रामशरण शर्मा से बातचीत / कुमार मुकुल
रामशरण शर्मा से कुमार मुकुल की बातचीत
आजकल ज्योतिषशास्त्र और बायोटेक्नालॉजी की पढाई की बात हो रही है...वैदिक गणित की चर्चा है...इस पर आप क्या कहेंगे...
हां नये लोग हैं,नये ढंग से विचार कर रहे हैं। ये बताते हैं कि सब वेदों में है। तो अब आगे पढने-पढाने की क्या जरूरत है...यूपी से वैदिक मैथेमेटिक्स पर एक किताब निकाली गई है। जो वहां कोर्स में चलाई जा रही है। मैंने गणितज्ञ गुणाकर मूले से वह किताब पढवाई थी। उन्होंने बताया कि वैदिक गणित की सामग्री कैम्ब्रिज के एक गणितज्ञ के यहां से उतारी हुई है।
देखिए,हडप्पा में घोडा नही था सांड थे। उनलोगों ने सांड को घोडा कहा। जबकि घोडा लेट हडप्पा संस्कृति में मिलता है। उस समय हाथी या गैंडा था। यह शब्द गण-गंडक से निकलता है। पहले लिखा जाता था कि भगवन बुद्ध गैंडे की तरह चलते थे। दरअसल इतिहासकार को सच को उस समय के संदर्भों में पकडना चाहिए।
सच पर बात हो सकती है। पर आप सांड को घोडा कहें तो दिक्कत होगी। इसी तरह गाय का मामला है। पहली बार महात्मा बुद्ध ने कहा था कि गाय को नहीं मारना चाहिए। इसका बडा फायदा है। फिर आगे ब्राह्मणों ने भी कहा कि गाय को नहीं मारना चाहिए। पर ब्राह्मणों ने यह भी जोडा कि गाय के साथ ब्राह्मण को भी नहीं मारना चाहिए। आगे गाया की हत्या रूकी तो खेती बढी। इस विचार का लाभ मिला लोगों को। पर आज ट्रैक्टर आदि के आने के बाद बैल बेकार साबित हो रहे हैं। हाल में ही दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने लिखा है कि आज गाय पालना हानिकारक है।
आप मार्क्सवादी इतिहासकार हैं। आज भारत में मार्क्सवाद और वादी पिछड क्यों गये हैं...
अब मार्क्सवादी भी एक्शन-इंटरेक्शन के प्रासेस को नहीं पकड पाते। उन्हें आर्थिक के साथ सामाजिक स्थितियों का भी ध्यान रखना चाहिए। आर्थिक कारण हैं चीजों के। इस आर्थिक कारण से जो चीजें पैदा होती हैं। इसका फिर क्या प्रभाव पडता है...। इसपर ध्यान ही नहीं है।
विचारधारा और इतिहास के अंत की घोषणाएं हो रही हैं आज। फुकियामा ने इतिहास के अंत की घोषणा की है। आप इस पर क्या सोचते हैं...
विचारधारा का प्रभाव जबरदस्त पडता है। यह धर्मांधता को हटाती है। पर ब्राह्मणों ने तो हमारे लोगों का दिमाग बदल दिया है। फुकोयामा ने जो कहा है , ठीक ही कहा है - भाजपा वाले और फुकोयामा मिल जाएंगे और दोनों मिलकर सब का अंत कर देंगे। हमारे पीएम इरान जाते हैं तो वहां इस्लाम के योगदान पर बोल आते हैं और यहां कुछ और होता है। वह जो कहावत है न - जब जइसन तब तइसन...। इसी पर चलते हैं ये। उनका कोई हिडेन एजेंडा नहीं है। वे सुखदेव और भगतसिंह को देशद्रोही कहते रहे हैं।
आजकल आप इतिहास के अलावा क्या पढ रहे हैं...इधर कुछ नया लिखा है...
कुछ नहीं पढ रहा। बस सुबह-शाम टहलता हूं। पुरानी किताबें फिर से छपी हैं। इधर अर्ली मिडिआइवल इंडियन सोसायटी ए स्टडी इन फ्यूडेलाइजेशन छपी है नयी। इसकी कीमत छ सौ है। पेपरबैक छपेगी तो सस्ती होगी। अब इस उमर में कुछ करना पार नहीं लगता।इतिहास पर काम के अलावे दूसरा कोई काम नहीं। मेरा सिद्धांत है - एके साधे सब सधे,सब साधे सब जाए।
बिहार की आज की स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं आप...
पटना के बुद्धिजीवि पढते-लिखते हैं। यहां अखबार,साप्ताहिक खूब बिकते हैं। बिहार सरकार को उच्च शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। 1977 में जब मेरी किताब पर वैन लगी थी तब मैंने जवाब में एक पुस्तिका,सोशल चेंज इन इंडिया, लिखी थी। कर्पूरी ठाकुर इस किताब को बराबर जेब में रखते थे।
बातचीत का यह अंश 2001 में पटना से निकलने वाले पाक्षिक न्यूज ब्रेक में छपा था।