राड़ / हरीश बी. शर्मा

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‘कुण हो थै, म्हे सब जाणां। हमलावर बण‘र आया हा। ... अबार भी सुधार कठै है, मारपीट री बोली ही जाणो हो।’

‘हां थै तो घणाई दूध में न्हायोड़ा हो। मूंढै माथै गुड़-लिपटी बातां करो अर लारै सूं ...। कदैई आछो सोच्यो हुवो तो छाती पर हाथ धर‘र हां बोल दो।’

‘आपरै हियै कांगसी तो फेर !’

‘म्हारो मूंढो मत खुलवा !’

‘म्हैं भी आ ईज कैवूं।’

‘बाकी किसी छोड़ी है ?’

‘थूं बच्योड़ो है, जको कम है ?’

‘हाथ लगा‘र देख ! अबै पैली आळी बात कोनीं। बठै जितरी अठै पोल नीं पड़ी। एक सोधूं, दस मिलै।’

‘माथा गिणावण सूं कीं नीं हुवै। कर जावै जको ई मानीजै।’

‘तूं कर‘र देख तो सही छेड़खानी।’

इतरी बात घणै में ही। दोनूं कांनी लात, मुक्का चालणा सरू हुगग्या। मुकेष इरफान रै लात मारी तो थोड़ो संभळ‘र इरफान सीधी आपरी भोडकी सूं मुकेष री छाती पर वार करयो। इत्तै में लारै सूं अनिल अर आशिष आय‘र इरफान री कालर झाल‘र एक डुक जमायो तो इरफान जोर सूं अरड़ायो। इरफान री आवाज सुणतां ही दूर खड़या शरीफ अर अब्दुल भी आ पुग्या। इरफान री हालत देखतां ही दोनूं आशिष अर अनिल पर टूट पड़या। मुकेश दोनूं नैं बचावण जावण लाग्यो तो इरफान उणरी टांग झाल‘र आडो न्हाख लियो।

एक-दूजै नैं आवै ज्यूं बोलता अर लड़ता दोनूं पख हांफीजण लागग्या पण हार एक नीं मानी। ऐ तो बीच में मास्टरजी आयग्या, नीं जणै लड़ाई और बधती। फेर भी कांई हो, दोनूं पख एक-दूजैं नैं खारी-खारी निजरां सूं देखता रैया। इत्ती देर सूं तमासो देखणिया छोरा तो गायब हुयग्या पण मुकेश, इरफान, अब्दुल, शरीफ, आरिफ अर अनिल खड़ा रैया। कोई रा गुल्ला सूज्या हा तो कोई खोड़ीजतो खड़ो हो। केष खिंडग्या। जगै-जगै सूं कपड़ां री सिलाई उधड़गी।

मास्टरजी आव देख्यो न ताव। आंवतां ही जरै-जरै मारणा सरू करया अर लेयग्या हैडमास्टरजी रै कमरै में। हैडमास्टरजी नैं भी समझतां देर नीं लागी। इरफान कांनी देखतां पूछयो, ‘कांई है औ सब ?’
‘हां, थै भी म्हारै पर ही शक करो। म्हैं मुसळमान हूं नी !’

‘इरफान !’ जोर सूं चीख्या हैडमास्टरजी, ‘कांई बोलै है तूं, कीं ठा पड़ै ?’

मुकेश बीच में बोल्यो, ‘ठा नीं पड़ै जणै ही तो रोळो है ...।’

‘थंनै पूछयो कांई ? टांग तोड़‘र हाथ में झल्ला दूंला जे आज रै बाद थांरी कोई शिकायत आई। जाओ क्लास में अर म्हारी बात रो ध्यान राख्या !’

मास्टरजी सगळां नैं टोर‘र पाछा लेयग्या। हैडमास्टरजी कीं ताळ तांई बात समझ नीं पाया। घंटी बजाई तो चपरासी आयो। ‘मुकेश अर इरफान री क्लास-मोनीटर नैं बुलावो।’

थोड़ी देर में चपरासी एक छोरी नैं लेय’र पूग्यो अर बोल्यो, ‘साब, आ दीपा है मोनीटर।’

हैडमास्टरजी सूं निजरां मिलतां ही दीपा बोली, ‘आप म्हनैं बुलाई सर !’

‘हां दीपा बेटा, एक बात बता। आज मुकेश अर इरफान में राड़ क्यूं हुई ?’

दीपा बोली, ‘कोई इसी खास बात कोनीं ही सर ! क्लास में बैठा-बैठां ही बात छिड़गी। दोनूं जणा पैलां तो क्रिकेट री बात करता हा। फेर इंडिया-पाकिस्तान री टीम में उळझता-उळझता दंगां री बात करण लाग्या। रोहित दोयां नैं समझायो भी पण दोनूं निरी देर आपसरी में बोलचाल करता रैया। इणरै बाद आधी छुट्टी हुयगी अर दोनूं लड़ पड़या। बस, आ ईज बात ही।’

हैडमास्टरजी बोल्या, ‘ठीक है, तूं जा सकै।’

दीपा क्लास में आई तो देख्यो दोयां री सीट अलग हुयगी है। इरफान, अब्दुल, शरीफ री न्यारी डेस्क अर मुकेश, अनिल, आशिष री न्यारी। मास्टरजी पढ़ावणो सरू कर दियो हो। इण खातर क्लास में शांति ही। दीपा भी पढ़ण लागगी। पण आज क्लास में पैली जिसी बात नीं लागी। एक रै बाद दूसरा, फेर तीसरा मास्टरजी आया। पढ़ाई चालती रैयी। छुट्टी री घंटी बाजी तो सगळा आप-आपरा बेग लेय‘र घर कांनी टुरग्या। दीपा मुकेश अर इरफान कानी देख्यो पण दोनूं री बळती आंख्यां देख‘र आपरो चेहरो घुमा लियो। एक बार सोच्यो कै दोनूं बिचाळै राजीपो करा दियो जावै। पण दोयां री आंख्यां देख्यां पछै हिम्मत नीं पड़ी।

दूजै दिन स्कूल आपरै समैसर लागी। प्रार्थना हुई। क्लास लागी। हैडमास्टरजी आपरो राउंड कर आफिस में पूग्या ही हा कै चपरासी दौड़यो-दौड़यो आयो अर बोल्यो, ‘साब ! मुकेश रा पापा आया है। सागै पांच-सात दूजा भी है।’

हैडमास्टरजी चपरासी रै मूंढै सांमी देख‘र बोल्या, ‘तो इणमें आकळ-बाकळ हुवण री कांई बात है, बुलायलै।’

‘साब सागै आळा आदमी ठीक नीं है।’ चपरासी डरतो-सो बोल्यो।

हैडमास्टरजी बोल्या, ‘कोई बात कोनीं, तूं सगळां नैं भेज !’

थोड़ी ताळ में मुकेश रा पापा आफिस में पूग्या अर पूगतै ही सरू हुयग्या, ‘हैडमास्टरजी ! थांरै अठै रैंवता थकां टाबरां रा अऐ हाल ? कोई मियें री आ हिम्मत !’

हैडमास्टरजी समझग्या। बै बोल्या, ‘पैली बैठो तो ..।’

मुकेश रा पापा कीं बोलता, उणसूं पैली ही सागै आयोड़ो बोल पड़यो, ‘बैठसां तो फेर कणैई। थै तो आ बतावो कै स्कूल में कित्ता मुसळमान है। सगळां नैं बारै काढ़ो। भरपाई म्हे करसां। अर इंयां नीं हुवै तो उण तीन छोरां नैं तो काढ़णा ही पड़सी। छऊ छोरा म्हे थांनैं देस्यां। बस, इत्ती-सी बात समझलो।’

हैडमास्टरजी उणांरी बात नैं सुण‘र मुळकण लाग्या। इत्तै में चपरासी फेर आयो। अबकी बारी चपरासी हैडमास्टरजी रै कानां में की बोल्यो। हैडमास्टरजी चपरासी री बात सुण‘र बोल्या, सगळां नै भेजदै ! सुरसती रै मिंदर में घणी जगै।’ हैडमास्टरजी कीं ताळ मुकेश रै पापा अर दूजां कांनी देख‘र बोल्या, ‘इत्ती देर थांरी बात सुण, अब थोड़ी देर थै चुप रैया।’

चपरासी रै बारै निकळतां ही सात-आठ जणा आफिस में दाखिल हुया। सगळा हैडमास्टर साब सूं दुआ-सलाम करी।

एकै कांनी बैठया मुकेश रा पापा चमक्या अर बोल्या, ‘रफीक, आज तूं भी दतर रो फरलो मार लीनो ?’

रफीक मुकेश रै पापा कांनी देख्तो बोल्यो, ‘कांई फरलो, विकास भाई ! थारो भतीजो इणी स्कूल में पढ़ै। काल उणनैं दूजा छोरा मिल परा‘र मार लियो। कौम रै नांव गाळयां काढ़ी जकी पागती में। थारो भतीज अबार तांई बिस्तरां सूं उठण जैड़ो नीं है।’

विकास सूं बात करतो-करतो रफीक हैडमास्टरजी कांनी घूमग्यो, ‘गुरूजी, आपणी बात तो साफ है। म्हारो बेटो दोशी है तो उणनैं निकाळ दो, नीं जणै मुकेश अर उणरा साथियां नैं निकाळो। टींगरां नैं पढ़ावण सारू भेजां, कुटीज‘र आवै जद खून बळै।’ रफीक री बात सुण‘र विकास भौंचक हो।

हैडमास्टरजी रै चेहरै सूं मुळक फेर भी कम नीं हुई। रफीक चुप हुयां पछै बै बोल्या, ‘एक बात बतांऊ कै आज जे थै नीं आंवता तो काल थांनैं म्हैं बुलांवतो। विकासजी, थै ठीक समझ रैया हो। इरफान रफीक रो साहबजादो है अर रफीक साब थांनै जाण‘र इचरज हुसी कै मुकेश थांरै खास विकास भाई रो सपूत है।’

दोनूं एक-दूजे रै मूंढै कांनी देखण लाग्या।

‘म्हनैं तो आ काल ही ठा लागगी ही। दोनूं री लड़ाई रै असली कारणां नैं सोधण रै बाद म्हैं तय कर लियो हो कै थांनै बुलास्यूं। ठीक हुयो कै थै खुद आयग्या। म्हारै कनै इण लड़ाई रै असली कारण री पूरी रिर्पोट है। इण रिर्पोट रै आधार पर म्हैं थां दोनूं नैं दोशी मानूं।’

हैडमास्टरजी री बात सूण‘र दोनूं ही एकै सागै बोल पड़या, ‘दोशरी कांई बात है गुरूजी, म्है खुद ही सलट लेसां।’

विकास बोल्यो, ‘रफीक तो भाई है म्हारो।’

रफीक भी इणी तरयां दोनूं रै बीच भाईपै री बात करी।

छिड़नै री बारी अबकी हैडमास्टरजी री ही, पण फेर भी धीरज धरता, मुळकता थका बोल्या, ‘साच बात तो आ है कै थै दोनूं एक-दूजै नैं धोखो देय रैया हो। दोस्ती रो नाटक करो अर घर में एक-दूजै री कौम रै खातर ज्हैर उगळो। कदै क्रिकेट मैच रै नांव पर तो कदै दंगै री बात कर‘र। थांनै ठा ही नीं है कै टाबरां रै मन में इणरो कित्तो ऊंडो असर पड़ै। कसूर थांरो है। दंगो कठै हुवै। हारै-जीतै कोई और है। संबंध अठै बिगड़ै। म्हारै पर विश्वास नीं हुवै तो मुकेष अर इरफान सूं पूछ लिया। उणां नैं कठै सूं सीख मिली। म्हारै खातर तो कदै मुकेश अर इरफान हिन्दू-मुसळमान हा ही कोनी। दोनूं होनहार है। देस रो भविष्य रै सागै खिलवाड़ रो इधकार म्हैं थांनैं नीं दे सकूं। भलै ही थै आं रा बाप हो। आप सब आया, म्हारा इण स्कूल रा बडभाग। अबै आप पधार सको। फेर आवण री न्यूंत दूं, पण आवो तो टाबरां रै विगसाव पर विचार करण नै आया !’