रानी चेन्नम्मा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
रानी चेन्नम्मा कित्तूर राज्य की रानी थीं । वे बहुत साहसी और वीर थीं। उनका जन्म कर्नाटक में बेलगाम के पास ककती नामक गाँव में सन 1778 ई में हुआ था। चेन्नम्मा के पिता का नाम धूलप्पा एवं माता का नाम पद्मावती था। चेन्नम्मा को संस्कृत , कन्नड़ , मराठी और उर्दू भाषा की शिक्षा दी गई। चेन्नम्मा को बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारवाजी और तीरंदाजी बहुत अच्छे लगते थे। चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ हुआ और वे कित्तूर की रानी बनीं। कित्तूर एक छोटा सा राज्य था, किन्तु वह बहुत ही संपन्न था। कित्तूर में व्यापार करने के लिए दूर दूर से व्यापारी आते थे।
चेन्नम्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया किन्तु वह बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सका। कुछ समय बाद राजा मल्लसर्ज का भी निधन हो गया।
उस समय अंग्रेज भारत में अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। वे कित्तूर को भी हड़पना चाहते थे। 23 सितम्बर 1824 ई. को अंग्रेजों ने कित्तूर का किला घेर लिया। अचानक किले के फाटक खुले और रानी चेन्नम्मा अपनी सेना के साथ मर्दाने वेश में अंग्रेजों की सेना पर टूट पड़ीऔर अंग्रेजों की सेना के छक्के छुड़ा दिये। अंग्रेजों की सेना हार गयी।
3 दिसंबर 1824 ई. को अंग्रेजों ने कित्तूर का किला फिर घेर लिया , किन्तु कित्तूर के देशभक्तों के सामने अंग्रेजों की एक न चली और उन्हें पीछे हटना पड़ा। कुछ समय बाद अंग्रेजों ने फिर कित्तूर पर आक्रमण किया। रानी चेन्नम्मा अपनी सेना सहित बहुत बहादुरी से लड़ीं किन्तु इस बार अंग्रेजों की जीत हुई। रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया। जेल के अंदर ही 21 फरवरी 1829 ई. को रानी चेन्नम्मा की मृत्यु हो गयी, लेकिन वे अपनी देशभक्ति और वीरता के कारण अमर हैं। आज भी उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।