राम की अग्नि-परीक्षा / अलका सैनी

Gadya Kosh से
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राम अपने क्वार्टर में उदास बैठा था। वह हाथ पर हाथ धरे सोच रहा था कि नंदिता न जाने पड़ोसन अंजु की बातों का क्या मतलब लगा रही होगी। आज तो अंजु ने उस पर कहर-सा ही ढाह दिया था। राम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर किस हक़ से और क्यों अंजु ने मजाक-मजाक में इतनी बड़ी बात कह दी?

नंदिता को सामान्य करने के लिए राम ने अपनी ओर से काफी प्रयास किया, परन्तु उसका चिंतित होना स्वाभाविक सी बात थी।उसकी जगह कोई भी अन्य औरत होती उसे बुरा तो लगता ही। बेशक नंदिता ने उससे कोई सवाल नहीं किया था पर उसकी खामोशी से वह बेहद डर गया कि कहीं यह किसी आने वाले तूफ़ान से पहले का सन्नाटा तो नहीं? और राम और नंदिता का रिश्ता तो अभी बिल्कुल नया था। अभी एक महीना ही तो बीता था दोनों को विवाह बंधन में बंधे हुए। अभी तो वे एक दूसरे को ठीक से जानते भी नहीं थे, एक दूसरे के स्वभाव के बारे में, पसंद ना पसंद के बारे में कुछ भी तो नहीं जानते थे। उनका रिश्ता अभी बिल्कुल कच्ची डोर से बंधा था।

राम के मन में ना चाहते हुए भी अंजु के बचकाने बर्ताव के कारण उनके लिए अजीब-सी कडवाहट भर गई थी। एक चलचित्र की भांति उसके मन पटल पर पुरानी सारी बातें घूमने लगी।

जब एक दिन विमल ने, जो कि उसके बड़े भाई की तरह थे, खुद ही कितने हक़ से उससे कहा था, “राम, तुम यहाँ अकेले रहते हो इसलिए जब भी तुम्हे कोई परेशानी हो या किसी चीज की जरूरत हो तो हमारे पास बेझिझक आ जाया करो। हम लोगों को पराया मत समझना, हम लोग तुम्हारे बड़े भाई-भाभी की तरह ही तो है। तुम इतने होनहार और होशियार हो, बंटी और बबली की भी इस बहाने पढ़ाई में मदद कर इनका मार्ग-दर्शन कर दिया करना तो हमे अच्छा लगेगा “

राम कुछ हिचकिचाते, औपचारिकता वश बोला, “भाई साहिब, मै तो अपने गाँव से इतनी दूर किसी को अच्छे से जानता नहीं था आप लोगों के साथ के कारण ही तो मेरे जैसे शाकाहारी आदमी के लिए घर से बाहर आकर रहना संभव हो पाया है, मै आप लोगों के अहसानों का बदला किस तरह चुका पाऊंगा “

राम भी अपनी नौकरी वाली नई-नई अजनबी जगह पर विमल के परिवार का साथ पाकर बहुत खुश था।

विमल के घर के सभी सदस्य भी राम से काफी घुल मिल गए थे, “हाँ राम, हम भी तुम्हारे जैसे अच्छे पड़ोसी को पाकर खुद को बहुत भाग्य शाली समझते हैं।। असली समय में तो पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है।बाकी रिश्तेदार तो दूर ही होते हैं हम चाह कर भी उन लोगों से मिल नहीं सकते।"

राम की शादी के समय भी विमल ने काफी मदद की थी, उसने उनसे बीस हजार रुपये भी उधार लिए थे जिन पैसों से उसने स्कूटर और घर का जरुरी फर्नीचर भी खरीदा था।कभी-कभी वह अपनी ड्यूटी से वापिस आने पर विमल के यहाँ ही खाना खा लेता था। हर दिन त्यौहार पर जैसे कि दीवाली, होली या किसी का जन्म दिन वगैरा होता था तो दोनों पति-पत्नी राम को जरुर खाने के लिए आमंत्रित करते थे।राम और विमल के परिवार के बीच में काफी अन्तरंग सम्बन्ध बन गए थे। इधर राम की भी हर पल यही कोशिश होती कि विमल की मदद का कोई भी मौका चुके नहीं चाहे उनके बच्चों की पढ़ाई का मामला हो या विमल के गिरते स्वास्थ्य के प्रति ध्यान देने की बात हो।एक बार जब विमल की तबीयत काफी खराब हो गई और उस दिन मूसला धार बारिश हो रही थी तब राम स्कूटर पर जाकर डाक्टर को घर से बुला कर लाया था।

एक बार तो सुबह-सुबह विमल को अस्थमा का जोरदार दौरा पड़ा और वह खांसते-खांसते जब फर्श पर गिर गए थे और सिर पर चोट लगने से अचेत हो गए थे तब राम अपने मैनेजर से कार माँग कर लाया था और विमल को अस्पताल में भर्ती करवाया था।इस पर अंजु ने अपनी कृतज्ञता जताते हुए कहा था, “राम तुम तो हमारे लिए हमेशा ही एक देवदूत बन कर आते हो। आज अगर तुम ना होते तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता, विमल जी को नया जीवन दान देकर तुमने हमारे पर बहुत उपकार किया है।” यह कहते ही वह इतना भावुक हो गई कि उनकी आँखों से आंसू बहने लगे।

राम ने अंजु को सांत्वना देते हुए कहा, “कैसी बातें करती है भाभी जी, यह तो मेरा फर्ज था, आपने और भाई साहिब ने जो मेरे लिए किया है वह मै जीवन भर भुला नहीं सकता।आप लोगों के कारण ही तो मेरा इस अजनबी जगह पर अकेले रहना संभव हो पाया है वरना मै अकेला घर से इतनी दूर कैसे रह पाता और अपनी नौकरी छोड़ कर कब का भाग गया होता '

राम की भावुकता भरी बातें सुनकर अंजु ने रोना बंध कर दिया।रसोई में जाकर वह राम के लिए खाने के वास्ते पता नहीं क्या-क्या ले आई और राम को कहने लगी, “खाओ, राम कब से अस्पताल के चक्कर काट रहे हो, अपने मुँह से तो तुम कुछ कहोगे नहीं? क्या भूख नहीं लग रही तुम्हे?”

ये सारी बातें राम के मानस-पटल से एक-एक करके होकर गुजर रही थी।वो सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर उन्होंने क्या सोचकर इतनी बड़ी बात उसकी नई नवेली पत्नी के सामने कह दी।शुरू शुरू में जब राम अपनी शादी के बाद नंदिता को पहली बार अपने क्वार्टर लाया था तब उसकी माता जी भी उनकी नई नई गृहस्थी जमाने के वास्ते गाँव से उनके साथ आ गई थी। जब मंजू भाभी उसकी माँ से मिलने उनके घर आई तो राम पर अपना अधिकार जताते हुए उन्होंने कहा था, “मांजी, मै भी आपकी एक बहू ही तो हूँ। राम मेरे सगे देवरों से भी बढकर है और वह भी तो मुझे अपनी सगी भाभियों से ज्यादा मानता है। “

उसकी माँ तो इन बातों को आशय समझ नहीं पाई, पर नंदिता को उनकी कही बातें चुभने लगी। नंदिता के मन में उनके प्रति नफरत-सी होने लगी।एक बार तो उन्होंने बातों-बातों में नंदिता को यहाँ तक कह दिया, “नंदिता, राम तो मेरी चूड़ियों तक से खेल लेता था कभी-कभी....”

यह कह कर वह तो चुप हो गई पर नंदिता का चेहरा फक सफ़ेद पड़ गया और एक तूफ़ान उसके मन में उठने लगा। उसकी समझ में नहीं आया कि सीधी-सादी दिखने वाली भाभी का ऐसा कहने का क्या तात्पर्य है कहीं शादी से पहले दोनों में प्रेम तो नहीं था? नहीं, राम के बारे में वह ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। नंदिता को राम पर पूरा भरोसा था पर राम का उनके परिवार के प्रति झुकाव से उसके मन में संदेह घर करने लगा। भले ही, राम को वह सीधे-सीधे कुछ नहीं कहती थी पर कोई भी मौका कुछ भी कहने का मिलता तो वह चूकती नहीं थी।

एक बार उनके आफ़िस की एक पार्टी थी जिसमे सब परिवार समेत आते थे इसलिए नंदिता वहाँ जाने के लिए तैयार हो रही थी और अपने गाँव की पारम्परिक वेशभूषा में वह बहुत खूबसूरत दिखाई दे रही थी पर उसने अपनी माँग में सिन्दूर नहीं भरा था यह देखकर मिसेज श्यामलाल ने उसे टोका था इस पर नंदिता से रहा नहीं गया, “तुम्हारी भाभी, क्या मेरी सास लगती है जो बात-बात पर मुझे टोकती रहती है।अभी तक उनके बड़े होने का लिहाज कर रही थी अगर अगली बार उन्होंने ऐसा कुछ कहा तो मै चुप नहीं रहूंगी और कुछ उल्टा सीधा सुन लेगी वह मेरे से तब न कहना.......”

इतनी उग्र बात उसके मुँह से सुनकर राम को बहुत अचरज हुआ और राम ने उसे शांत होने को कहा और उसे प्यार पूर्वक समझाया तब जाकर उसका गुस्सा एक बार तो शांत हो गया पर अगली बार फिर मौका मिलने पर वह राम पर कटाक्ष करने से नही चुकी, “राम कई बार मै पहले भी महसूस कर चुकी हूँ तुम अंजु भाभी के गलत होने पर भी हर बार उसी का पक्ष लेते हो तो उसी के साथ घर क्यों नहीं बसा लेते? "

राम ने इतनी कड़वाहट भरी बातें किसी के मुख से पहली बार सुनी थी। उसको मन ही मन नंदिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था फिर भी उसने अपने आप पर काबू रखकर नंदिता के मन में से वहम दूर करने का भरसक प्रयास किया, “नंदिता, तुम व्यर्थ ही मुझे गलत समझ रही हो। भाभीजी एक धर्मपरायण औरत है और मुझसे उम्र में भी कितनी बड़ी है।मै जब यहाँ अकेला था तो उनका मेरे से कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया था बस अपनी आत्मीयता दिखाने के लिए उन्होंने अनजाने में ऐसी बात कह दी थी।”

फिर उसने चूड़ी वाला पूरा किस्सा नंदिता को सुनाया कि जब राम ने अपना रिश्ता पक्का होने की खुशखबरी अंजु भाभी को सुनाई थी तो कुछ और पूछने से पहले पुरानी औरतों की तरह सबसे पहला सवाल उनका यही था, “राम, अपनी होने वाली दुल्हन को कितना गहना चढ़ा रहे हो “

एक बार तो राम चुप सा हो गया फिर परेशान सा होते हुए, “भाभी जी, आपको तो पता है कि अभी कुछ समय पहले ही तो मेरी नौकरी लगी है, जितनी हैसियत होगी उतना समय पर देखेंगे बाकी घर वालों से बात करने पर पता चलेगा। “

अंजु भाभी अपनी आदत से मजबूर चुप कैसे रह सकती थी, “भई, हमारे यहाँ तो शादी-ब्याह में सबसे जरूरी कपड़ा-गहना ही होता है। मेरी शादी में विमल जी के घर वालों ने पूरे पचास तोले सोना चडाया था और इतना ही मेरे मायके से था। इतना ही नहीं हर साल विवाह की वर्षगाँठ पर श्यामलाल जी मुझे कोई ना कोई सोने का गहना ही तोहफे में देते हैं”

"भाभी जी आपका समय सस्ता समय था आज कल इतनी महंगाई में शादी-ब्याह में और भी इतने खर्चे हो जाते है जितना जरुरी होगा समय पर देखेंगे। “

“अरे बाकी खर्चे वरचे तो होते रहते हैं पर लड़की के वास्ते तो हमेशा की जमा पूँजी उसका गहना-कपड़ा ही होता है “

राम अंजु भाभी की बहुत इज्जत करता था क्योंकि उन्होंने उसकी काफी मदद की थी इसलिए उसे जब कुछ ना सूझा तो वह बोला, “भाभी जी, आपने जो चूड़ियाँ पहन रखी है वो सोने की ही है ना, जरा मुझे उतार कर दिखाएँ तो, अगर ऐसी ही चूड़ियाँ मै नंदिता के लिए बनवाऊं तो कितने तक बन जाएँगी “


किन्तु राम के इतना सब कुछ समझाने पर भी नंदिता का गुस्सा शांत नहीं हुआ और तपाक से फिर गुस्से में बोली, “अगर मै इसका गलत अर्थ समझ रही हूँ तो अगर तुममे है हिम्मत तो जाकर खुद ही उनसे सही अर्थ पूछ आओ, डरना किस बात का जब हाथ कंगन को आरसी क्या?“

एक बार तो राम का भी मन हुआ कि भाभी जी से जाकर उनके कहने का भावार्थ पूछे पर दूसरे ही क्षण उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा।उसे रह-रह कर उनके अहसान याद आ रहे थे और वह एक बेसिरपैर की बात के कारण बेवजह कैसे उन पर कीचड उछाल सकता था। वह शून्य की ओर ताकने लगा।मन ही मन वह अपने हृदय को टटोल भी रहा था, उसने तो ऐसा कोई गुनाह नहीं किया है जिसकी वजह से उसकी आत्मा कलूषित हो। मगर चूड़ियों के साथ खेलना... चूड़ियों के साथ खेलना जैसे भारी भरकम शब्द उसके सीने को बड़े पत्थर की तरह दबा रहे थे।उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि चूड़ियों से खेलनी वाली बात को लेकर जो शक नंदिता के मन में घर कर गया उसे वह सीता की तरह अग्नि परीक्षा देकर भी पार नहीं कर पाता। नंदिता उसके एक पवित्र गुनाह की वजह से उसकी अग्नि परीक्षा लेने पर तुली है।और वह सोचने लगा, कितना अच्छा हो, धरती फट जाए और वह उसके गर्त में समा जाए। उसे लग रहा था कि क्या चिता पर धधकती आग में समा कर राम को अपने पतित्व का परिचय देना हैं?