रानी मुखर्जी चोपड़ा बनाम काजोल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 अप्रैल 2017
रानी मुखर्जी चोपड़ा यशराज के कर्ता-धर्ता आदित्य चोपड़ा की पत्नी हैं और यशराज निर्माण संस्था की प्रिय कलाकार काजोल हैं, जिनकी 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे' मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमाघर में सुबह के एक शो में बरसों से चल रही है। वे रिश्ते में कज़िन हैं परंतु बहनापे में कुछ खटास की खबरें मीडिया में आ रही हैं। हाल ही में एक समारोह में दोनों मौजूद थीं परंतु उनमें कोई वार्तालाप नहीं हुआ। इतना ही नहीं वरन एक को पुरस्कार दिए जाने के समय दूसरी उठकर चली गई। यशराज की फिल्म के साथ ही काजोल के पति अजय देवगन की फिल्म का प्रदर्शन हुआ था और काजोल ने अपने पति का साथ दिया। आजकल निर्माता त्योहार के समय फिल्म प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि वे अतिरिक्त छुट्टी का लाभ लेना चाहते हैं।
एक बार एक सिनेमा मालिक चंदूलाल शाह को ईद पर प्रदर्शन के लिए मुस्लिम सामाजिक फिल्म की अग्रिम राशि देकर गया परंतु चंदूलाल शाह ने 'स्वर्ण सुंदरी' बना दी। सिनेमा मालिक को मजबूर होकर ईद पर 'स्वर्ण संुदरी' ही दिखानी पड़ी परंतु वह मुकदमा दर्ज करने की धमकी देकर गया। ईद पर वह फिल्म इतनी सफल रही कि उसने कोई मुकदमा दायर नहीं किया। दर्शक पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष होता है। फिल्म की कथा चाहे किसी भी धार्मिक आख्यान से प्रेरित हो, दर्शक केवल मनोरंजन चाहता है। आज समाज में कट्टरता का दौर चल रहा है परंतु दर्शक आज भी धर्मनिरपेक्ष है।
दो बहनों की रिश्तों की फिल्में लंबे समय से बन रही है। गुरुदत्त की आखिरी फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' भी दो बहनों की कथा थी। बंगाली भाषा की 'प्रेसीडेंट' दो बहनों की कथा थी और गुरुदत्त ने उसी का नया संस्करण बनाया था। मीना कुमारी अभिनीत 'सांंझ और सवेरा' भी दो बहनों की और एक बहन के त्याग की कथा थी। राज कपूर अभिनीत 'नज़राना' भी बहनापे की फिल्म थी। वर्षों बाद श्रीदेवी और जयाप्रदा अभिनीत 'तोहफा' 'नज़राना' का ही नया संस्करण थी। इसी विषय पर एक पुरानी अमेरिकी फिल्म का कथासार इस तरह है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद दो बहनें पहाड़ी पर दस कमरों का एक छोटा होटल संचालित करती हैं। खरीददार के प्रस्ताव को वे अस्वीकार कर देती थीं। एक वायलिन वादक होटल में ठहरा और बड़ी बहन मन ही मन उसे प्यार करने लगी परंतु उसने इज़हार नहीं किया। कुछ ही दिनों में छोटी बहन को वादक से प्रेम हो गया और विवाह करके वे चले गए। कुछ समय बाद छोटी बहन को अपने सामान में बड़ी बहन की डायरी मिली और उसे सच मालूम पड़ा। उसने अपने पति को सब कुछ बता दिया। पति-पत्नी पहाड़ के होटल पर पहुंचे तो वह बिक चुका था। नए खरीददार और आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन्हें एक चर्च का पता मिला जहां बड़ी बहन नन बनकर चर्च से जुड़े अस्पताल में लोगों की सेवा कर रही थी। छोटी बहन ने यहां तक कहा कि वह अपने पति को तलाक दे देगी ताकि उससे उसकी बहन का विवाह हो सके। बड़ी बहन ने कहा कि वह अब ईश्वर की प्रार्थना का उद्देश्य पा चुकी है। अब कोई प्रलोभन उस पर असर नहीं करता।
बहरहाल, रानी मुखर्जी और काजोल के बीच अभी बात आगे नहीं गई है। आदित्य चोपड़ा दोनों को लेकर फिल्म बनाएं तो दरार समाप्त हो भी सकती है। ज्ञातव्य है कि यशराज चोपड़ा ने अपने सहायक दीपक सरीन को अवसर देकर 'आईना' नामक फिल्म बनाई थी, जो दो बहनों की कथा थी। एक बहन की भूमिका अमृता सिंह ने की थी और अन्य भूमिका जूही चावला ने की थी। अत: आदित्य चोपड़ा दो बहनों की अपने पिता की बनाई फिल्म का ही दोबारा निर्माण कर सकते हैं परंतु वे व्यावहारिक और बुद्धिमान व्यक्ति हैं और यह जोखिम नहीं लेगें, क्योंकि बहनों के दंगल में वे न तो पत्नी को पराजित देखना चाहेंगे न ही अपनी प्रिय नायिका की हार देखना चाहेंगे। उनके लिए तो यह दंगल पत्नी बनाम 'दुल्हनिया' हो जाएगा।
ज्ञातव्य है कि रानी मुखर्जी को पहला अवसर उनके घराने ने नहीं दिया। उन्होंने बांग्ला भाषा में बनी 'बियेर फूल' से अपनी पारी शुरू की और 'राजा की आएगी बरात' उनकी पहली फिल्म है। उन्हें 'नो वन किल्ड जेसिका' के लिए बहुत सराहा गया। आजकल वे 'हिचकी' नामक फिल्म की शूटिंग कर रही हैं। br> संभवत: रानी मुखर्जी अभिनीत 'मरदानी' का एक दृश्य कुछ इस तरह है कि फिल्म के पहले दृश्य में सड़क के किनारे लगे पानी के नल से बूंद-बूंद पानी रिस रहा है और एक डेटर्ज फॉक्स पानी पीने का प्रयास कर रही है। फिल्म में रानी मुखर्जी अन्याय का प्रतिकार करती हैं और जुल्मी लोगों को सजा देती है। अंतिम दृश्य में वे उसी नल के पानी से अपनी प्यास बुझाती है गोयाकि वे डेजर्ट फॉक्स की तरह जुझारू महिला हैं। राहुल रवैल ने काजोल अभिनीत फिल्म को रोक दिया था, क्योंकि वे काजोल के अभिनय से खुश नहीं थे। कई बार प्रारंभिक आकलन गलत सिद्ध होते हैं जैसे आईपीएल तमाशे में आठ रन पर चार विकेट गंवा देने वाली टीम बड़ा स्कोर बनाकर मैच जीत जाती है। जीवन अनपेक्षित घटनाओं का एक बेतरतीब-सा सिलसिला है।
आप एक शांत-सी दिखने वाली जगह पर बैठकर मुंगफली खा रहे हैं या आज के युवा की तरह सैंडविच खा रहे हैं परंतु आप नहीं जानते कि आप एक सुषुप्त दशा में पड़े ज्वालामुखी पर बैठे हैं। ठीक इसी तरह मौजूदा समाज विकास के टीले पर बैठा है और भीतर के ज्वालामुखी से अनजान बना है। बकौल निदा फाज़ली 'माचिस पहरेदार है तमान बारूदखानों पर।'