राजनीति / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
शिब्बनलाल डाकबंगले पर मंत्रीजी से मिलने आया था। वह कमरे में घुसने ही वाला था कि उसके कानों में चूडि़यों के खनकने और दबी–दबी सिसकियों की आवाज़ पड़ी। वह बरामदे में ही बैठ गया। थोड़ी देर के बाद सेठ दुर्गाप्रसाद की लड़की सिलवटों भरा आँचल सँभालते हुए बाहर आई. शिब्बन फिस् से हँस पड़ा। लड़की ने न मुड़कर देखा और न नज़रें ही ऊपर उठाईं।.
चिक हटाकर शिब्बनलाल ने अन्दर प्रवेश किया तो मंत्रीजी मुसकराए–"आइए शिब्बन बाबू।"
शिब्बन भी भला कब चूकने वाला थे–"घर से सीधा आपके पास चला आ रहा हूँ। अभी–अभी दिल्ली से आया हूँ। बैठा तक भी नहीं। सोचा–चलो अपने मंत्रीजी को सलाम बोलता चलूँ।" वे धीरे से बेाले–"सेठ दुर्गाप्रसाद जी अपना पार्टी को चन्दा देते रहते हैं। जमाखोरी के एक केस में फँस गए हैं। बेचारे की जान छुड़वा देना। ऐसा न हुआ तो पचास–साठ हज़ार की बधिया बैठ जाएगी।"
मंत्री जी ने अहसान जताया–"जब आप कहते हैं तो हो जाएगा। भला, नेकी और पूछ–पूछ। मुझे पहले ही खबर कर देते।"
इतने में स्थानीय कॉलेज के प्राचार्य और प्रबन्धक उनके पास आ गए–"जनता आपका भाषण सुनने को एकत्र हो गई है। समय भी हो चुका है। ज़रा जल्दी कीजिए।"
"बस तैयार हूँ।" कहकर मंत्रीजी कार की तरफ बढ़े–"ओ शिब्बन बाबू।"
"आप चलें। मैं तनिक देर से आऊँगा।"
भाषण शुरू हुआ ही था कि जनता भड़क उठी। एक कोने से किसी ने ईंट फेंकी जो मंत्रीजी के मस्तक पर लगी। सारा चेहरा खून से भर गया। पुलिस के लाठी चार्ज करते ही जिसे जिधर रास्ता मिला, भाग निकला।
शिब्बनलाल के इशारे पर विरोधी पार्टी के दो प्रभावशाली कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पकड़ लिया। पुलिस चौकी परलाकर मारते–मारते उनको अधमरा कर दिया। एक की टाँग भी तोड़ दी।
शिब्बनलाल ने अपने गुर्गे जुम्मन के कंधे पर हाथ मारा–"तेरा निशाना ठीक जगह पर बैठा। अगले चुनाव में ये दो विरोधी खड़े नहीं होंगे।"
"फिर!" जुम्मन का मुँह खुला का खुला रह गया।
"अरे, फिर तुम्हारा यह शिब्बनलाल एम.एल.ए. बनेगा।" शिब्बनलाल ने अपनी तोंद पर हाथ फेरकर उल्लू जैसी आँखें नचाईं।