राज्यसभा दूरदर्शन की भेंट 'संविधान' / जयप्रकाश चौकसे

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राज्यसभा दूरदर्शन की भेंट 'संविधान'
प्रकाशन तिथि : 13 मार्च 2014


राज्यसभा दूरदर्शन के लिए श्याम बेनेगल ने 'संविधान' नामक टीवी फिल्म बनाई है जो दूरदर्शन के साथ ही स्कूलों में दिखाई जाएगी ताकि भविष्य के नागरिक अपने देश के संविधान को समझें और उसे बनाने में आई परेशानियों और संघर्ष को समझ सकें। इसका निर्माण सन् '46' में शुरू हुआ ओर तीन वर्ष पश्चात् '49' में पूरा हुआ। यह उस काल खंड में संभव हो सका क्योंकि उस समय भारत में अत्यंत समर्पित एवं प्रतिभाशाली लोग थे और सबसे बड़ी बात यह कि वे लोग भारत को अच्छी तरह समझते थे और इसके साथ ही उन्हें अन्य गणतांत्रिक देशों के संविधान की गहरी जानकारी थी, अत: पूर्व और पश्चिम के राजनैतिक विचारों का श्रेष्ठ इसमें समाहित है। किसी भी अन्य देश से अधिक कठिन काम भारत का संविधान बनाना था क्योंकि इसमें विभिन्न भाषाएं और अनगिनत बोलियां बोलने वाले लोग रहते हैं और अनेक धर्मों को मानने वाले नागरिक हैं। यद्यपि महात्मा गांधी संविधान बनाने वाली सभा के सदस्य नहीं थे, परंतु उनका प्रभाव इसके निर्माण पर सबसे अधिक है। डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर विलक्षण प्रतिभा के धनी थे तथा उनका गांधीजी के साथ जातिप्रभा को लेकर गहरा मतभेद भी था परंतु यह वह दौर था, जब मतभेद का अर्थ दुश्मनी नहीं था। सचिन खेडकर ने डॉ. आंबेडकर की भूमिका निबाही है और कुछ वर्ष पूर्व वे श्याम बेनेगल की फिल्म में सुभाषचंद्र बोस की भूमिका कर चुके थे। दिलीप ताहिल ने 'भाग मिल्खा भाग' में जवाहरलाल नेहरू की संक्षिप्त भूमिका की थी और इसमें वह भूमिका बड़ी भी है और महत्वपूर्ण भी। दिलीप ताहिल ने नेहरू के भाषणों के टेप बार-बार सुने तथा पुराने वृतचित्र भी देखे। इसी तरह की तैयारी सभी कलाकारों ने की।

इसकी तीन माह तक चलने वाली शूटिंग के लिए संसद का सेट लगाया गया, पंडित नेहरू के दफ्तर का भी सेट लगाया गया। आर्ट डायरेक्टर चेतन पाठक ने गहरी शोध और कड़ी मेहनत से विश्वनीय सेट बनाए तथा स्वरा भास्कर का अंश मौजूद संसद भवन में किया गया। राज्य सभा दूरदर्शन के पास साधन है परंतु श्याम बेनेगल जैसा निर्देशक ही विश्वसनीयता ला पाया। उन्हें नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर सार्थक सीरियल बनाने का अनुभव भी है। सबसे बड़ी बात उनका तर्कपूर्ण दृष्टिकोण और एस्थेटिक्स मूल्य हैं जो किसी और फिल्मकार के पास नहीं हैं। इस तरह के डाक्यू-ड्रामा बनाना आसान काम नहीं है और इसके लिए इतिहास दृष्टिकोण भी होना चाहिए। इस दस एपिसोड के सीरियल के लिए एक टीम ने एक वर्ष तक शोध किया। अब इसे सभी भारतीय भाषाओं में डब किया जा रहा है।

आज के राजनीतिक परिदृश्य के शोर, हंगामे और सत्ता-लोलुपता को देखकर हम कह सकते हैं कि उस समय डॉ. आंबेडकर और उनके साथियों ने कितने वाद-विवाद और भीतरी संघर्ष के बाद संविधान रचने का काम किया होगा। आज हर दल के भीतर अनेक दल हैं और विघटन की शक्तियां उस समय भी सक्रिय थीं, अत: किन मुश्किलों से यह काम किया गया होगा। आज हम भारत का जो टूटता-बिखरता सा स्वरूप देखते हैं, वे सब प्रवृत्तियां उस समय भी मौजूद थीं तथा धर्मनिरपेक्षता की नींव कितनी कठिनाई से रखी गई होगी। हर नेता ने अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभाया परंतु सबसे अधिक दबाव डॉ. आंबेडकर पर रहा होगा। उन्होंने निचले आर्थिक तबके में जन्म लेकर अपनी विलक्षण प्रतिभा से उच्चतम शिक्षा ग्रहण की और उनका दृष्टिकोण अत्यंत तर्कसम्मत और आधुनिक रहा परंतु वे इस देश के सामाजिक इतिहास और विविध प्रवृत्तियों तथा कठोर ज़हालत से भी बखूबी परिचित थे क्योंकि उनका सारा जीवन ही नकारात्मक प्रवृत्तियों के खिलाफ संघर्ष में बीता था।

आजकल एक विज्ञापन फिल्म बार-बार टेलीविजन पर दिखाई जा रही है जिसमें एक नन्हीं मासूम बालिका इतिहास के दुरूह पाठ से जूझ रही है और उसके सामने बाबर, अकबर और हुमायूं आ खड़े होते हैं। वे कहते हैं कि जो तुम इतिहास से जूझ रही हो, हम उसी के पात्र हैं और तुम्हारी सहायता करने आए हैं, तुम अपने पाठ के कारण हमसे खफा तो नहीं हो। वे तीनों उसे एक चॉकलेट देते हैं और कहते हैं इसे खाकर तुममें इतनी शक्ति और स्फूर्ति आ जाएगी कि तुम इतिहास समझ सकोगी। इस विज्ञापन में छुपे अनेक अर्थ हैं और संकेत हैं कि इतिहास के पात्रों को सजीव देखने से उन्हें समझना आसान हो जाता है। दरअसल अक्षम शिक्षक की अपने विषय को जानकर दुरूह बनाते हैं ताकि उनका महत्व बढ़े और उनका अज्ञान छुपा रह जाए।

बहरहाल 'संविधान' सारे नागरिकों के साथ बच्चों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सवाल हवा में रहेंगे कि क्या संविधान ने उनकी रक्षा की है और वे संविधान की रक्षा कर सकेंगे?