राजस्थानी कविता रा ढाई डग / बी.एल. माली 'अशांत' / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012 |
साहित्य पैलापैल काव्य में बोल्यो है, भलांई वो काव्य रिगवेद री रिचावां हुवो भलांई लोक नै डिंगल गीत अर रास नै रासो साहित्य। ओ इज काव्य आधुनिक काल में आय’र कविता कैवायो है। इण बात नैं स्वीकारता थकां कोई लाज नीं आवणी चाइजै कै काव्य पतन री जात्रा है। ओ पतन कविता मांय देखी जाय सकै है। इण मांय इण कविता री 'साख’ है। बात विवादास्पद हुय सकै है पण इण मांय साच रो पळको है। साच चाये विवादग्रस्त हुवो चाये सीधो साच, वो साच इज हुवै। इण मांय कोई दुख नै धोखै आळी बात नीं है। धोखो अर घात तो कविता रै साथ हुयो है। साहित्य रै साथ भी कैवां तो कोई ओपरी का बेओपती बात नीं कहीज सकै। जठै आदमी अर मिनखपणै रै साथ धोखा है, उठै साहित्य री कांई बिसात!
राजस्थानी कविता आदिकाल सूं रास अर मध्यकाल मांय रासो, वचनिका नै साख री कविता रो रूप लेय’र आधुनिक काल में काव्य नैं छोड़ती थकी नई कविता सूं आज री कविता तांई पूगी है। कविता जे गायी नीं जावै तो उण मांय काव्य आणंद अर भावां रो अतिरेक कठै रह जावै। दिमाग री बात अलग है, ओ तो कठै रो कठै घूमतो रैवै! आज री कविता आपरो जण-जस खोय चुकी है।
आधुनिक राजस्थानी कविता पैलो डग बहोत सांतरो भर्यो है। वा हाड़ौती में बैठ’र छात पर चांदणी पीयी है, आपरी बेटी नैं काच देखतां देखी है, वा कवि री भायेली बणी है अर कांई-कांई बात बिसरा वा पूरी पाठी हुय’र काव्य साम्हीं ऊभी हुयी है। ओ जुग राजस्थानी कविता में काव्य जुग हो। आखै राजस्थान में कवीसरां इण काव्य रूप नैं अपणाय’र कवितावां रची है। कल्याणसिंह राजावत तो बहोत पछै आवै इणां रै पैलां बुद्धिप्रकाश पारीक आपरी कविता 'ईं मिंदर सूं जुत्ती चोरतां नैं देखतां, 'कळदार’ पकड़तां आपनैं साव दीखैला। ढूंढाड़ी रो रूप इण कालखंड में राजस्थानी मांय मिलतो आपनैं सवायो दीखैला। इणी भांत इण कालखंड रा लूंठा नै जबर कवि मेघराज मुकुल, गजानन वर्मा, विश्वनाथ 'विमलेश’, किशोर कल्पनाकांत, सीताराम महर्षि, गणपति स्वामी, रेवतदान चारण, गणेशलाल व्यास 'उस्ताद’ सरीसा कवि बहोत गैरी कविता रचता आपरै भीतर जगां कर लेवैला। चंद्रसिंहबिरकाळी आं सैंग में सिरै है। 'बादळी’ रो रूप अर 'लू’ रा लपरका आप देखो तो सरी! इणी कालखंड में कन्हैयालाल सेठिया, गिरधारी सिंह पडि़हार, हरीश भादाणी, मोहम्मद सदीक, कानदान कल्पित सरीसा कवीसर आपरै साम्हीं कविता रो डग भरता साव दीखैला! नारायण सिंह भाटी, सत्यप्रकाश जोशी इणी कालखंड रा नांवजादिक कवि है। राजस्थानी कविता रो बहोत सांतरो रचाव इण जुग में हुयो है। ओ कालखंड इणरी गुवाही है। 'चमकतो हिंगळूतणो सुहाग’, 'बाजरै री रोटी पोयी, फोफळियां रो साग जी’, 'मन रा मीत कान्हा रे मुडज़ा फौजां नै पाछी मौड़ ले’, 'चेत मांनखा’ 'आ तो सुरगां नै सरमावै’, 'जद पाबू चंवरी में आयो’, 'बीनणी बोट देण नैं चाली’, 'मुनिया काच देखबा लागी’, 'चाल! छात पर आज चांदणी पील्यां’ 'डब-डब भरिया बाई सा रा नैण’, 'तिस री कूख तिवाळा जलमै’, 'हूणियां’ रा चितराम सरीसी अनेकूं कवितावां इसड़ी है जिकी कविता रै इण काव्य जुग री गुवाही बणै। जे आं कवितावां नैं उदाहरण रूप में भी उल्लेख में लिरीजै तो इतरी कै पानां रा पानां भर जावै। बात कविता रस री है। ओ कविता रस राजस्थानी कविता रो परथम-परथम डग है। पैलो डग।
इण कालखंड सूं बारै निसरां तो कविता अेक नुवों डग भरती भळै दीखै। अठै आय’र कविता काव्य रूप छोड़’र 'नई कविता’ रो रूप लेती थकी 'आज री कविता’ रो रूप ले लेवै। आ कविता भारतीय आधुनिक कविता रै भेख में आवी है। इण कविता रा सिरैनांव कवि तेजसिंह जोधा है। तेजसिंह जोधा री कविता री समझ बहोत गैरी है। इणी कारण बैइण कविता रा आगीवांण कवि बण’र साम्हीं आवै। काव्य सूं कविता नैं काढ’र वै कविता नैं आज विश्व कविता रै रूप में लाय’र ऊभी करी है। तेजसिंह जोधा साथ कवियां री अेक जोड़ ऊभी हुयी। पारस अरोड़ा, गोरधनसिंह शेखावत , मणि मधुकर, ओंकार पारीक सरीसा कवि इण जोड़ का उल्लेखजोग कवि हैं। इण रै अलावा तेजसिंह जोधा री इण कविता धारा में भगवतीलाल व्यास, पे्रमजी प्रेम, मोहन आलोक, रामेश्वरदयाल श्रीमाली, आईदानसिंह भाटी अर सांवर दइया रा नांव जुड़ै। मोहन आलोक इण लोट मांय अलायदा दीखै। बाकी बहोत सा कवि इण कविता नै अपणाय’र पोथ्यां रची है पण वां री कविता में वो रचाव नीं आय सक्यो जिको कविता रै रूप में आवणो चाहिजै हो। पुरस्कार परवांण नीं हुय सकै। तेजसिंह जोधा नै कोई पुरस्कार नीं मिल्या पण वां रो नांव सबसूं ऊपरां है। देस री सिरैनांव हिन्दी पत्रिका आपरै मुख्य पृष्ठ माथै तेजसिंह जोधा री राजस्थानी कविता छाप’र इण बात नैं सिद्ध नै सीधी करी है। तेजसिंह बिना किणी ताफड़ां रो कवि है। आपरी मझ रो कवि! इणरी मजलां पूगणो दोरो काम! फकत इणी कवि नैं राजस्थानी कविता रै दूजै डग रो प्रतिष्ठित कवि कैयो जा सकै है। अठै कविता, परम्परागत कविता सूं बिलकुल अलायदी है।
कविता माथै इण चिंतन मांय कविता रै ढाई डग री बात कहीजी है। आं दो पूरा डग रै पछै अब बारी आधै डग री है, आधै डग रो अरथ भी अठै आपूंआप चड़ूड़ो हुवतो निजरां साम्हीं आ ज्यावै, बहोत जादा उघाड़णै री भी जरूरत नीं है। इण आधै डग रा कवि आपरी आधी पिछाण नांखता आपनैं साव निजरां पड़ैला। अठै कविता लिखणो अर कवि बणणों अेक बात रूप में दीखैला। फेर भी इण कालखंड अर आधै डग में बहोत उल्लेखजोग कवि भी लेखनी हेठै आवैला। जादा नीं तो अै कवि कविता रो शौक पाळता अर कविता रा ताफड़ा तोड़ता आपनै साव दीखैला। कविता रै इण आधै डग मांय पुरस्कार रा कवि अेक भीड़ रूप में ऊभा दीखैला अर कविता गौण रूप में। मिंतरो, कविता अलग बात है, कविता लिखणो अलग बात! इण आधै कविता डग मांय ओ रूप मुखर है। कवि कविता रची है, पण वै कविता रूप नीं लेय सकी। कवि कविता रच’र कवि बाजिया पण कवि रूप में प्रतिष्ठित नीं हुय सक्या। वां री कविता पैलड़ै कविता डग री भांत जुबान पर नीं आय सकी, लोक में रम नीं सकी। म्हारा अेक कवि मिंतर दस सूं भी बेसी कविता री पोथी रची है, वै म्हानै पूछै- म्हारी कविता केहड़ी है! म्हैं कांई जवाब दूं! मिंतरो, कविता में कविता बोलणी चाहिजै, कवि नीं! सत्यप्रकाश जोशी जद कहवै- 'चिनेक धरती नैं ढाबो, म्हानैं उतरणो’ तो धरती जाणै ढबती दीखै। आधुनिक कविता आपरी अर्थ भंगिमा रै जोर पर जण-जण में रमणै री ताकत राखै, कोई आ ताकत भरो तो सरी! 'मुडज़ा, फौजां नैं पाछी मोड़लै’ भी आधुनिक कविता रो रूप है, पण तेजसिंह जोधा रो रूप आधुनिक कविता रै बदळाव सूं जुड़ो हुवणै रै कारणै वै इण कविता रा आगीवांण कवि कहीजै- 'इण गांव में कीं व्हेगो है, व्हेगो है!’ कविता राजस्थानी नई कविता री पिछाण वण साम्हीं आवै। इण तरां कविता रूप कोई भरै तो सरी!
कविता रै आधै डग मांय कई कवि कविता कहता दीखै। संतोष माया मोहन इण कवियां मांय सबसूं सिरै है। आज तांई 'सिमरण’ रै सोच अर कथ्य रै उनमांन राजस्थानी में इसड़ी कविता नीं रची गयी है। आ बात और है कै इण मांय मोहन आलोक री छाया है। बेटी है तो पिता री छाया हुवैला। कवि आपसरी में भी बांटै। जे और बातां पर ध्यान नीं दीरीजै तो इण कविता री पुखताई पर कोई आंगळी नीं उठ सकै। तेजसिंह जोधा रै पछै संतोष माया मोहन अेक कविता रै संतोष रो नांव है। आपरी छिब अर सदी रै परवांण आ कविता, कविता रै आधै डग मांय सिरैनांव कविता है! इण माथै कोई कविता नैं समझण आळो आंगळी नीं उठावैला। और बातआपरी जगां हुय सकै है।
कविता बहोत लोग लिखी है। कविता सूं बहोत लोग कबड्डी भी खेली है। उघाड़ी नैं देख’र हर कोई मन चला लेवै! पण कविता तो लिखै! आं कबड्डी घालणियां कवियां रो अेक न्यारो पाळो राजस्थानी कविता में है, जठै कविता, कविता सूं परवारै खड़ी है! स्यात डरप परी! अै कविता करणियां कविता नैं पूरो पांवडो नीं भरण दियो, वा ऊभी आं नैं देख रैयी है। फेर भी इण कालखंड में कई नांव सांतरै रूप में उभर परा आया है। वां मांय मीठेश निर्मोही अेक अलायदो नांव है। वो इण कारण कै पैली बर राजस्थानी रो अेक कवि प्रखर रूप मांय नारी नैं आंदोलित रूप में देखी है। अै कविता, अर इण रास री कविता राजस्थानी मांय उत्तर आधुनिक काल री पिछांण है। कोई मां नैं पुकारी है तो कोई बाप री मां माथै ज्यादतियां रो पूळो बांधियो है, कोई डिगता गढां माथै कविता नैं बैठाई है तो कोई उणनैं रेत में रुळाई है। कई नैं ठाह ई नीं है कै वै कांई लिख रैया है! गद्य कविता नैं कविता रूप देणो कविता रचणो है। कविता रचणैं नैं सोरो काम समझ’र जिकी रचना हुयी है वै इण आधै डग री पिछाण बणी है। इण आधै डग में कई कवि तो, हाल इज गुम चुक्या है, वै काल कियां जीवैला?
'आ बैठ बात करां’ जिसी कविता 'कविता री बात’ री पिछाण है, पण इसड़ा कवि इण कालखंड में कितरा? बात साफ है, कविता रो अढाइवों डग बेसी कविता रै साथ खिलवाड़ रो डग है। ओ आधो डग उल्लेखजोग है- इण मांय, कविता नैं उत्तर आधुनिक काल में ले जावणैं री कविता भी रचीजी है। अै कविता अर अै कवि आपरी पिछाण बणावैला। बाकी कविता कीड़ी-मकोड़ी री तरियां मर जावैला! अै कवितावां आज इज जन-मानस री जुबान सूं अलग हुय चुकी है, आगै जीणै रा इण मांय सांस नीं है। इणरो दोस इणांरै रचेतावां रो है। कविता मांय ओ उल्लेख आगै ऊजळै डग सारू जरूरी है। जे आ बात साम्हीं नीं लायीजै तो ओ कविता रै साथ धोखो हुवैला।
राजस्थानी में सदी रै सिर माथै सोहणियां कवियां री अेक सोवणी पांत है। आ पांत परथम डग रै कवियां री बेसी अर कविता रै दूजै डग भरणियां कवियां रो, जोड़ में कम है, क्यूंकै नई कविता बहोत कमती कवि इज पनपाया है। इणरै पछै आ नई कविता आज री कविता बणगी है जिणनै कियां इज मांडो। इण 'कियां इज’ री प्रक्रिया में कवि जादा अर कविता कम लिखी गई है। आज री कविता में कवि बहोत है अर कविता कमती! कविता माथै पुरस्कार प्राप्त कवियां नैं आज इज लोग भूलग्या है, इण बात नैं कवि गुणै। बात री पूंण नैं पिछाणै! बीसवीं सदी रै आठवैं दसक रै पछै अर इक्कीसवीं सदी रै पैलड़ै दसक सूं अब तांई काफी कविता लिखी गई पण कोई कविता तेजसिंह जोधा रै सिर रै ऊपरोकर नीं निसर सकी। राजस्थानी रा कई कवि आपनै इसड़ा भी दिखैला जिका बीस-बीस पोथ्यां छपवाई है, पण वै कविता रै मन नीं भाय सकिया, कविता पुरस्कार नै बड़ा नीं मानिया अर नीं कविता री समझ इज! कई आलोचक कवि भी, आपनैं पुरस्कार पकड़्यां हांफता दिखैला जिका आपरी आलोचना नै 'साहित्य रै सांसदां’ रै कदमां में राख’र कविता रूप-धरम प्राप्त कर लियो पण कविता, वा नैं नीं मानीं। जिण भांत वै आलोचना नैं मानीं। अेक कविता नीं लिखै कवि बणणै खातर कविता रा लीक-लिकोळिया मांडै। अै लोग बडो मोरचो मार’र अपणै आपनै कवि थरपणै रा जतन करिया है पण सदी आं नै स्वीकार नीं कर्या अर नीं कविता इज! अै सैंग कवतिा रै आधै डग रा निर्माता है। इण डग मांय, लारला तीस-पैंतीस सालां में कई कवीसर आपरी दौड़ी दौडिय़ा है। पण आं कवीसरां रो ध्यान कविता पर कम अर बीजी बातां पर बेसी रैयो है। आज भी अै हालात कवियां माथै सूं उतर्या नीं है। इणी कारण कविता आं नैं आपरै आभै सूं उतार दिया है। कई कवि उतरोड़ा घड़ा री भांत भी राजस्थानी कविता धरातळ पर बैठ्या साव दीखैला। कविता री दुरगत करण आळा कवियां री कविता बहोत ठाडी दुरगत करी है, ओ काम कविता छोड़ैला नीं! सदी रा लाभ लेवणियां कवि, कविता छोड़ैला नीं! बांकी-बावळी गद्यहीण-पद्यहीण कविता लिख’र 'म्हैं भी कवि हूं’ री हेठी बतावणियां री बात, ओ टांग मोड़्यां ऊभो आधो डग अलायधी इज कर’र दुखी हुवै। कलम तो इण बात नैं मांडै इज है फकत!
इण तीसरै पांवडै में कविता बहोत लिखी गई है, पण 'कविता’ बहोत कम! इणी कारण कविता तीसरो डग भरती अधबीच में इज ऊभी हुयगी। कवि इण बात नै समझै तो कविता आगै चालै। पण कवि तो कठै और इज अळुझज्यो है! 'कवि’ कविता री बात नैं नीं समझैला तो बात कीकर बणैली! मारग में डूंगरां बीच बहोत बडो घाटो आयग्यो है! आं कवियां अर आं री कविता रै तांण कविता रो ओ डग आधो इज रैयग्यो है, उणी भांत जियां आधा देयी-देवता अर आधा खेतरपाळ! कविता री पाळ बांधणियां नीं है तो, कविता री बात कठै हुवैला?
पण कुवां ई भांग नीं पड़ी है। इण वास्तै ओ डग आधो है! राजस्थानी कविता इण स्थिति सूं पार पावैला तो इज पार पड़ैला। अेक दिन थावस सूं आओ, बैठो! (कविता माथै) बात करो!
इण सदी में कविता लिखीजी है, पण इण कविता नैं देख’र कविता बहोत हांसी है। पण कवि उणरी हांसी नैं देख नीं, संकिया। जे वै मरम देख लेवतां ताकविता पर बात जरूर बणती। कविता नैं दोस नीं है, दोस कविता रै मांडणियां नैं है। बड़ा मिनखां! कविता भोगिन नीं है! सार रूप में, गई सदी रै पछै लिखी कविता रा कविताकार कवि कविता नैं तीसरो पूरो पांवडो भरण ई नीं दियो। आधो डग वा भरियो तो वो संतोष माया मोहन, मीठेश निर्मोही, रामस्वरूप किसान सरीसा कवियां रै पांण भरियो है।
लारला दिनां कवितावां रा कीं संपादन प्रकासित हुया है, वै अयोग्य संपादकां दुवारा संपादित हुवणै संू कविता री बात आपरै भीतर नीं लेय सकिया, अेक संपादन म्हारै कनैं दो बर समीक्षा सारू आवियो हो, संपादक रो चेरो देख’र म्हैं उणरी समीक्षा खातर मना कर दियो। म्हारो लिख्यो कागद संपादक महोदय लेखकां नैं आज भी दिखावै। संपादन हुवतो तो समीक्षा हुवती। पचास गळतियां कवियां रै परिचै में ही, मैनत नीं करी ही। लाग्यो जाणै किणी दूजै सूं बणाय’र आपरो नांव धर्यो हुवै। इसड़ा संपादन कविता नैं पग धरण ई नीं दियो। बात नैं खावणियां नैं बात खा ज्यावै, अर आ हुवैला। संपादन करावण आळा संस्थान (साहित्य अकादेमी, दिल्ली आद) रै साथै अै संपादक धोखो कियो है, अर राजस्थानी रा गोडा तोड़्या है। ठाह नीं, अै रचनाकार कांई करैला। अेक बात आं री भासा पर कैवणी उचित हुवैला। काम, राम पर बिंदी लगा’र अै आपरी आखी योग्यता साबित कर दीनी है। जिका 'रांम’ पर बिंदी लगावै वां रो 'राम’ (भासा ग्यान-ध्वनि विज्ञान, व्याकरण ग्यान) निसरोड़ो है! मिंतरो, आदिकाल सूं अबतांई लिखी राजस्थानी कविता माथै आ 'बिंदी’ नीं है! आं संपादकां नैं आपरी अयोग्यता कलम सूं नाप लेणी चाहिजै। योग्यता आ, कै अै फकत संपादन मांय बिंदी लगाई है, आपरी निजू कविता मांय नीं! कविता रो तीजो डग आं सरीसा 'महाकवियां’ रै कारण इज पूरो नीं भरिजियो। राजस्थानी कविता रा अै गोडा तोड़ नांखिया। कविता बीच गेलै में इज गोडा पकड़’र बैठगी।
जे राजस्थानी कविता ओ तीजो डग पूरो भर लेवती तो आ पूरी धरती नाप जावती। दोसी कविता नीं है, कवि, कविता रा 'दोखी’ है।