राम गोपाल वर्मा की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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राम गोपाल वर्मा की वापसी
प्रकाशन तिथि :03 मई 2016


राम गोपाल वर्मा अपने स्वयं रचे वनवास के बाद मुंबई लौटे तो अपनी पहली पारी में उनके फिल्म निर्माण दफ्तर का नाम 'कंपनी' था। फिल्म उद्योग के प्रारंभिक दशक में स्टूडियो को फैक्ट्री ही कहते थ और काम करने वाले कर्मचारियों पर फैक्ट्री के नियम लागू होते थे। इसका यह अर्थ नहीं कि राम गोपाल वर्मा ने फिल्म उद्योग के इतिहास बोध से प्रेरित होकर यह नाम रखा था। उनकी सोच में लोगों को चौंकाना वे आवश्यक समझते हैं। इतना ही नहीं उनकी फिल्में भी चौंकाने के लिए बनाई जाती थीं। राम गोपाल वर्मा ने फिल्मी वीडियो की सर्कुलर लाइब्रेरी चलाई और 'शिवा' नामक उनकी पटकथा में उन्हें फिल्म बनाने का अवसर मिला। यह गौरतलब है कि वर्मा न तो किसी निर्देशक के सहायक रहे और न ही उन्होंने किसी संस्थान से फिल्म शास्त्र सीखा था गोयाकि एक दर्शक फिल्मकार बन गया। एकलव्य ने तो द्रोणाचार्य की मूर्ति के सामने अभ्यास किया था, वर्मा का कोई शिक्षक नहीं रहा, इसलिए इन्हें गुरु दक्षिणा भी नहीं चुकानी पड़ी।

आमिर खान और उर्मिला मातोंडकर अभिनीत 'रंगीला' अत्यंत सफल रही और इसी के साथ उर्मिला मातोंडकर वर्मा की फिल्मों की स्थायी नायिका बन गईं। वर्माजी का नाम राम है परंतु श्रीकृष्ण व उनकी लीला ही उनका आदर्श रहा है। उर्मिला के अपने फिल्मी मुखड़े के बाद वर्मा ने अंतरा माली के साथ अनेक फिल्में बनाईं। उन्होंने अंतरा की उत्तराधिकारी जिया खान और अमिताभ बच्चन के साथ 'नि:शब्द' नामक फिल्म बनाई, जिसमें उम्रदराज पात्र एक षोड़सी से इश्क करता है। आर. बाल्की की 'चीनी कम' से पहले 'नि:शब्द' उम्र की खाई को पार करने वालों की प्रेमकथा थी। आर. बाल्की ने अपने मिज़ाज के अनुसार उम्र की खाई की गहराई में ठहाका लगाया तो वर्माजी ने खाई से आती भांय-भांय की ध्वनी की शब्दहीनता को पकड़कर 'नि:शब्द' रची। हर सृजनधर्मी अपने मूल मिज़ाज से रचना गढ़ता है। जयदेव की राधा से अलग है सूरदास की राधा और इन दोनों से अलग है धर्मवीर भारती की राधा। सदियों पूर्व वात्स्यायन ने राधा-कृष्ण के प्लेटोनिक प्रेम को शारीरिकता देते हुए कामसूत्र रच दिया। ईसा के जन्म से कई सदी पूर्व के वात्स्यायन ने उस दौरान उस मिलन को अपराध माना है, जिसमें लोगों के मन में देह धर्म को निभाते समय किसी अन्य की कल्पना है, जो उस स्थान से कोसों दूर बैठा है। वर्माजी का रचनाकाल तो 'चादर बदल' कालखंड था।

इस नई पारी में राम गोपाल वर्मा की प्रेरणा कौन है? उनका स्वभाव तो गोपनीय बातों को उजागर करना और उजागर करने वाली बातों को गोपनीय रखना रहा है। कुछ समय पूर्व ही जब उन्होंने अपनी सुपुत्री का कन्यादान किया तब ही ज्ञात हुआ कि वे अपनी पहली फिल्म बनाने के पहले ही शादीशुदा थे। आज भी उनकी पत्नी जाने कहां गुमनाम जीवन जी रही है। यह भी कितने समय बाद ज्ञात हुआ कि नरेंद्र मोदी विवाहित थे। प्रधानमंत्री निवास में उनकी पत्नी साथ नहीं है परंतु वह जहां कहीं भी है रिश्तों की खोज में उनकी अवचेतन का अध्ययन समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए महान विषय है। आप अमृतलाल नागर का 'मानस का हंस' पढ़िए, जिसमें तुलसीदास रत्नावली से उस समय मिलने जाते हैं, जब वह मृत्यु शैया पर लेटी है। ज्ञातव्य है कि पत्नी की आसक्ति में आकंठ डूबे युवा तुलसी सांप को रस्सी समझकर उसे पकड़कर अपने मायके आई पत्नी से मिलने जाते हैं और वह झिड़कती है कि इतनी आसक्ति राम के प्रति होती तो भवसागर पार हो जाते। इसी निर्णायक क्षण ने उस मांसलता के दीवाने को संत कवि तुलसीदास बना दिया। जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काटने वाला व्यक्ति भी महान कवि हो गया! ऐसे विरल क्षण अनेक लोगों के जीवन में आते हैं परंतु वे अपनी लोभ, लालच से सनी चिकनी हथेलियों से उन्हें फिसलने देते हैं।

बहरहाल, राम गोपाल वर्मा अपनी दूसरी पारी में 'रंगीला' के रास्ते पर या 'सत्या' के रास्ते पर चलेंगे या अब नया रास्ता बनाएंगे, जिसकी क्षमता उन में है। उर्मिला या अंतरा के स्थान पर कौन होगा? वर्मा बिना कैमरे के फिल्म बना सकते हैं परंतु एक अदद उर्मिला या अंतरा के बिना वे सोच ही नहीं सकते। उनकी कर्म-कुंडली का यह निर्णायक ग्रह है। नारी शरीर की आकी-बाकी बुनावट से ही वे अपनी फिल्म पटकथा के पेंच गढ़ते हैं। अपनी पुस्तक 'एनाटॉमी ऑफ मेलंकली' के लिए प्रसिद्ध लेखक राबर्ट बर्टन ने 'बॉडी एंड सोल' नामक उपन्यास में एक नाविक पात्र रचा है, जो महीनों समुद्र यात्रा पर रहता है और इन यात्राओं में इतनी शिद्‌दत से अपनी पत्नी को याद करता है कि उसके सशरीर मौजूद हो जाने का भ्रम रचता है। वह अपने मित्र को पलंग पर वह दबा हुआ-सा स्थान भी बताता है जहां उसकी पत्नी बैठी थी। सुखद आश्चर्य की बात यह है कि उसने किताब का प्रेरणा मंत्र महात्मा गांधी के इस कथन को बताया है कि विवाह दो शरीरों के जरिये आत्मा के मिलन का पुनीत कार्य है। सारी आध्यात्मिकता की जमीन शरीर ही है जैसे ऊपर चंदोबा से तने आकाश का महत्व भी धरती से ही है। आश्चर्य है कि 'सत्या' के लेखक अनुराग कश्यप और निर्देशक वर्मा जाने कैसे भटक गए।