतिष्ठा,धर्मसभी कुछ गँवाते हैं।जिस देश के परलोक और स्वर्ग-बैकुंठ का ठेका निरक्षर एवं भ्रष्टाचारी पंडे-पुजारियों के हाथ में हो,कठमुल्ले तथा पापी पीर-गुरुओं के जिम्मे हो उसका तो 'खुदा ही हाफिज' है। यह गधों का मुल्क नहीं है तो आखिर है क्या? मगर वहाँ मेरी बात सुनता कौन?लाचार चुप रह जाना पड़ा।