रात / हेमन्त शेष
रात जब कभी जल्दी न आ सकने वाली नींद का पर्याय नहीं होती, पहले वह क्षितिज की रोशनियों को निगलती अँधेरे का जाल अपने भीतर बुनती है और धीरे-धीरे दिशाओं को लपेटती है. पृथ्वी का एक और सूर्यास्त आ चुकने पर विशाल जाल एक बड़े गिद्ध की तरह पंख फैलाए संसार के आधे हिस्से को ढँक लेता है. घर की खिड़कियाँ कुछ यों बंद हैं- जैसे कभी खोली ही न गई हों, और पेड़ अपनी सब डालियों समेत एक व्रत में मौन. उदास आकाश से गायब चन्द्रमा!
बिल्ली अपनी आँखों में रेडियम के अंगारे भरे मुंडेर से बेआवाज़ गुज़रती है. हवा के साथ फटा हुआ होर्डिंग एक सूखे पत्ते जैसा थरथराता है! एक मोटर साइकिल की आवाज़ अपनी आवाज़ क्रमशः तेज फिर कम करते-करते कान की सुरंग से गुजर जाती है, और तुम गली के पीला जलरंग उंडेलते लेम्पपोस्ट को गली के कुत्तों के भोंकने का स्वर झींगुरों की झनझनाती आवाज़ों के कोरस से मिलाते हुए देख लेते हो. हर पदचाप की यहाँ एक कार्बन कॉपी तैयार होती है.
बंद होने के बावजूद हर शटर दूसरे शटर से कुछ कहता है. उनके पीछे दिन भर फुलझड़ी की तरह होने वाली वेल्डिंग के चमकीले छींटे फर्श पर कब के डूब चुके. कहीं दूर राख के ढेर ऐसे दिखते हैं जैसे सलेटी झाड़ियाँ! पहचानने में दिक्कत हो सकती है कि कौन सा पेड़ है वह जो मोड़ पर एक काले बादल जैसा लगता है? हवा जब भी गली से गुज़रती है, खाद बन जाने की उम्मीद में सूखे पत्ते उड़ते हैं.
एक स्कूटर नीम के पेड़ के नीचे आधे अँधेरे आधे उजाले में सर झुकाए सो रहा है.
अपनी असली आकृतियों में होने के बावजूद चीज़ें धुंधली और वास्तविक जगह से दूर नज़र आतीं हैं.
विलक्षण माया-लोक है रात, हल्की से हल्की रोशनी को भी रहस्यमय अर्थ देता हुआ- फेड होते चित्र जैसा कैसा दिन था वह जो ढल गया? आपकी आत्मा का हर कोना जो दिन भर पड़ते तेज़ाब और गर्म हवाओं के थपेड़ों से झुलस गया होता है, अतीत की परछाईं बन कर एक खुले घाव की तरह रात की थकी हुई बांह पर अपना सर रख देना चाहता है. रात अपनी बाँहें फैला रही है. पहले धब्बे धुँधलाते हैं और फिर, सर कटी आवाजें एक तालाब में, जिसका और छोर नज़र नहीं आता, डूब जाती हैं...