राजनैतिक जलसाघर में राखी सावंत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2014
राखी सावंत ने भी अपना राजनैतिक दल बनाया है और वे स्वयं मुंबई से चुनाव लड़ रही हैं। उनके अपने द्वारा दिए शपथ पत्र में उनकी सम्पत्ति लगभग आठ करोड़ है और वे अनपढ़ भी हैं। वे झोपड़ पट्टी में जन्मी थीं और लंबा संघर्ष करके आर्थिक सुरक्षा के मुकाम पर पहुंचीं। उनकी कमाई का मुख्य स्रोत सिनेमा में अभिनय नहीं वरन् टेलीविजन पर प्रस्तुत तमाशे हैं जिनमें उनका 'स्वयंवर' नामक खेल भी शामिल है। वह देखने में बहुत सुंदर या सुडौल नहीं हैं परंतु अपनी फूहड़ता को अपनी धन कमाने की शक्ति बना लिया है, उसका बड़बोलापन भी उसकी सहायता करता है और किसी गायक द्वारा जन्मदिन दावत में लिए गए चुम्बन ने भी उन्हें सुर्खियों में रखा है। जिस देश में अनगिनत पढ़े-लिखे लोग सारी उम्र की जद्दोजहद के बाद भी एक करोड़ की सम्पत्ति बना नहीं पाते, वहां इस अशिक्षित लड़की ने अपने जन्म द्वारा दी गई जमीन से बहुत ऊपर उठकर अपने परिवार की भी सहायता की है। इस देश के अनेक विरोधाभास और विसंगतियां में एक है राखी सावंत। वह हमारी अप-संस्कृति का परिणाम है और हमारी तमाशबीन प्रवृति का वरदान है। उसका अशिक्षित होना उसका सम्बल है। उसकी एकमात्र पूंजी उसका साहस है जिसे श्रेष्ठि वर्ग उसका ढीठ होना मान सकता है। उसकी संकोचहीनता को कुंठाग्रस्त मध्यम वर्ग उसकी बेहयाई मान सकता है।
आर्थिक रूप से पिछड़े दमित लोगों को उसका फूहड़पन द्वारा धन अर्जित करना अपने व्यक्तिगत बदले का संतोष देता है कि हममें से कोई एक सभ्रांत लोगों की कांच की हवेलियों पर अनगढ़ पत्थर की तरह आकर गिरा है, उन्हें उसकी सफलता वैसी ही लगती है जैसे श्याम बेनेगल की 'अंकुर' के अंतिम दृश्य में अबोध बालक जमींदार की हवेली पर पत्थर मारता है। राखी सावंत महज एक व्यक्ति नहीं है, वह हमारे रुग्ण समाज का प्रतीक है। वह कलर टेलीविजन पर प्राइवेट चैनल आने के बाद संस्कारहीनता और उसके सनसनीखेज स्वरूप को उजागर करता है। आखिर राखी सावंत क्या सोचकर चुनाव लड़ रही हैं? वह जानती है कि उसके जीतने के अवसर कम हैं और वह यह भी जानती है कि कोई दल उसे टिकट नहीं देगा। उसने अपने दल का उद्देश्य महिलाओं को समानता दिलाने का घोषित किया है परंतु उसके सारे प्रशंसक पुरुष हैं और नारियों को उससे सख्त परहेज है क्योंकि वह मर्दों की लम्पटता को अपने आंचल से हवा देती है। उसका आंचल उससे अधिक मुखर है, उसके उठने-गिरने की टाइमिंग कोहिली की बैटिंग की तरह है। सबसे बड़ी बात यह है कि राखी सावंत अपने मेहनत से अर्जित धन से चुनाव लड़ रही है, किसी औद्योगिक घराने का पैसा उसे उपलब्ध नहीं है और ना ही विदेश में बसे भारतीय उसे धन दे रहे हैं। उसका प्रचार कोई विदेशी कम्पनी ने नहीं रचा है, वह अपना प्रचार खुद ही है।
उसे संसदीय प्रणाली के गणतंत्र की जानकारी नहीं है और ना ही उसने संविधान पढ़ा है परंतु सच तो यह है कि अन्य अनेक प्रतियोगियों ने भी यह नहीं पढ़ा है। अनेक प्रतियोगियों के स्रोत संदिग्ध हैं परंतु राखी सावंत के जरिये सबके सामने उजागर है। राखी सावंत दागदार भी नहीं है और ना ही बाहुबली या अपराध जगत से उसका कोई संबंध है। धर्म के आधार पर मतों के ध्रुवीकरण के षड्यंत्र से वह अनभिज्ञ है। उसका कोई एजेंडा नहीं, जाहिर या छुपा हुआ। वह एकल व्यक्ति दल है तो सबसे अधिक प्रचार करने वाला दल भी एक व्यक्ति दल है। कई मानदंड ऐसे हैं जिन पर राखी सावंत सौ टंच शुद्ध सोना है। जितने सीमित धन और साधन से राखी सावंत चुनाव लड़ रही हैं, उतने ही धन और साधनों से जिस दिन हर आम आदमी के लिए चुनाव लडऩा संभव होगा तब विशुद्ध भारतीय संसद बनेगी।
अगर राखी सावंत को आइटम गर्ल मानते हैं तो मनोरंजन उद्योग से कुछ चुनाव लडऩे वाली महिलाओं ने भी आइटम ही जैसा कुछ तो किया है। अनेक दशक पूर्व जयललिता ने भी ठुमके लगाए थे। राजनीति में आइटम प्रस्तुत करने वालों की कमी नहीं है। राखी सावंत साधनहीन वर्ग से आई है और पूंजीवाद को विधिवत स्थापित करने का प्रयास करने वाले चुनाव में राखी का महत्व उसके निम्न आर्थिक वर्ग से आना है। अनपढ़ राखी सावंत उन पढ़े लिखों से बेहतर है जिन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई को बेचा है। बहरहाल कुछ लोग सोचते हैं कि भारतीय गणतंत्र के उजले चिकने चेहरे पर राखी सावंत एक मुहासे की तरह प्रकट हुई है। उत्सव प्रिय तमाशबीन भारत को उसके चुनाव लडऩे पर कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए।