रातों का शोर / एक्वेरियम / ममता व्यास
Gadya Kosh से
रातें शोर मचाती हैं, तुम्हारे दिल पर दस्तक देती हैं। जाने किसे बुलाती हैं? हैरान हो तुम...किसे बुलाती हैं ये रातें?
उसे बुलाती हैं, जो तुम्हारी भटकन को समाप्त करे, प्यास को तृप्त करे। तुम्हें भर कर जाये, रीता ना कर दे। जो तुम्हें खाली कर गए वह तुम्हारे अपने नहीं हैं। तुम्हारी तलाश तो वह है, जो तुम्हें भर दे। सर से पैर तक...अहसासों से, भावों से, प्रेम से।
रूह खुद खोज लेगी अपने बिछड़े हुए हिस्से को, अपने टुकड़े को। जैसे देह खोज लेती है, ज़रूरत के समय, दूसरी देह को। ठीक ऐसे ही रूह को अपना काम करने दो। उसे पता है सब, उसका ठिकाना कहाँ है। हम सभी पवित्र सुगंध हैं और हम सभी प्रतीक्षा में हैं अपने-अपने सुगंधों के ज्ञानियों की।
एक दिन वह खोज लेगा अपनी सुगंध।