राजेश्‍वर सिंह के नाम पत्र / रामधारी सिंह 'दिनकर'

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५, सफदरजंग लेन, नई दिल्‍ली

२३.३.७१

प्रियवर,

बुढ़ापे की मुसीबत को जानते हो?

उस दर्द को पहचानते हो

जो बुढ़ापे के सीने में उठता है?

बुढ़ापे की मुसीबत बुढ़ापा नहीं,

जवानी है।

यह भी एक अबूझ कहानी है

कि शरीर बूढ़ा होने पर भी

मन नहीं मरता है।

जिन रंगीनियों में जवानी गुजरी है,

बुढ़ापा ऊँघता-ऊँघता भी

उन्‍हें याद करता है।


आपका

रामधारीसिंह दिनकर