रामेश्वर काम्बोज की साहित्यिक साधना का आलोचनात्मक विन्यास : गद्य-तरंग / स्मृति शुक्ला

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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित हिन्दी साहित्य के ऐसे रचनाकार है जिन्होंने हिन्दी की प्रायः सभी विधाओं में उत्कृष्ट लेखन किया है। कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, लघुकथा, हाइकु, ताँका-सेदोका-चैका, बालसाहित्य, निबंध, व्यंग्य, आलोचना, ब्लॉग लेखन के साथ कनाडा से प्रकाशित पत्रिका हिन्दी चेतना का संपादन कर रहे हैं। रामेश्वर काम्बोज हिमांशु का हिन्दी भाषा और व्याकरण पर असाधारण अधिकार है। उनका संपूर्ण साहित्य का सर्जन दीर्घ साहित्य साधना का प्रतिफल है। वे आज भी प्रतिदिन छह-सात घंटे साहित्य को समर्पित करते हैं। गहन अध्यवसायी रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के बहुआयामी रचनाकर्म पर हिन्दी के तीस विद्वानों द्वारा अलग-अलग समय पर लिखे आलोचनात्मक लेखों का संपादन डॉ. कविता भट्ट द्वारा 'गद्य-तरंग' शीर्षक से किया गया है। 'गद्य-तरंग' की भूमिका में कविता भट्ट ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने वरिष्ठ और वरेण्य साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज जी की साहित्यिक यात्रा के आलोचनात्मक रूप का संपादन करते हुए तटस्थ दृष्टि अपनाई है। अपने संपादकीय में डॉ.कविता भट्ट ने रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी की रचनाधर्मिता के विभिन्न आयामों का निष्पक्ष मूल्यांकन करते हुए काम्बोज जी के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को भी उजागर किया है। वे लिखती हैं कि साहित्य की विविध विधाओं पर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने अत्यंत गंभीरता से काम किया है। ऐसा बहुत कम होता है कि एक बहत्तर वर्षीय साहित्यकार तकनीक का और कम्प्यूटर का इतना बड़ा जानकार हो कि कम्प्यूटर इंजीनियर की तरह तकनीकी रूप से कार्य कर सके। डॉ.कविता भट्ट ने काम्बोज जी की इस खूबी का ज़िक्र करते हुए लिखा है-"यह सुखद और आश्चर्यजनक है कि आपकी तकनीकी सक्रियता के फलस्वरूप ही प्रत्यक्ष रूप से हिन्दी चेतना (अन्तर्राष्ट्रीय) वेब तथा मुद्रित, लघुकथा डॉट कॉम, त्रिवेणी, हिन्दी हाइकु व सहज साहित्य जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं और परोक्ष रूप से अनेक साहित्यिक वेबसाइट्स व पत्रिकाएँ नैरंतर्य व प्रवाह के साथ गतिमान हैं। साहित्य तथा तकनीकी कर्म का मणिकांचन संयोग उनकी पीढ़ी के साहित्यकारों में स्तुत्य है।" कविता जी ने रामेश्वर काम्बोज जी के व्यक्तित्व के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष को उजागर किया है, जिसे प्रायः हम सभी ने अनुभूत किया है कि वे प्रतिभावान युवा पीढ़ी और नवांकुरों को आगे बढ़ाते है। आज के युग में जब प्रायः अधिकतर वरिष्ठ साहित्यकार आत्ममुग्धता में लीन रहते हैं, वे केवल स्व-प्रचार में लगे रहते हैं, तब काम्बोज जी संभावनाशील, अध्ययनशील और मौलिक सृजनकर्ताओं की पीढ़ी निर्मित करते हैं, उन लोगों को आगे बढ़ाते हैं, जो बिना किसी जोड़-तोड़ के, चुपचाप अपने काम में लगे हैं। यह रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी का ऐसा गुण हैं, जो उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है।

डॉ.कविता भट्ट द्वारा संपादित इस पुस्तक में रामेश्वर काम्बोज जी की बहुआयामी रचनाधर्मिता का मूल्यांकन करने वाले तीस आलोचनात्मक लेख संकलित हैं। व्यंग्य विधा पर लिखी काम्बोज जी की पुस्तक 'खूँटी पर टँगी आत्मा' पर सात लेख इस पुस्तक में हैं। प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. शंकर पुणतांबेकर ने अपने गंभीर आलोचनात्मक लेख में लिखा है-"समर्थ लघुकथाकार के रूप में ख्यात काम्बोज जी व्यंग्य में नया नाम हैं उनके व्यंग्यों में पैनापन है, उनकी भाषा भी पैनी है। राजनीति, शिक्षा, साहित्य, समाज की विकृतियों को उन्होंने जिस खूबी के साथ पकड़ा है, इसी तरह उनका ध्यान गया है, मनुष्य की प्रदर्शन प्रियता, डींग, प्रशस्ति, लोभ जैसी कमजोरियों पर।"

डॉ. राजाराम जैन ने 'खूँटी पर टँगी आत्मा' को आधुनिक व्यंग्य साहित्य की अमूल्य कृति कहा है। उन्होंने 'खूँटी पर टँगी आत्मा' के अनेक व्यंग्यों जैसे 'श्यामलाल जी का अभिवंदन' , 'कहानी फाइल की' , 'पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ' आदि व्यंग्यों के उदाहरण देकर यह निरूपित किया है कि काम्बोज जी के व्यंग्यों में एक गहराई है कहीं भी छिछले हास्य का प्रयोग नहीं किया गया वरन शिष्ट हास्य का प्रयोग करके व्यवस्था के दोषों को उभारा गया है। इसी पुस्तक पर जवाहर चौधरी लिखते हैं-'श्री रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु'का व्यंग्य-संसार बहुत परिष्कृत है। आम तौर पर व्यंग्यकार के पास छड़ी होती है पर हिमांशु जी लाठी घुमाते प्रतीत होते हैं। सुभाष नीरव ने' खूँटी पर टँगी आत्मा'संग्रह के व्यंग्यों के परिप्रेक्ष्य में कहा है कि पैनी दृष्टि, पैनी भाषा जो एक व्यंग्यकार के पास होनी चाहिए वह रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु'के पास है। अनिता मंडा ने रामेश्वर काम्बोज जी के व्यंग्यों की सफलता का श्रेय उनकी भाषा को दिया है। डॉ. मंजुला गिरीश उपाध्याय ने लिखा है कि रामेश्वर काम्बोज जी' हिमांशु' ने समाज में चल रहे कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर गहरे कटाक्ष किये हैं।

उपर्युक्त सभी आलोचकों ने रामेश्वर काम्बोज जी 'हिमांशु' के व्यंग्यों में विसंगतियों पर चोट करने की शक्ति और भाषिक सामर्थ्य और व्यंजनात्मकता की गहन उपस्थिति को स्वीकारा है।

रामेश्वर काम्बोज जी सुप्रसिद्ध लघुकथाकार हैं उनकी लघुकथाओं पर प्रख्यात साहित्यकार सुकेश साहनी ने एक गंभीर आलोचनात्मक लेख लिखकर काम्बोज जी की लघुकथाओं का सम्यक विश्लेषण किया है।

सुकेश साहनी ने काम्बोज जी की लघुकथाओं के वैशिष्ट्य को इंगित करते हुए लिखा है-" सधी हुई और कसी हुई सजग भाषा आपकी अभिव्यक्ति को प्रखर बनाती है। शीर्षक चयन की सजगता, प्रत्येक लघुकथा में निहित गहन अर्थ और चिंतन की गहराई पाठक को बाँध देती है।

डॉ. कविता भट्ट ने काम्बोज जी की आलोचना पुस्तक 'लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य' पर समीक्षात्मक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के इस समालोचनात्मक कार्य को ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य निरूपित किया है। इस पुस्तक में काम्बोज ने लघुकथा के स्वरूप को विवेचित कर इस विधा को सच्चे अर्थों में स्थापित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। डॉ. सुषमा गुप्ता ने 'लघुकथा: संचेतना एवं अभिव्यक्ति' में संकलित लेखों के आधार पर काम्बोज जी के समालोचक रूप का गहराई से आंकलन किया है। हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवजी श्रीवास्तव जी ने लिखा है कि श्री रामेश्वर काम्बोज लघुकथा के क्षेत्र की अत्यंत चर्चित विभूति हैं, वे एक श्रेष्ठ संपादक, उत्कृष्ट कथाकार होने के साथ ही लघुकथा के समालोचनात्मक स्वरूप को स्थापित करने की दिशा में सक्रिय हैं। शिवजी, श्रीवास्तव जी, काम्बोज जी की इस आलोचना पुस्तक की समीक्षा अत्यंत विवेक सम्मत ढंग से की है और काम्बोज जी की आलोचनात्मक दृष्टि का सूक्ष्म परीक्षण किया है। आलोचना पुस्तक की आलोचना करना निःसंदेह एक कठिन कार्य है; लेकिन शिवजी श्रीवास्तव ने अपने आलोचकीय विवेक और सूक्ष्म परीक्षण से इस पुस्तक का बड़ी बारीकी से मूल्यांकन किया है। 'गद्य-तरंग' में कविता भट्ट ने डॉ. हृदयनारायण उपाध्याय के गंभीर आलोचनात्मक लेख 'लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं उसका वर्तमान स्वरूप' शामिल किया है, जिसमें उपाध्याय जी ने काम्बोज जी की लघुकथा की समालोचना पुस्तक के महत्त्व को रेखांकित किया है। कृष्णा वर्मा ने लघुकथा की इस समाचोलना पुस्तक का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि यह पुस्तक लघुकथा लेखकों, समीक्षकों, आलोचकों तथा शोधार्थियों के लिये बहुत उपयोगी है। पवन जैन ने भी लघुकथा के वर्तमान स्वरूप का निरूपण करने वाली इस पुस्तक की महत्ता को स्वीकार किया है।

रामेश्वर काम्बोज की बाल कहानी 'हरियाली और पानी' पर कृष्णा वर्मा ने लिखा है कि बाल मन को पर्यावरण के प्रति सजग करती तथा प्रेम मैत्री और एक दूजे के प्रति आदर का पाठ पढ़ाती यह कहानी शिक्षाप्रद है। इस पुस्तक की लगभग एक लाख प्रतियों का प्रकाशन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा हुआ है, यह ख़ुशी की बात है।

गद्य-तरंग में रामेश्वर काम्बोज की लघुकथा पुस्तक 'असभ्य नगर' पर गोविंद राव मराठे, नवीन चतुर्वेदी, हृदयनारायण उपाध्याय और कल्पना भट्ट ने अपनी आलोचकीय प्रतिभा का उपयोग करते हुए सुचिंतित लेख लिखकर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की लघुकथाओं को गहराई से मूल्यांकित किया है।

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'हाइकु आदि काव्य धारा: स्वरूप एवं सृजन' पर रमेश कुमार सोनी द्वारा लिखा गया लेख गद्य-तरंग पुस्तक का महत्त्वपूर्ण लेख है। इसी पुस्तक पर डॉ. पूर्वा शर्मा ने लिखा है-'यह पुस्तक जापानी विधा के हिन्दी भाषा साहित्य में काम्बोज जी की साधना का परिणाम है।' उनकी काव्य-आलोचना की पुस्तक 'सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प' पर रमेश कुमार सोनी ने लिखा है।

गद्य-तरंग में रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' से 'लघुकथा कलश' के संपादक योगराज प्रभाकर जी से परिचर्चा भी संकलित है। यह परिचर्चा एक लघुकथाकार के रूप में काम्बोज जी की रचना प्रक्रिया को समझने में पाठकों की सहायता करती है। काम्बोज जी का मानवतावादी दृष्टिकोण, स्वयं के मूल्यांकन की प्रवृत्ति तथा लेखन में श्रेष्ठ देने का उनका संकल्प इस परिचर्चा में स्पष्ट झलकता है।

कविता भट्ट ने 'गद्य-तरंग' में काम्बोज जी की कुछ लघुकथाओं पर डॉ. सरस्वती माथुर, सुरेश बाबू मिश्र, डॉ. आशा पांडेय, रश्मि शर्मा, डॉ. अनीता राकेश, प्रियंका गुप्ता, सुदर्शन रत्नाकर, स्व। निशान्तर, डॉ. कुँवर दिनेश सिंह, सत्या शर्मा कीर्ति, हरेराम समीप, डॉ. सुधा ओम ढींगरा, रणजीत टाडा, सुकेश साहनी, संतोष सुपेकर, अर्चना राय, बी.एल.आच्छा, हरिशंकर सक्सेना, डॉ. नितिन सेठी, डॉ. जया नर्गिस, डॉ. सुधा गुप्ता, रमेश गौतम, भावना सक्सेना और विरेंदर 'वीर' मेहता के लेख है।

निसंदेह इतने विद्वानों द्वारा काम्बोज जी की रचनाधर्मिता पर लिखना उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। काम्बोज जी के बाल साहित्य का सुन्दर विश्लेषण स्वराज सिंह और प्रियंका गुप्ता ने किया है। डॉ.कविता भट्ट जी ने रामेश्वर काम्बोज के चार महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक लेख संकलित करके गद्य-तरंग को पूर्णता प्रदान की है।

नि: संदेह डॉ.कविता भट्ट द्वारा संपादित यह पुस्तक हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज जी के गद्य के क्षेत्र में किए गए उनके बहुआयामी व्यापक सर्जन फलक को समेटने वाली पुस्तक है। -0-

गद्य-तरंग: संपादक-डॉ. कविता भट्ट, प्रकाशन-अयन प्रकाशन, 1 / 20, महरौली, नई दिल्ली-110030, संस्करण-प्रथम 2021, मूल्य-380 रुपये। पृष्ठ: 184

हरियाणा प्रदीप दैनिक गुडगाँव, 23 मई 2021 में प्रकाशित