रातभर का मेहमां है अंधेरा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2020
भारतीय टेलीविजन पर एक खबर आई है। चीन के डॉक्टर का कहना है कि कोरोना पीड़ित व्यक्ति इलाज के बाद स्वस्थ हो जाता है, परंतु उसके मस्तिष्क में बीमारी की याद लंबे समय तक कायम रहती है। कालांतर में यह याद यथार्थ का वायरस बनकर मनुष्य को फिर बीमार कर सकती है। आज खबरों की विश्वसनीयता घट गई है। यह निर्णय करना कठिन है कि क्या सच है और क्या झूठ। केमिकल वारफेयर से अधिक भयावह है अफवाह का अंधड़। मनुष्य मस्तिष्क की रहस्यमय कंदरा में घटाटोप है और विचार के जुगनू की झिलमिल में कुछ नजर आता है। क्या नजरों के दिल से या दिल की नजर से देखें?
सन् 1895 में लुमियर बंधुओं ने चलती-फिरती छवियों को फोटोग्राफ करने की विधा का आविष्कार किया। चार वर्ष पश्चात यूरोप के दार्शनिक बर्गसन ने कहा था कि सिने कैमरा और मानव मस्तिष्क की कार्यशैली समान है। मनुष्य की आंख लेंस की तरह स्थिर चित्रों का संकलन मस्तिष्क के स्मृति कक्ष में जमा करती है। एक विचार की ऊर्जा से ये चित्र चलायमान हो जाते हैं। मनुष्य का मस्तिष्क और स्त्री की प्रजनन प्रक्रिया आज भी रहस्यमयी है। इन पर बहुत शोध हुआ है, परंतु गांठ पर गांठ जैसा यह धागा सुलझता ही नहीं वरन् सुलझाने के प्रयास में अधिक उलझता जाता है। बाहर सौ-सौ गांठें, भीतर भय का डेरा, यह घर तेरा ना मेरा, खाली रैनबसेरा।
लगभग 70 वर्ष पूर्व की एक घटना इस तरह है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति अकारण उदास और अन्यमनस्क बना रहता था। उसे अनजानी चिंता सतत तंग करती थी। हर पल-क्षण उसका शरीर पसीने से तर हो जाता था। उसने डॉक्टर से परामर्श किया। सर्जन ने शल्य चिकित्सा द्वारा मस्तिष्क से चिंता के सेल हटा दिए। इस प्रक्रिया को प्रीफ्रंटल लोबोटॉमी कहते हैं। इसके बाद उस व्यक्ति ने चिंता करना या अकारण भयभीत होना बंद कर दिया, परंतु उसकी विचार शक्ति घट गई। वह जिस दफ्तर में अफसर था, उसी दफ्तर में चौकीदार बना दिया गया। उस व्यक्ति को केवल भूख लगती थी और वह शारीरिक श्रम कर सकता था। इस तरह वह कमोवेश एक विचारहीन रोबो हो गया। उसके भाई ने सर्जन और अस्पताल पर दावा ठोका। लंबे मुकदमे के बाद किसी को दोषी नहीं पाया गया, परंतु प्रीफ्रंटल लोबोटॉमी को अवैध घोषित कर दिया गया। यह डॉक्टर पुर्तगाल में जन्मा था। इसका नाम एंटोनियो कैटानो डी अब्रेयू फ्रीयर एगास मोनिज़ था। इस डॉक्टर ने 11 वर्षों में लगभग 2000 ऑपरेशन किए। अत्यंत दुखद बात यह है कि इसी डॉक्टर को नोबल प्राइज से भी नवाजा गया। इरविंग वैलेस ने अपने उपन्यास ‘द प्राइज’ में सारे मामले को सप्रमाण उजागर किया है। सुनील दत्त ने एकल पात्र अभिनीत ‘यादें’ फिल्म बनाई थी। सुभाष घई ने भी ‘यादें’ नामक फिल्म बनाई थी। कथा में जैकी श्रॉफ अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपनी तीन बेटियों को पालता है। उसके एक अमीर मित्र का बेटा ऋतिक रोशन अभिनीत पात्र का करीना अभिनीत कन्या से प्रेम हो जाता है। अमीर-गरीब का भेद प्रेम-कथा में रुकावट डालता है परंतु अंत भला सो सब भला की तरह सुखांत फिल्म रची गई। इसे भी अधिक दर्शक नहीं मिले। मरीज प्राय: याद का क्लोरोफार्म लिए, दर्द की सेज, पर प्रेम के नगमे गुनगुनाता रहता है। अस्पताल के विशेष सेवा-कक्ष में अच्छे दिनों की यादें उसका सम्बल बनती हैं। लेखक जॉन इरविंग के आत्म-कथात्मक उपन्यास ‘द वर्ल्ड अकॉर्डिंग टू गार्प’ में अस्पताल की नर्स इच्छाओं से वशीभूत मरीज के साथ हमबिस्तर होती है, जिसे वह मात्र नर्सिंग का कार्य ही मानती है। नायक का जन्म इसी अंतरंगता से होता है। इस उपन्यास के माता-पुत्र पात्र भावना की तीव्रता के साथ मासूम पागलपन के शिकार हैं। बहरहाल, मानव मस्तिष्क में कोरोना वायरस के जीवित बने रहने और पुन: आक्रमण पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। यह रोग जेनेटिक भी नहीं है। जयशंकर प्रसाद की कविता है- ‘जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई, दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आई।’ सभी पीड़ाएं बह जाती हैं। दवा की एक्सपायरी डेट की तरह रोग भी समाप्त होते हैं।