राज कपूर और रणबीर कपूर के सिनेमा में अंतर / जयप्रकाश चौकसे

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राज कपूर और रणबीर कपूर के सिनेमा में अंतर
प्रकाशन तिथि :19 अप्रैल 2016


ऋषि कपूरने 1981 में पॉली हील पर अपने विवाह के पूर्व अपना नीड़ बनाया था और अब उसी नीड़ का पुन: निर्माण किया जा रहा है। इस बहुमंजिले में पांच प्लोर पार्किंग के लिए हैं। ऊपर ही एक फ्लोर पर जिम और स्वीमिंग पूल बनाया जाएगा। यह संभव है कि इस बहुमंजिला मंे कुछ माले किराए पर भी दिए जाएं। इस नवनिर्माण के दौरान ऋषि कपूर और नीतू पॉली हिल पर अपने एक अन्य फ्लैट में रहेंगे तथा रणबीर कपूर अपने दादा राज कपूर के चेम्बुर निवास पर रहेंगे गोयाकि इस निवास पर राज कपूर के जीवन काल में जो चहल-पहल, सृजन तरंगे, गुणीजनों का आना-जाना चलता था, वह सब अब फिर होगा और कृष्णा कपूर उन्हीं दिनों को दोबारा घटित होते देखते हुए यादों की जुगाली भी करेंगी। वृद्धावस्था में यादों की जुगाली नई गिज़ा बन जाती है। वे यह भी महसूस करेंगी कि फिल्म निर्माण के दोनों दौर में कितना अंतर हो गया है। शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत आकर महफिल जमाते थे और बातों ही बातों में गाने बन जाते थे जैसे शैलेंद्र ने किसी बहस के समय कहा, 'हम भी है तुम भी हो आमने सामने, देखो क्या असर कर दिया राज के नाम ने।' किंचित परिवर्तन के साथ यह 'जिस देश में गंगा बहती है' के गीत का मुखड़ा बन गया। अब रणवीर कपूर और इम्तियाज अली के प्रिय गीतकार इरशाद कामिल उसी मकाम पर बैठकर नए तराने बनाएंगे। इन्हीं तरानों से फसाने बनेंगे और चेम्बुर में फिल्म सृजन कुंभ लगेगा। यह कुंभ बारह साल बाद नहीं, आधी सदी बाद जमा है। शायद इसका यही मुहू्र्त था।

राज कपूर के लॉन में लकड़ी का एक डांस फ्लोर भी है, जिस पर से वक्त की धूल साफ करके युवा रणबीर अपनी ताज़ा तरीन गर्लफ्रेंड के साथ वाल्ट्ज करेंगे। वहां लगे घने दरख्तों पर बैठे पंछी इस देर आयद वसंत से मुग्ध हो जाएंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि मोर नाचने लगे। शराबनोशी के आलम में कोई हंसोड़ गाए, 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा, हम थोड़ी-सी पी के बहके जमाने ने देखा।' नेताओं के मिलने पर अवाम के खिलाफ षड्यंत्र रचे जाते हैं, कलाधर्मी मिलते हैं तो पटकथा बनती है, संगीत का सृजन होता है। सभी लोग अपनी पैदाइशी कमतरी और ताकतों से बंधे होते हैं। बंधन इतने प्रकार के हैं कि संपूर्ण स्वतंत्रता महज आदर्श सपना मात्र है। बकौल निदा फाज़ली, 'आज़ाद तू, आज़ाद मैं, जंजीर बदलती रहती है।' दीवार वही रहती है, मगर तस्वीर बदलती रहती है। रणबीर कपूर के मंत्रिमंडल में उनके बाल सखा अयान मुखर्जी सिपहसालार का दर्जा रखते हैं और वे भी रणबीर की तरह एक पुराने फिल्मी घराने के नुमाइंदा हैं। कपूर घराने का विश्वास सामाजिक प्रतिबद्धता वाले मनोरंजन में था परंतु मुखर्जी घराना विशुद्ध मास मसाला रचता रहा है। अयान मुखर्जी की 'वेक अप सिड' किसी घराने की फिल्म नहीं थी। वह अयान की अजान थी। उनकी दूसरी फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' संपूर्ण मनोरंजन थी और हर रुचि के दर्शक की पसंद थी। अब अयान मुखर्जी अपने ढंग की सुपरहीरो फिल्म लिख रहे हैं। रनबीर और अयान बचपन से मित्र हैं और प्रतिदिन अधिकांश समय साथ गुजारते हैं। उनके लेखन में वे एक-दूसरे के भागीदार हैं। सुपरहीरो अवधारणा मनुष्य की असीमित शक्तियों की कामना है, वह उड़ना चाहता है। गिरती इमारत को हाथों से थमना चाहता है और प्रलय से भी लड़ने की ताकत रखता है अर्थात असंभव को संभव बनाना चाहता है। सामान्य मनुष्य नायक अवधारणा में कमजोर से आदमी कठिन परिस्थितियों में अपनी नैतिकता का निर्वाह करता है। वह जीवन के असमान संग्राम में आनंद का जेबकतरा है। जहां अवसर मिले आनंद लेना और दूसरों को देना चाहता है। इस आम आदमी अवधारणा के मूल रचयिता चार्ली चैपलिन हुए हैं और भारत में राज कपूर इसके प्रतिनिधि कलाकार हुए हैं। विगत दशकों में सिनेमा टेक्नोलॉजी के विकास के साथ उसके भरपूर प्रयोग के लिए सुपरमैन की अवधारणा की फिल्मों ने अपनी संख्या से आम आदमी वाले नायक की फिल्मों को हाशिये में डाल दिया है। आम आदमी छवि का नायक मिट्‌टी पकड़ पहलवान होता है, जो पिटता रहता है परंतु चित नहीं होता। उसका पराजय को अस्वीकार करते रहना उसके लिए विजय का पथ प्रशस्त करती है। सुपरमैन नायक आसमान छूना चाहता है और पराजय उसके शब्दकोश में नहीं है। आरके लक्ष्मण के कारटून आम आदमी की गाथा प्रस्तुत करते थे और जादुगर मैन्ड्रैक्स की श्रेणी की फिल्में सुपरमैन अवधारणा की फिल्में हैं। अत: ये दोनों अवधारणाएं दिये और तूफान की लड़ाई की तरह है। गांधी के पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने के प्रयास सुपरमैन श्रेणी में रखे जा सकते हैं तथा गांधी और उनके प्रयास कमजोर आम आदमी के प्रयास के प्रतीक माने जा सकते हैं।

आज की आर्थिक राजनीतिक परिस्थितियों ने आम आदमी को युद्ध क्षेत्र से बाहर दर्शक गैलरी में बैठा दिया है कि तेरे अपने अस्तित्व की लड़ाई अब तू नहीं लड़ेगा। दर्शक दीर्घा में बैठकर सामने हो रहे छाया युद्ध पर तालियां बजा- तू अब सिर्फ तमाशबीन है। धर्मवीर भारती याद आते हैं 'हम सबके माथे पर दाग, हम सबकी आत्मा में झूठ, हम सब सैनिक अपराजेय, हाथों में सिर्फ तलवारों की मूठ।'