राजनीति / पद्मजा शर्मा
'भाभीजी, आप तो नौकरी छोड़ो और चुनाव लड़ो। क्या ये पूरा-पूरा दिन खपती रहती हैं दफ्तर में। आपको जिताने की जिम्मेदारी मेरी। पर यह वायदा करो कि आपका पी ए मैं ही बनूंगा।'
'अरे भाई, क्यों शांत पानी में कंकड़ फेंक रहे हो? यह घर फूंक तमाशा है। शांति से बैठे हैं। राजनीति में नहीं जाना। अभी बच्चों को पढ़ाना-लिखाना है। फिर इनके शादी-ब्याह। राजनीति पूरा समय मांगती है। लोगों की समस्याएँ सुनना, उन्हें दूर करना। पूरी भागदौड़ हो जाती है। ये सब बड़ी जिम्मेदारी के काम हैं।'
'अरे किसने कहा भागदौड़ आपको करनी पड़ेगी। वह तो हम करेंगे। आपको तो सिर्फ़ साइन करने होंगे, काम खुद ब खुद हो जाएंगे और किसने कहा यह घर फूंक तमाशा है?'
'अरे, पैसा तो बहकर आएगा। रोके नहीं रुकेगा। आपके बच्चे दून स्कूल में पढ़ेंगे। हाली मवाली एडमिशन करवाएँगे। हाँ, आपको चिंता रहेगी कि पैसे को ठिकाने कहाँ, कैसे लगाएं? पर वह काम भी हम करेंगे। फिर हम किसलिए हैं?'
'ऐसी बात है तो आप क्यों नहीं लड़ लेते चुनाव?'
'हम तो तैयार बैठे हैं पर टिकेट नहीं मिलती ना हमें। यूं भी आपका तो बस चेहरा चाहिए. राजनीति तो हम ही करेंगे।'