राज बब्बर, नेहरू और गंगा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 जुलाई 2016
अभिनेता-नेता राज बब्बर को कांग्रेस के उत्तरप्रदेश चुनाव में महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व दिया गया है। मरणासन्न कांग्रेस में कोई हरकत तो नज़र नहीं आई है। जवाबी हमले में भाजपा स्मृति ईरानी को अपनी ओर से यह उत्तरदायित्व दे सकती है, क्योंकि राजनीतिक दलों की सोचने की क्षमता इतनी ही है। राज बब्बर समाजवादी विचारधारा के व्यक्ति हैं और साफगोई की उन्हें आदत है। उनका लचीलापन उन्हें तमाम विरोधी पक्षों को साथ ला सकता है और बिहार की तरह सभी दल एक तरफ और भाजपा दूसरी तरफ जा सकते हैं। राज बब्बर मिलनसार, लचीले अौर दूरंदेशी व्यक्ति हैं। उत्तरप्रदेश के कुरुक्षेत्र मंे दोनों दलों के सिपहसालारों का मनोरंजन जगत से जुड़ा होना भी गहरा संकेत होगा। अवाम तमाशा देखना पसंद करता है और उत्तरप्रदेश के चुनाव में घमासान मजमा जमेगा। इस प्रदेश से ही अधिकांश प्रधानमंत्री आए हैं। यहां तक कि मौजूदा प्रधानमंत्री ने भी बनारस से ही चुनाव लड़ा था। गंगा के पावन तट हमेशा ही योद्धा और चिंतक देते रहे हैं। गंगा फिल्मों के नामों की भी गंगोत्री रही है- 'गंगा की सौगंध,गंगा मैया तुहे पियरी चढ़ावे,जिस देश मंें गंगा बहती है,राम तेरी गंगा मैली इत्यादि।' महान नेता नेहरू हों या सफल फिल्मकार राज कपूर सभी के अवचेतन में गंगा सतत प्रवाहमान रही है। गंगा से मीलों दूर बसे घरों में भी एक लोटा गंगाजल अवश्य होता है। नेहरू की वसीयत में भी गंगा महिमा वर्णित है और एक जगह उन्होंने लिखा है कि सुबह के समय की गंगा भरी दोपहर की गंगा और संध्याकाल में गंगा अलग-अलग स्वरूप में दिखाई पड़ती है। उन्होंने गंगा का वर्णन कवि की तरह किया है। राज बब्बर को नेहरू का लिखा गंगा विवरण अवश्य पढ़ना चाहिए, क्योंकि उत्तरप्रदेश की नब्ज़ है गंगा।
राज बब्बर दिल्ली और पंजाब रंगमंच पर अपने लड़कपन से ही मोहित रहे हैं और बलदेवराज चोपड़ा ने उन्हें 'इन्साफ का तराजू' में प्रस्तुत किया था। खलनायक से प्रारंभ करके नायक की भूमिकाअों तक की यात्रा राज बब्बर ने शत्रुघ्न सिन्हा से अधिक तीव्र गति से की थी। उन्होंने पंजाबी और हिंदुस्तानी भाषाओं में फिल्मों का निर्माण भी किया है और अपनी पत्नी स्मिता पाटिल की 'मदर इंडिया' जैसे महत्व वाली 'वारिस' भी उन्होंने ही बनाई है। इस फिल्म के केंद्र में स्मिता पाटिल ही थीं और स्वयं निर्माता राज बब्बर ने सहायक भूमिका निभाई थी। अत: स्पष्ट है कि राजनीति में वे उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए सभी साथियों को भरपूर महत्व एवं अवसर देंगे। वे मुहंफट और बड़जोर नहीं हैं परंतु संयम और समन्वय में विश्वास करते हैं। उन पर सभी धर्मों के मानने वालों का भरोसा भी रहेगा और दलित दमित वर्ग उनसे संवाद करने में सहजता महसूस करेगा। उनकी सूझबूझ और प्रियंका गांधी में इंदिरा की छवि एक जबर्दस्त जोड़ साबित हो सकता है। इस निर्णय से लगता है कि सोनिया गांधी पिज्जा छोड़कर पुड़ी खाने लगी हैं। यह शुभ हैं कि वे राहुल के परे भी देखने लगी हैं।
राज बब्बर के रंगमंच के अनुभव उन्हें इस राजनीतिक चुनौती से जूझने में बहुत सहायक होंगे, क्योंकि भारतीय चुनाव नौटंकी में ये भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं। रंगमंच में अभिनेता और दर्शक के बीच सीधा संवाद होता है, सिनेमा की तकनीकी क्षमताओं में शॉट के रीटेक बहुत होते हैं। सिनेमा में विशेष प्रभाव गढ़े जाते हैं परंतु रंगमंच जीवंत विधा है और भूल सुधार का अवसर नहीं देती। रंगमंच अभिनय कला की परीक्षा लेता है, सिनेमा में गृहकार्य पर अंक मिलते हैं। सोनिया गांधी पर लगे वंशवाद के अभियोग का जवाब उन्होंने दे दिया है। इस तरह का आरोप लगाने वाले ये भूल जाते हैं कि फिल्म हो या कोई अन्य क्षेत्र, व्यक्ति का अपना दम-खम ही काम आता है। पूर्वजों द्वारा विशुद्ध घी का सेवन युवा पीढ़ी के शरीर में रक्त पर कोई असर नहीं डालता। बहरहाल भाजपा नेहरू के योगदान और छवि को खंडित करने का प्रयास कर रही है। राज बब्बर को अपने नए पद के निर्वाह के लिए नेहरू को पढ़ना चाहिए। उनके लिए इससे बेहतर कोई तैयारी नहीं हो सकती। नेहरू ने जिस तरह भारत के चप्पे-चप्पे की यात्राएं की हैं, वैसी मौजूदा दौर के किसी नेता ने नहीं की। राज बब्बर को निदा फाज़ली का स्मरण करा दं, जिन्होंने उनके लिए लिखा था, 'तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है।' निदा फाज़ली का एक दोहा है, 'गुमसुम गंगा घाट है, चुप चुप है गुजरात, वादा करके सो गए, सब अच्छे दिन-रात।' नेहरू और निदा फाज़ली का स्मरण राज बब्बर को इस कुरुक्षेत्र में प्रेरणा देगा।