रावण / मूल : सुमंत रावळ / उल्थो : शिवचरण मंत्री / कथेसर

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जुलाई-सितम्बर 2012  

रामराजपुर पांच हजार री बस्ती रो अेक गांव। वीं गांव में सगळी ही जात रा लोग रैवता। पण बां में खुली मजूरी अर दिहाड़ी करणिया जादा हा। ताल्लुका में सै सूं जादा कथोळ जात इणी गांव में ही। पैली अेक काची सड़क इण गांव न स्हैर सूं जोड़ती ही। गांव ऊबड़-खाबड़ धरती पर बस्यो हो। पण अेक विधायक विधायक कोष सूं इण सड़क नै सीमट री बणा दी। इण सूं गांव आळां रो स्हैर में आणो-जाणो आसान हो गियो हो। घणखरा लोग गाडिय़ां सूं ही आता-जाता हा। पण थोड़ा'क लोगां कनै साइकिलां भी ही। बठै ही दो-च्यार समरथ जमींदारां रा राजकुंवरा कनै मोटर-साइकिलां भी ही। गांव रा तीन मोटियार बैंक सूं करजो लेयनै छकडिय़ा लाया तो इण सूं मजूरां नै मजूरी करबा लई आवणो-जावणो आसाण हो गियो। पक्की सड़क होण सूं गांव में तीन बसां भी आती-जाती ही। पण छकड़ी को भाड़ो कम होण सूं घणखरी सवारियां छकडिय़ा सूं ही स्हैर आती जाती ही।

गांव रै उतराधै पासै राजा रै बगत रो अेक पुराणो टूट्यो-फूट्यो दरवाजो हो। इण दरवाजै रैबारै अेक छपरा वाळो बस-अड्डो हो। अठै अेक घणो जूनो घेरदार बड़ रो रूंख हो अर जिनावरां सारू पाणी पीवण री मोटी खेळी ही। चूंतरो हो। चूंतरा पर काई लाग्या, बदबूदार पाणी रा दो मटका अर मटका कनै पड़्या रैवता प्लास्टिक रा टूट्या-फूट्या लोटिया। छकड़ीवाळां रो ओ पक्को स्टैण्ड हो। अठै सगळा छकड़ीवाळा बड़ री घेरदार छाया में सीमेंट री टूटी-फूटी बैंचां पर बैठ बतळावण रो आणंद माणता।

तीन्यूं छकड़ी वाळा अेक ही गांव रा हा। तीन्यूं रो जठै धन्धो अेक हो बठै ही दिशा भी अेक ही होता थकां मनोदशा न्यारी-न्यारी ही। इणां में सबसूं पैली शिवगौर रै बारै में बात करां। शिवगौर रा बापू आजीवन पण्डताई करता-करता सुरग सिधारिया। पण बेटै छोटै थकां ही पण्डताई न धोक दी अर होश संभाळता सागै छकड़ी मोल ले ली। हाथां में जोर हो। मांगणो नीं हो। खून-पसीनो कर कमाणो हो। शिवगौर आपरी छकड़ी रो नाम राख्यो माणकी। पैली बापू रै कनै 'माणकी' नाम री अेक घोड़ी ही पण जद शिवगौर घोड़ी पर बैठण लायक हुयो तो बापू उण घोड़ी न बेच दी। बस, उणी टेम शिवगौर मन ही मन पक्को मतो कर्यो कै जे अेकर बो 'माणकी' घर नीं लायो तो पण्डित को पूत नीं। अर अब घर में जद तीन पहियां री माणकी आयगी तो बो फूल्यो नीं समायो अर पेन्टर सूं छकड़ी की पट्टी पर 'माणकी' नाम लिखायो तो उणरो मन घणो राजी हुयो। ज्यूं ही बो माणकी पर सवारी करी कै उणरा मूंडा सूं बरबस निकळ्यो 'चाल म्हारी माणकी....। म्हारी माणकी चाल।' दूजी छकड़ी का मालक को नाम हो भीखो बादर। भीखै बादर रो बापू आपरो खेत गिरवी मैल'र भीखै नै छकड़ी दिराई ही। भीखो घणो मस्त जीव हो। स्हैर जावतो, बठै सिनेमा रो विग्यापन देखतो सवारियां नै छोड़'र सिनेमा हाल में जा बैठतो। भीखो मूंडा में पान रो बीड़ो दबातो, आंख्यां पर नीला रंग रो चश्मो चढ़ातो, कान में इत्र रो फूओ राख'र बार-बार कंघा सूं बाळ संवारतो अर छकड़ी रै हैण्डिल में लागिया कांच में मूंडो देखतो रैवणो भीखै री आदत ही। तीजी छकड़ी रघु कोजी री ही। रघु री मायड़ अड़ोस-पड़ोस में कैवती रैवती कै म्हारो बेटो तीस बरस रो हो गियो है पण हाल ई बींनै कळजुगी छाया नीं छू सकी है। म्हारा लाल लई सारी लुगाई जात मां-बेटी सी है। अेकर बेटा रो ब्याव कर्यो तो करकशा नार बेटा नै सोतो छोडऩै ऊछळगी अर पीर में जा बैठी। आखर इज्जत नै रो'र उणां सूं लिखित में छूटा-छेड़ो कर लीयो। अब तो मूओ गळा में कंठी बांध ली है अर संसार सूं विरक्त हो गियो है। भगवान का गुणगान करै है। मूओ, घणा ही धरम करै है। कबूतरां नै दाणो डालै अर कुत्तां नै रोटी भी डालै है।

रघु रा बापू गांव में नवरात्रा में रामायण का मंचन में राम रो स्वांग भर जद मंच पर आवता तो इतरी भीड़ उमडती कै प्रांगण में तिल रखण री जगां नीं रैवती ही। नवरात्रा पूरा हो जाण पर भी रघु रा बापू रै दिमाग में राम रो रूप ज्यू-त्यूं बण्यो रैवतो हो। गरभवती मां, बेटो होण पर बेटै रो नांव राम राखण रो संकळप लियो। मां बेटो जण्यो तो मा स्नेव सूं बेटै रो नांव रघु राख्यो। रघु जदै मात्र पांच बरस रो ही हो, गांव रामराजपुर में गोदबा वाळा को काफिलो आयो तो बापू राम रो मूल नांव रघु मान'र बेटा रघु री डावै हाथ री कलाई सूं लेयनै अकूणी तक अेक ऊभो धनुष-बाण रो निसाण अर सागै रघु नांव गुदवा दियो। रघु घणो ही रोयो पण बापू राजी रेड होर कियो, अबै गांव रामराजपुर में राम जनम गिया है। रघु थोड़ो बड़ो हुयो कै वीं रा बापू चालता रिया। रांडी रांड मायड़ दूजां री काळी मजूरी कर बेटा रघु नै कमाण लायक बणायो। स्हैर में भेजनै मोटर चलावणो सिखायो। इणरो सर्टिफिकेट लियो और छकड़ी दिराई। रघु सुबै ही नहा-धोयनै घरै सूं निकळ जावतो, राम मिन्दर जायनै दरसण करतो, पुजारी वीं रा लिलाड़ माथै रामजी की भांत को खड़ो तिलक करतो, इण पछै वो साफो बांधतो। आधी बांह की खाकी कमीज अर चौड़ी मोहरी री हर्यै रंग री पैण्ट वीं री रोज री डरेस ही। रघु रो ओ गणवेस देख'र मुंह बिगाड़ कैवती- 'मूरख, जिनावर-सो हो'र भी पैण्ट पैरै है।' रघु आ सुण भी मून रैवतो क्यूंकै वो गळा में राम नांव री कंठी पैर ली ही। वो साध-संता सूं भाड़ो नीं लेवतो हो अर छकड़ा सूं उतरती टैम बैंनै पांच-दस रुपिया भेंट दे'र कैवतो- 'महाराज, सेवक री या छोटी-सी भेंट लेण की किरपा करो..' अर दोनूं हाथ जोड़ सिरधा सूं कैवतो- 'स्वामी जी प्रणियाम'

अेक दिन गांव में अेक बहरूपीया रो पिरवार आयो। बहरूपीयो नित नवा स्वांग भरतो! गांव रामराजपुर रै बीच में सूं निकळता लम्बा बजार रै बीच में अेक चौक हो। बहरूपीयो स्वांग भर बजार सूं होय'र इण चौक में आय ऊभो रैवतो अर स्वांग री बोली बोलतो। इण सूं आण-जावणिया ठग्या रै जावता। देखो, चौक में फौजदार साब ऊभा हा...कानां रा कीड़ा खिर जावै ज्यान की भूण्डी-भूण्डी गाळ्यां निकाळ रिया है....। कदई चौक में पातर आती...आंख्यां पर नीलो चश्मो, माथै थोडा-सा फैशनेबल बाळ, बाळां में फूल लाग्योड़ो, रंगीला होठ अर कांधा पर लटकतो बटवो....लागतो किणी गळी में सूं कोई रंगीली आई है-अणगिणत नखरा....।

बहरूपीयो कदै काळी तो कदैई मां सुरसती को स्वांग भरतो, कदी अखंड मालवा रै स्वामी भरथरी रो तो कदैई जटाधारी जोगी गोरखनाथ रो। कदैई सोना री लंका का स्वामी रावण रो तो कदैई दुरबळ भिखारी बण'र हाथ में कटोरो ले'र भींख मांगतो। अेक दिन कांवड़ ले'र वीं रा दोन्यूं पालड़ां में बूढ़ा, आंधा मां-बाप रा पुतळा राख'र सरवण को स्वांग भर्यो तो दूजै दिन अेकदम रातोचट मूढो रंग'र 'हुप्प-हुप्प' करतो बजरंग बळी रो स्वांग भर्यो। गळा में काळा कपड़ा रो नाग लपेट महादेव रो, कांधा पर गदा, मरोड़दार घणी मूंछां, गोळमटोळ मोटो-सो पेट बणा'र भीम, माथै पर मोर-मुकुट, होठां पर मुरली, लाम्बा-लाम्बा बाळ, कांधा पर कामळी मैल'र कृष्ण..मदारी..पाण्डुरोगी, गवाळ, सूरदास, पागल, बीसाती.. बहुरूपीयो तीस दिना में तीस स्वांग भर्या। बहरूपीयो गांव रै बारै नदी रा शिव मन्दिर री अेक कोठड़ी में ठहर्यो हो। अठै सूं स्वांग भर'र रोज शाम का नेमसर न्यारा-न्यारा रस्तां सूं बजार रै चौक में जदै आवतो तो लोग हाक-बाक रैय जावता। गांव में सिनेमा नीं हो अर नाटक मंडळियां कम आवती। भवई नृत्य करणिया पेटभराई नीं होण सूं गांवां में आवण री मानो सौगन ही ले ली ही। इण भांत जद बहरूपीयो गांव में आयो, गांव वाळा इण सूं घणा राजी हुया।

इण दिनां रघु आपरी मूछां बढा ली ही। बो बैठ्यो-बैठ्यो मूंछा रै बट देवतौ रैतो अर छकड़ी रै हैण्डल रा कांच में आपरो मूढो देखतो रैवतो। बैठ्यो-बैठ्यो खंखारा करतो रैवतो अनै शिवमिन्दर कानी मूंढो कर पूछतो 'म्हैं किस्योक लागू हूं।'

'मर्द को अंश।' इतरो कैय'र मुळकतो। इणी टेम लुंगायां रो बाढ-सो अेक टोळो आय'र वीं री छकड़ी में बीचो-बीच बैठ गियो। रघु पूछ्यो, 'कठै जाणो है?'

सगळी अेक ही सुर में बोली- 'स्हैर जावणो है। स्हैर में। बठै गोमा नदी पर डैम रो काम चाल रियो है। रोजीना बठै ही जावणो है..गिणती कर ल्यो... सगळी दस लुगायां हां। सब सूं आगै बैठी लाखी घणी बातेरण ही। सगळां रा पावडा, लगारिया अेकठी करती थकां बोली, 'कांई भाड़ो होसी?'

'जो रोजीना लियो जावै बो ही।' रघु मूंछां रै बट देतो कैयो।

'रघु, तू घणो किस्मत-वाळो है।' शिवो बीड़ी सुलगावतो बोल्यो।

'म्हारी छकड़ी तो नित रमणियां सूं भरी रैवै है ...थारी ...थारी...अर' बो लाखी कानी देखतो...बीस बरसां री लाखी रो फुठरापो इतरो मोवणो हो कै देखणवाळो इचरज में डूब जावतो... आ आभा किण घर री दीवारां री शोभा बढावसी?

आथण रघु घरै आयो तो मां बीं री पसंदगी री अरबी री पकोडिय़ां बणाई ही। रघु भरपेट पकोडिय़ां खाई। पाणी पीयो। पाणी पीयनै डकार ली तो मां पूछ्यो, 'रघु, आ मंछा भाभी री राखूड़ी, कांई तनै पसंद है? मां री बात सुणतां सागै ही रघु नै उबाक-सी आवण लागी...

उण कैयो, 'मा, न तो म्हैं राखूड़ी नै देखी अर न ही अब देखण की इंछा ही है।'

'अरे नास-पीटिया अेकर देख तो लै। म्हारा मर्यां पछै थारो कांई होसी?'

'मां, म्हैं आपरा हाथां सूं रोटी सेक लेस्यूं।' कैय'र बो घर सूं निकळग्यो अर रात में सोवण बगत घरां आयो।

रघु नित री टेम उठ्यो, दांतण कर्यो, सिनान कर छकड़ी सम्भाळी अर छकड़ी चला’र राम मिन्दर पूगियो। बठै बापू सूं तिलक लगवायो, धोक दी अर छकड़ी चला’र बस स्टैण्ड पूग’र चैन री सांस ली। इण टेम बड़ हेठै अेक भी छकड़ी नीं ही। सोच्यो, आज सैंग कठै गिया? बहुरूपियो इण टेम आपरा परिवार अर सामान समेत बस अड्डा पर ऊभो हो। सामान घणो हो अर रघु निजर बचा’र निकल जाण की सोच रियो हो कै बहुरूपियो आपरो दोन्यूं हाथां नै पंखा-सा फैला’र रस्ता बीच ऊभो होय’र कैयो, 'म्हानै स्हैर पुगाओ!’ रघु मन में सोच्यो कै कहद्यूं कै चालो, म्हारो छकड़ो पब्लिक रो कोनी...आ छकड़ी रघुबीरसिंह कानासिंह मकवाना री है। पण बहरूपीयो हाथ जोड़’र कैयो 'मूंडै मांग्यो भाड़ो लीज्यो। म्हानै स्हैर पूग’र बीजै गांव पूगणो है...।’

रघु नीचै पड़्या सामान नै ध्यान सूं देख्यो...भांत-भांत रा देवी-देवता रा मोहरा हा। इणां में बो रावण रो मोहरो देख’र बो मूंछां पर बट देबो ही भूल गियो। मोहरा में नौ माथा अर अट्ठारह हाथ हा।

'अै नौ माथा अट्ठारह हाथ क्यूं?’

अेक माथो अर दो हाथ खुद बहरूपीया रा। इण भांत दस माथा अर बीस भुजा। इण तरै मात्र अेक माथो अर दो हाथ असली। बाकी सैंग नकली।

'पण ओ सारो समान छकड़ी में कीकर आयसी?’

'सब आय जासी।’ कैवता बहरूपीया री जोड़ायत समान छकड़ी में राखवा लागी तो रघु बीं नै नाट नीं सक्यो।

रावण का माथा रो खोखो बड़ो हो। बहरूपीयो इण उळझण में हो कै खोखो छकड़ी में कियां मैल्यो जावै कै रघु रै दिमाग में अेक विचार आयो। बो बोल्यो, 'ल्याओ, ओ च्हैरो म्हारा माथा पर राखद्यो!’

'हैं...यान।’ बहरूपीया रो पिरवार अचम्भा में हो देखवा लाग्यो।

'हां, हां। ओ खोखो पहर म्हैं रावण नीं हो जाऊंला। ओ इण सारू पेरियो कै छकड़ी में जगां नीं ही।’

बहरूपीया नै ओ उपाय ठीक लाग्यो। 'ठीक है।’ कैवतो बहरूपीयो मुकट वाळो खोखो रघु रैमाथा माथै मेल दियो। इण सूं सारो दिठाव ही बदल गियो। बीच री खाली जागां में रघु रो मूंछांळो माथो फिट हो गियो। खोखा रै अेक कानी पांच अनै दूजी कानी च्यार अर बीच में रघु रो माथो। इण भांत दस माथा... अर अब खुद रघु दस माथा वाळो रावण हो गियो हो। हैण्डल रै कांच में रघु देख्यो...अर उणरै मूंढै खुसी झलक पड़ी, बो तो वास्तव में रावण ही लागै हो।

'ओ तो घणो ही हळको है।’ रघु कैयो।

'गत्तै रो है। ध्यान राखजो कठै टकरावै नीं। टकराबा सूं टूटै तो म्हारो धंधो चौपट...।’

'कांई नीं हुवै। थावस राखो।’ रघु खंखारतै कैयो अर मूंछां पर बट लगावण लाग्यो कै बड़ रै नीचा सूं कोई हंस्यो, 'राजा रावण, छकडी चलावै।.... हीं हीं हीं...।’

रघु गर्दन घुमावता बुदबुदायो, 'कुण मूरख है?’ इण सागै ही सगळा माथा घुमाया, 'चुप रैयो।’ बींनै लाग्यो जाणै बीं री आवाज ही बदळगी है। अब तो बहुरूपिया रो पिरवार भी छकड़ी में बैठ गियो हो। इण सारू रघु छकड़ी चला दी।माथा हाल रिया हा। बहुरूपिया रो काळजो डर सूं कांप रियो हो, पण बो लाचार हो। स्हैर पूगणो ही हो!

इणी टेम लाखी रस्ता में हाथ लाम्बो कर ऊभी ही। चोली-चणिया में बा घणी फूटरी लाग री ही। माथा सूं पल्लो सरकबा सूं चूंडो साफदीख रियो हो।

'रघु भाया, म्हनै भी ले चाल न?’

'जगां कोनी।’ छकड़ी रोक’र रघु कैयो। लाखी भी देख्यो कै छकड़ी में बहुरूपिया री जोड़ायत अर टींगर सिकुड़’र बैठ्या हा।

'रावण रो रूप बणा’र भी मनै ना कै रिया हो...लंकापति हो’र भी म्हनै नाट करो!’ लाखी जद गम्भीर हो’र आ बात कैयी तो रघु रो मन पिघळ गियो। उण कनै पड़्यै पीपै माथै हाथ मैल’र कैयो, 'इण पीपा पर बैठसी?’

'हां...हां।’ उण कैयो। अर मन में आयो कै कह देवै कै जे तू थारी गोद में भी बिठावै तो म्हैं बैठवा न राजी हूं...पर थारा में सामरथ कठै?’ लाखी पीपै माथै आपरो अेक कूल्हो टिका’र अेक हाथ सूं सरियो पकडऱ बैठगी। छकड़ी घुर्र-घुर्र री आवाज करती फेरूं दौड़बा लागी। रावण रा नकली माथा हिलता-डुलता तो रघु बारम्बार कांच में देख’र घणो राजी होवतो। बटाऊ आ देख’र आपस में ताळियां बजा’र खिल-खिलार हंसता हुया कैवता, 'देखो, रावण रथ हांक रियो है...।’

सूरज री किरणां पड़बा सूं माथा पर रख्यो जरीकाम रो मुकट चमचमा रियो हो। बटदार मूंछां में बो वास्तव में रावण ही लाग रियो हो। बो कुण है? आ सोच मन में गुदगुदी होवै ही। बो आपै आप ही सुवाल कर पडूत्तर दीयो कै 'बो लंकाधिपति रावण है।’ आ छकड़ी पुष्पक विमान अर सीता?’ बो गरदन घुमा’र लाखी कानी देख्यो। लाखी को सगळो डील चमचमा रियो हो।

कीं उथळ-पुथळ जरूर होती लागै! बहरूपीया री अनुभवी आंख्यां सूं कीं छीप्यो नी रियो। स्हैर भी दूरां सूं दीखवा लाग्यो हो, जणां बो कैयो, 'रघु भाई! छकड़ी रोको, म्हे अठै ही उतरालां।

'पण स्हैर तो हाल ही अेक किलोमीटर दूर है?’

'म्हानै अठै सूं ही बस मिल जावैली।’ अर बहरूपीयो अर उणरो परिवार बठै ही उतर गियो। अर बै अेक अेक कर आपरो सगळो समान उतार लीधो। बाकी रैय गिया मात्र रघु रा पैरिया माथा।

खूंजा सूं भाड़ै रा पीसा निकाळतां बहरूपीयै कैयो, 'रावण का माथा उतारो!’ आ बात सुणतां रै सागै रघु रो पारो चढ़ गियो अर लाखी कानी देखतां मूंछां ही मूंछां में मुळकियो अर छकड़ी आगै बढ़ा ली। बहरूपीयो देखतो ही रै गियो। लाखी बूबाई, 'रघुभाई, स्हैर बीं बाजू में है।

पण रघु कच्चा रस्ता में छकड़ी दौड़ाबा लाग्यो तो लाखी पूछ्यो, 'रघु भाई, थे अठी कर कठै जाओ हो?’

'बस तू देखती रह।’ कैवता रघु लाखी को हाथ पकड़ लियो। लाखी बूबारण लागी। पण रघु तो जाणै पागल ही हो गियो हो। लाखी री बूबाड़ सुण’र बीं रो सीनो मानो गजां फूल रियो हो... बीं रै अेक हाथ में लाखी रो बावट्यो हो तो दूजा हाथ में हैण्डिल हो। लाखी नै उपाय सूझ्यो। बा रघु री कलाई में बटको भर्यो। रघु इण अचाणचक हमला सूं घबरायो। बीं रै हाथ सूं लाखी रो हाथ छूट गियो अर बा चालती छकड़ी सूं नीचै कूदगी। नीचै उतर बा भाटा उठाया अर तेज रफ्तार सूं छकड़ी पर भाटा फैंकण लागी- 'अरे! थारी अैसी की तैसी, तनिक ऊभो रह।’ पण रघु खीं खीं कर’र हंसतो रियो अर छकड़ी दौड़ातो रियो। बीं रा दायां हाथ पर तीरकमान को चित्र गूद्यो हो और उणां रैहेठै रघु रो नाम मोटा आखरां में लिख्यो हो। पण उछळती-फुदकती छकडी रैकारण बो चितराम अर नाम दोन्यूं ही कांप रिया हा।