राज कपूर, जब्बार पटेल और लहसुन की चटनी / जयप्रकाश चौकसे

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राज कपूर, जब्बार पटेल और लहसुन की चटनी
प्रकाशन तिथि :30 जून 2015


रूस के एक फिल्म महोत्सव के समय डाइनिंग हॉल में फिल्मकार और रंगकर्मी डॉ. जब्बार पटेल रूस के स्वादहीन खाने में मिलाने के लिए अपनी चटनियों के डिब्बे लेकर आए थे। जैसे ही उन्होंने लहसुन की चटनी का डब्बा खोला दूर बैठे राज कपूर ने कहा, 'रूस में पूना के लहसुन की चटनी की गंध कैसे, कौन लाया है, थोड़ी मुझे भी दो।' डॉ. जब्बार पटेल से राज कपूर ने निवेदन किया कि अब वे पति-पत्नी रोज मेरे साथ खाएं और चटनी जरूर लाएं। राज कपूर और डॉ. जब्बार पटेल इस मायने में पड़ोसी हैं कि लोनी के फार्म हाउस से थोड़ी-सी दूर स्थित गांव में डॉ. जब्बार पटेल रहते हैं। अगली सुबह ऋषि कपूर ने डॉ. जब्बार पटेल से कहा कि होटल के बाहर सुबह दस बजे जरूर मिलें और जिज्ञासा से भरे पटेल वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि हजारों रूसी युवा वहां इकट्‌ठा हैं। ऋषि कपूर ने कहा कि रोज सुबह यह नज़ारा देखने को मिलता है। ठीक दस बजे राज कपूर अपने कमरे की बालकनी में आए और उन्होंने प्रशंसकों का अभिवादन किया। सारे युवा एक सुर में लगभग पांच मिनट तक राज..राज..राज पुकारते रहे अौर फिर वहां से रवाना हुए। डॉ. जब्बार पटेल का कहना है कि वैसा प्यार उन्होंने कभी किसी फिल्मकार को विदेश में पाते नहीं देखा।

इस राज पुराण का जिक्र आज इसलिए हो रहा है, क्योंकि डॉ. जब्बार पटेल ने राज कपूर के लोनी फार्म में 25 एकड़ पर फिल्म प्रशिक्षण संस्थान बनाने के लिए उस जगह के नए मालिक को तैयार कर लिया है, जो एक शिक्षण संस्था शृंखला संचालित करते हैं। उन्होंने नए मालिक से कहा है कि यह संस्थान उनके विराट समूह में जुड़ जाए। 25 एकड़ जमीन के साथ संस्था 40 करोड़ का खर्च भी कर रही है। वहां 120 बाय 80 फीट का स्टूडियो निर्माणाधीन है तथा संस्था का नाम होगा 'एमआईटी स्कूल ऑफ फिल्म मेकिंग इन मेमोरी ऑफ राज कपूर।' ज्ञातव्य है कि राज कपूर के पुत्रों ने अपने पिता की इच्छा के अनुरूप बाजार भाव से मात्र दस प्रतिशत राशि लेकर वह सौ एकड़ का फार्म हाउस एक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान को बेचा था अौर वहां उनकी अन्य संस्थाएं चल रही है परंतु उन्होंने अपने वचन के अनुसार राज कपूर के बंगले और प्रोजेक्शन रूम तथा पृथ्वीराज व राज कपूर की अस्थि विसर्जन की जगह पर बने स्मारक का पूरा ध्यान रखा है और आज भी रोज सुबह वहां फूल रखे जाते हैं और शाम को दिया जलाया जाता है (जब यह जमीन बेची गई थी तब इस तरह के फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की कोई बात नहीं तय हुई थी।) अब डॉ. जब्बार पटेल के निवेदन पर संस्थापकों ने यह निर्णय लिया है। ज्ञातव्य है कि राज कपूर के जीवन काल में भी वहां कभी खेती-बाड़ी नहीं हुई, केवल शूटिंग के लिए बाग-बगीचे इत्यादि बनाए गए थे। स्वयं राज कपूर की 'सत्यम् शिवम् और सुंदरम्', 'प्रेम रोग' और 'राम तेरी गंगा मैली' की कुछ शूटिंग वहां हुई थी और यश चोपड़ा की 'काला पत्थर' पूरी ही वहां बनी थी।

एक बार डॉ. जब्बार पटेल ने राज कपूर से अनुरोध किया कि वह उनका निर्देशित और विजय तेंडुलकर का लिखा 'घासीराम कोतवाल' का मंचन देखने आएं। जब नियत समय तक राज कपूर नहीं पहुंचे तो पटेल साहब ने रंगमंच की परंपरानुसार ठीक समय पर मंचन प्रारंभ किया। शो समाप्त होने पर राज कपूर पिछले दरवाजे से स्टेज के पीछे गए और पटेल साहब तथा कलाकारों को बधाई दी। राज कपूर ने पटेल को बताया कि उनके तीन कर्मचारी पहले पहुंचे और मंचन प्रारंभ होते ही राज कपूर एक चादर से अपने को पूरी तरह ढंककर बैठे कि कोई उन्हें पहचान न पाए और मंचन में सितारे की मौजूदगी से बाधा नहीं पहुंचे! राज कपूर की शिक्षा ही पृथ्वी थिएटर्स में रंगमंच के महान संस्कारों के साथ हुई थी। ज्ञातव्य है कि 'राम तेरी गंगा मैली' के बाद राज कपूर की अपनी कहानी 'रिश्वत' की पटकथा और संवाद के लिए उन्होंने विजय तेंडुलकर को आमंत्रित किया था। यथार्थ संयोग और घटनाएं सिनेमा पटकथा से ज्यादा रोचक होती है? क्या राज कपूर के अवचेतन में इस तरह का संस्थान लोनी की लहसन की चटनी की तरह जमा हुआ था।