राजनीति / श्याम बिहारी श्यामल
नेताजी के प्रस्ताव पर भीमकाय दुर्जनसिंह को तनिक भी विश्वास नहीं हुआ। प्रतिवाद के बदले में उसने कुरेदा, “...नेताजी!.....आज आप यह कैसी बातें कर रहे है ....! आखिर सुरेशनाथ आपका सगा भाई है.....और निहायत ही भोला–भाला, सीधा–साधा नेकदिल आदमी!...भला उसे मैं कैसे....” नेताजी के चेहरे पर कठोरता व कुटिलता से पैदा विषैले भाव फैल गए। भेद–भरी दृष्टि से आँखें तरेरते हुए उन्होंने बताया, “...यही तो मजे की बात है कि वह मेरा सगा भाई है, और एकदम भोला–भाला,सीधा–साधा नेकदिल इंसान...!...तुम उसका काम जैसे ही तमाम करोगे, तत्कााल सबको मेरे विरोधियों पर संदेह होगा और उनके खिलाफ जनाक्रोश भड़क उठेगा... पहले तो मैं ही आठ–आठ आंसू बहाऊँगा, रिपोर्टे छपवाऊँगा, प्रदर्शन निकलवाऊँगा.. जाहिर है, इल्जाम सत्तारूढ़ पार्टी पर लगाऊंगा...! ....मुझे बिना मांगे लोगों की सहानुभूति मिलेगी... विपक्ष में मेरी छवि निखरेगी... और भगवान् ने चाहा तो अगली बार मुझे मंत्री–पद। “ बोलते हुए एडवांस के रूप में नोटों की कुछ गड्डियाँ उन्होंने मूंछोंवाले दुर्जनसिंह की ओर बढ़ा दीं।