राजनीति की पृष्ठभूमि पर फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 जुलाई 2017
अमेरिका के फिल्मकार ऑलीवर स्टोन की तरह राजनीति की पृष्ठभूमि पर भारत में फिल्में नहीं बनती। दोनों ही देशों के समाज, सिनेमा और सेन्सर में भारी अंतर है। ऑलीवर स्टोन ने तो अपनी फिल्म 'जेएफके' में कैनेडी की हत्या की साजिश में शामिल उनके अपने देश के नेताओं के नाम भी उजागर किए हैं। अमेरिका गणतंत्र व्यवस्था के प्रति समर्पित देश है परंतु निहित स्वार्थ से प्रेरित शक्तियां आदर्श में सेंध लगाती रहती हैं। वॉटरगेट स्कैंडल से अमेरिकी राजनीति की गंदगी उजागर हुई और इस कालिख को भी टेक्नीकलर सिनेमा में उजागर किया गया। हमारा समाज, सिनेमा और सेन्सर जीवन मूल्यों के दोहरे मानदंड अपनाता है।
विश्व सिनेमा के इतिहास में आर्सन वैलेस की फिल्म 'सिटीजन केन' का विशेष महत्व है। आर्सन वैलेस की आयु मात्र 25 वर्ष थी, जब उन्होंने इस फिल्म का निर्माण किया। फिल्म का कथासार इस तरह है कि नायक का जन्म अत्यंत धनाढ्य परिवार में हुआ है। उसके बचपन में ही वह विशाल संपत्ति का वारिस बना और युवा होने तक एक बैंक अधिकारी ने साम्राज्य की देखभाल की। युवा होने पर नायक ने साहसी अखबार का प्रकाशन आरंभ किया। उसके विशाल भवन का नाम ज़नाडू है। ज्ञातव्य है कि अंग्रेजी कवि कोलरिज की कविता की प्रारंभिक पंक्ति है, 'इन जनाडू डिड कुबला खान लिव।' साहित्य के एक शोधार्थी ने यूरोप में 'ज़नाडू' नामक स्थान की खोज में अनेक वर्ष लगाए और सिद्ध किया कि इस नाम का एक शहर था, जो विकास के क्रम में नष्ट हो गया। मोहन जोदड़ो के अवशेष तो खोजे जा सके परंतु ज़नाडू की एक टूटी हुई ईंट भी नहीं मिली। बहरहाल, नायक ने अपने भवन का नाम ही 'ज़नाडू' रखा और यह संभव है कि उसकी महत्वाकांक्षा रही होगी कि ज़नाडू जैसा आदर्श वह समाज में स्थापित करे। नायक चुनाव में पराजित होकर एकांत निवास करता है परंतु उसकी मृत्यु के समय उसके मुंह से 'रोज बड' निकलता है। फिल्म की कथा में धीरे-धीरे नायक का जीवन और चरित्र उभरकर सामने आता है। एक पत्रकार नायक की जीवनी के लिए शोध करता है और सारे रहस्य उजागर करता है, जिसमें नायक के दो असफल विवाह भी शामिल हैं।
उसकी दूसरी पत्नी रेस्तरां में गाने वाली युवती है, जिसे गायन क्षेत्र में शिखर पर पहुंचाने के लिए अमीर नायक सारे प्रयास करता है और असफल होता है। लता मंगेशकर या आशा भोसले जैसी विलक्षण प्रतिभाओं को करखाने में नहीं बनाया जा सकता है। व्यक्ति की स्वयं की प्रतिभा परम्परा से प्रेरित व प्रभावित होकर अपने निजी योगदान से उस परम्परा को ही मजबूत बनाती है। नायक की सम्पदा अपनी पत्नी के लिए गायन में शिखर स्थान खरीदने में असफल होती है और वह पुन: रेस्तरां में गाने वाली बन जाती है। 'सिटीजन केन' की मृत्यु के बाद उसके भवन ज़नाडू से अनावश्यक सामान बाहर निकालकर जलाया जा रहा है, क्योंकि ट्रस्ट यही चाहता है। उस जलते हुए सामान में बर्फ पर चलने वाली स्लेज जलाई जा रही है अौर उस पर शब्द अंकित है 'रोज बड।' नायक के बचपन में उससे स्लेज छीन ली गई थी। संकेत यह है कि अत्यंत धनाढ्य परिवार के इकलौते वारिस से बचपन में बर्फ पर चलने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पटिया छीन लिया जाता है,क्योंकि बर्फ पर फिसलने में खतरा हो सकता है। अति सुरक्षित जीवन जीने की चाह और ज़द अर्थहीन है। खतरे जीवन मार्ग के जरूरी अंग है। कोई मार्ग कहीं भी निरापद नहीं होता। सुरक्षा एक भ्रम है। महत्वपूर्ण व्यक्ति की सुरक्षा ताम-झाम के परखच्चे उड़ गए थे उन गोलियों से जो महात्मा गांधी, जॉन एफ. कैनेडी, अब्राहम लिंकन और इंदिरा गांधी पर दागी गई थी।
बहरहाल वह स्लेज फिल्म में नायक से उसके बचपन को छीने जाने के कटु सत्य को रेखांकित करती है। सार यह है कि बचपन की पटकथा पर ही जीवन की फिल्म रची जाती है। सूदखोर व्यवस्था मनुष्य से उसका बचपन ब्याज के रूप में खा जाती है। यह धरती कई बार टूटे हुए खिलौनों से पटी दिखाई देती है। यह हुक्मरान का बचपना है कि वह साधनहीन को अपने खेलने का खिलौना मात्र ही मानता है। नीतीश भी टूटा खिलौना ही सिद्ध होंगे। नदियों के डेल्टा में बसे बिहार में तो इतनी फसल होना चाहिए कि पूरे देश को रोटी खिला सके परंतु उसे मखौल बना दिया गया है। इसे एक राष्ट्रीय त्रासदी ही माना जाना चाहिए।
ऑलीवर ्टोन एवं आर्सन वैलेस जैसी विलक्षण प्रतिभाओं का हमारे यहां प्रभाव है। अत्यंत साधारण दर्जे के लोग एक प्रचार एजेंडा के तहत राजनीतिक फिल्म बनाने का दंभ रखते हैं। एक दौर में मिथ्या प्रचार था कि संगठित जगत के अपराध सरगना फिल्मों में पूंजी लगाते हैं, जबकि वे केवल अवैध वसूली का काम करते थे। आज एक धारणा यह बनती है कि एजेंडा के तहत, एजेंडे के लिए फिल्मकारों को पूंजी दी जा रही है ताकि वे केवल बदनाम करने के उद्देश्य से फिल्म बनाएं गोयाकि हिटलर की प्रिय फिल्मकार रोजन्थाल के देशी संस्करण सक्रिय है।