रामलीला / सौरभ कुमार वाचस्पति
जब मैं रामलीला देखने पहुंचा तो मंच पर श्रीराम चन्द्र जी के वनवास का दृश्य चल रहा था। राम जी आगे सीता जी बीच में और लक्ष्मण भैया पीछे -पीछे मंच पर वृत्ताकार चक्कर लगा रहे थे। माइक पर रामलीला पार्टी का गायक बड़े ही हृदयविदारक ढंग से हारमोनियम के साथ अपनी आवाज मिलाते हुए गा रहा था –
हम तेरे शहर में आए हैं, मुसाफिर की तरह
कल तेरा शहर मुझे छोड़ के जाना होगा
महिला मंडल अपने सूखे हुए आँचल को गीला करने में व्यस्त थीं। एक लड़का जो सर पर रामनामी मुरेठा बांधे हुए था , एक थाली में कर्पुर जलाकर दर्शक दीर्घा में घूम रहा था। लोग लोग बड़ी श्रद्धा पूर्वक आरती ले रहे थे। सिक्कों की खनखनाहट गूँज रही थी। ज्यों-ज्यों आरती की लौ मंद पड़ती गयी त्यों -त्यों थाल सिक्कों और गाँधीछाप नोटों से भरता गया। मैंने मन ही मन सोचा की काश आज सचमुच के राम जी जिन्दा होते तो इतने रुपयों से एक हीरो होंडा स्प्लेंडर जरूर खरीदते।
एक बड़ी - बड़ी मूंछों वाला आदमी बार बार माइक पर अनाउंस कर रहा था -" भाइयों, माताओं और बहनों ..... दया कीजिए ..... प्रभु श्री राम वनवास काट रहे हैं ...... दशरथ महाराज ने इन्हें यह कठिन समय झेलने के लिए इस जंगल में भेज दिया ...... न खाने को अन्न है ... न सोने को बिछौना .... कोई साधन नहीं ... कोई ठिकाना नहीं .... इनके लिए खाने का बंदोबस्त करना है तो कुछ दान कीजिए ... प्रभु श्रीराम को इस संकट की घडी में बस आप लोगों का ही सहारा है ...।”
तभी अगली पंक्ति में बैठा एक बदमाश लड़का चिल्लाया -" अरे भाई जाएंगे कहाँ ... चित्रकूट भेज दीजिए ... इनके लिए वहीँ पर सारा प्रबंध है। बेचारा ... माइक पर जो व्यक्ति बोल रहा था खिसिया कर चुप हो गया ..। मैंने अपने बगल में खड़े एक सज्जन से पूछा -" भाई साहब, ये व्यक्ति जो माइक पर घोषणा कर रहे थे, क्या रामलीला पार्टी के ही हैं।"
उस सज्जन व्यक्ति ने मुझे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा , उसके मुह से शराब का भभका - सा निकला ... गुटखा चबाते हुए वह बोला -" साले चुपचाप लीला देख ..... मेरे को पूछता है.... अबे मुझे खुद पता नहीं तो तुझे क्या बताऊंगा?"
उसके मुह से साला शब्द सुनते ही मुझे भी तैश आ गया -"भाई साहब, अगर आपको नहीं पता तो सीधे क्यों नहीं कहते की नहीं पता , गाली क्यों दे रहे हैं?"
इतना सुनते ही उस सज्जन (?) आदमी का गुस्सा उसके शराब की तरह ही भभकने लगा। झपटकर उसने मेरा कालर पकड़ लिया -" साले ... फिलासफी झाड़ता है .... कनपट्टी के नीचे जहाँ दो झापड़ लगेंगे की साड़ी फिलासफी अन्दर घुस जाएगी।"
किसी तरह लोगों ने बीच-बचाव कर के मामला सुलटाया। मैं वहां से खिसक गया। घर पर सही सलामत पहुंचा तब जाकर चैन की सांस ली।
क्या बताऊँ ... शरीर में इतनी ताक़त नहीं की किसी से उलझ सकूं। यार दोस्त सिंगल हड्डी कह कर के चिढाते है। हकीम - डॉक्टर सब आजमा चूका हूँ। खानदानी दवाखानों से गुप्त रोग का इलाज भी करवा कर देख लिया। शादी से पहले या शादी के बाद .. मरदाना ताक़त के लिए मिले जैसे लोगों से मिल कर के भी देख लिया लेकिन कोई फायदा नहीं। उसी तरह का सिंगल हड्डी बना हुआ हूँ! इसलिए मुझ जैसा डरपोक आदमी भागने के सिवा और कोई दूसरा काम नहीं कर सकता।
खैर ... किसी तरह हिम्मत जुटाकर तीसरे दिन मैं फिर पहुंचा। तब तक कहानी बहुत आगे बढ़ चुकी थी। समुद्र किनारे का दृश्य था। हनुमान जी सीता माता का पता लगाकर लौट चुके थे। मंच पर सभी पात्र उपस्थित थे, कमी थी तो सिर्फ प्रभु श्री राम जी की। जब आधे घंटे तक दृश्य आगे नहीं बढ़ा तब मै उत्सुकतावश मंच के पीछे बने मेकअप रूम की तरफ बढ़ गया। वहां का तो नजारा ही जुदा था। सीता मैया टेबुल पर बैठी पंखा झल रही थी। सुग्रीव महाराज एक हाथ में पउआ धरे हुए बीडी फूंक रहे थे और राम -लक्ष्मण भैया आपस में ही जुद्ध कर रहे थे। मास्टर जी (मुख्य हारमोनियम वादक) से पूछने पर पता चला की लक्ष्मण ने सीता को जाति की गाली दे दी जिसके कारण ये हो हल्ला हो रहा है।
(अगले दिन मास्टर जी से बात करने पर पता चला की राम जी और सीता जी दोनों सचमुच के पति - पत्नी हैं और दोनों किसी छोटी जाति से सम्बन्ध रखते हैं। लक्ष्मण ने इस बार कहा था की राम का रोल मैं करूँगा लेकिन राम जी अपनी पत्नी को सीता बनाने के लिए तैयार नहीं थे इसलिए लक्ष्मण चिढ़ा हुआ था। उसी का परिणाम था यह झगडा।)