राजा/ असगर वज़ाहत
उन दिनों शेर और लोमड़ी दोनों का धंधा मंदा पड़ गया था। लोमड़ी किसी से चिकनी-चुपड़ी बातें करती तो लोग समझ जाते कि दाल में कुछ काला है। शेर दहाड़कर किसी जानवर को बुलाता तो वह जल्दी से अपने घर में घुस जाता।
ऐसे हालात से तंग आकर एक दिन लोमड़ी और शेर ने सोचा कि आपस में खालें बदल लें। शेर ने लोमड़ी की खाल पहन ली और लोमड़ी ने शेर की खाल। अब शेर को लोग लोमड़ी समझते और लोमड़ी को शेर। शेर के पास छोटे-मोटे जानवर अपने आप चले आते और शेर उन्हें गड़प जाता।
लोमड़ी को देखकर लोग भागते तो वह चिल्लाती 'अरे सुनो भाई. . .अरे इधर आना लालाजी. . .बात तो सुनो पंडितजी!' शेर का यह रंग-ढंग देखकर लोग समझे कि शेर ने कंठी ले ली है। वे शेर, यानी लोमड़ी के पास आ जाते। शेर उनसे मीठी-मीठी बातें करता और बड़े प्यार से गुड़ और घी मांगता। लोग दे देते। खुश होते कि चलो सस्ते छूटे।
एक दिन शेर लोमड़ी के पास आया और बोला, 'मुझे अपना दरबार करना है। तुम मेरी खाल मुझे वापस कर दो। मैं लोमड़ी की खाल में दरबार कैसे कर सकता हूं?' लोमड़ी ने उससे कहा, 'ठीक है, तुम परसों आना।' शेर चला गया।
लोमड़ी बड़ी चालाक थी। वह अगले ही दिन दरबार में चली गई। सिंहासन पर बैठ गई। राजा बन गई।
दोस्तो, यह कहानी बहुत पुरानी है। आज जो जंगल के राजा हैं वे दरअसल उसी लोमड़ी की संतानें हैं, जो शेर की खाल पहनकर राजा बन गई थी।