रावी पार / गुलजार / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जनवरी-मार्च 2012 |
मूल रचना :- गुलज़ार
राजस्थानी में अनुवाद :- असद अली 'असद '
ठाह नीं दरसण सिंघ पागल क्यूं कोनी होयो? बाप घरां मरग्यो अर मां इण बच्यै-खुच्यै गुरदवारै मांय गमगी....अर साहनी अेक सागै दो टाबर जण दिया। जोड़ला। दोनूं ई छोरा। इण हाथ दे अर उण हाथ ले रो सौदो कर्यो हो किस्मत उणरै साथै।
सुणै हा, आजादी आय चुकी है या आवण वाळी है। तो लायलपुर कद पूगसी। ठाह नीं पड़ै हो। हिन्दू सिक्ख सगळा लुकता-लुकाता गुरदवारै मांय भेळा होवै हा। साहनी रात-दिन पीड़ सूं भेळी होवै ही। पूरै दिनां ही अर पैलो-पैलो जापो।
दरसण सिंघ रोजीना रोळै री नवी-नवी खबरां लावतो। बाप कीं थावस बंधावतो- 'कीं कोनी होवै, बेटा....। कीं भी नीं होसी। अबार तांई किणी हिन्दु, सिक्ख रै घर माथै हमलो होयो है कांई?'
'गुरदवारै माथै तो हमलो होयो है नीं बापूजी। दोय बर लाय लाग चुकी है।'
'अर थे सगळा बठै ही भेळा होवो?'
इण बात पर दरसणसिंघ चुप हो जावतो। पण जिण नै देखो बो ही घर छोड़'र गुरदवारै मांय बासो लेवै हो।
"अेक सागै सगळा होवण सूं बौत हौसलो मिलै है बापूजी। जाबक ही भौ नीं रैवै। आपरी गळी मांय तो अबै कोई भी हिन्दू या सिक्ख रैय नीं सकै। बस म्हे ही हां - अेकला।"
दस-पन्दरा दिन पैलां री बात ही। रात रै बगत बापूजी रै 'पडऩ' री आवाज आई आंगणै मांय सूं, अर सगळा उठग्या। दूर गुरदवारै सूं 'बोले सो निहाल' रा नारा सुणीजै हा। बापूजी री इण सूं ही आंख खुलगी अर बै छात माथै देखण नै चल्या गया। पगोथियां उतरतां-उतरतां पग तिसळ्यो अर बस। आंगणै मांय राखेड़ी कुदाल माथै मांय बैठगी।
किणी तरियां बापू रां संस्कार पूरा कर्या। अर जो कीं माल-मत्तो हो। अेक तकियै मांय भर्यो अर गुरदवारै मांय बासो लियो। गुरदवारै मांय डर्योड़ा लोगां री कमी नीं ही, इण खातर कीं हौसलो रैवतो हो। अबै उण नै डर नीं लागै हो। दरसणसिंघ कैवतो 'आपां अेकला थोड़ी हां। और कोई नीं है तो कांई होयो, वाहेगुरू तो कनै है।'
मोट्यार सेवादारां रो जत्थो रात-दिन काम मांय लाग्योड़ो रैवतो हो। लोग आप आपरै घरां जित्तो भी आटो, दाळ, घी हो, सो अठै ले आया हा। लंगर रात-दिन चालै हो। पण कद तांई? ओ सवाल सगळा रै जी रो जंजाळ हो। लोगां नै आस ही कै सरकार कीं कुमक भेजसी।
'कुण सी सरकार?' अेक पूछतो 'अंगरेज तो चल्या गया।'
'अठै पाकिस्तान तो बणग्यो है, पण पाकिस्तान री सरकार नीं बणी अबार तांई।'
'सुण्यो है अठै मिलिटरी घूमर घालै। बा आपरी हिफाजत मांय सरणारथियां रा काफला सीमा तांई पुगा दैवे है।'
'सरणारथी? ....बो कांई होवै है?'
'रिफ्यूजी'
'ओ सबद तो पैलां कदैई सुण्यो कोनी।'
दो तीन परवारां रो अेक जत्थो, जिण सूं दबाव सहन नीं होयो, निकळग्यो।
'म्हे तो अबै चालसां ठेसण माथै। सुण्यो है गाड्यां चालै। अठै भी कद तांई बैठ्यां रैयसां?'
'हिम्मत तो करणी पड़सी अबै। वाहेगुरू कांधा माथै तो बैठा'र लै जावण सूं रैया!'
अेक गुरूवाणी रो हवालो दियो- 'नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार।'
सूनियाड़ रो अेक बुलबुलो बण जावतो हो माहौल मांय। फेर कोई आवतो अर बारै री खबरां सूं ओ बुलबुलो फूट जावतो।
'टेसण माथै बौत बड़ो कैम्प लागेड़ो है।'
'लोग भूख सूं ई मरै अर खा खा'र ई। बीमारी ई रफ्तार सूं फैलण लागरी है।'
'पांच दिन पैलां अेक ट्रेन गुजरी ही अठै सूं। तिल धरण नै ई जिगा नीं ही। लोग छात माथै ई बैठा हा। गुरदवारै मांय रात दिन पाठ चालै हो। बौत चोखी घड़ी मांय साहनी आपरै जुड़वा टाबरां नै जलम दियो हो। अेक तो जाबक ही कमजोर हो। बचण री उम्मीद ई कम ही। पण साहनी नाभी रै जोर सूं बांध राख्यो हो उण नै। इण रात ई किणी कैय दियो....स्पेसल ट्रेन आई है रिफ्यूजियां नै लेवण खातर। चालो, निकळ चालो सै रा सै।
अेक मोटी भीड़ गुरदवारै सूं रवाना होयगी। दरसणसिंघ भी। साहनी घणी कमजोर ही। पण छोरां रै सहारै चालण नै त्यार होयगी। मां हालण सूं मना कर दियो।
'मैं आ जासूं बेटा। आगलै जत्थै मांय। बीनणी अर म्हारै पोतां नै संभाळ अर निकळ जा बेटा।'
दरसणसिंघ बौत जिद करी तो गुरूग्रन्थी समझायो, सेवादारां हिम्मत दी- 'निकळ जाओ सरदार जी। अेक अेक कर सै रा सै बॉर्डर पार पूग जा सां। मां सा म्हारै सागै आय जासी।'
दरसणसिंघ मर्यै मन सूं सगळा सागै रवाना होयग्यो। ढकणै आळी अेक बेंत री टोकरी मांय घाल'र टाबरां नै इण तरियां उठा लिया कै आपरै परवार रो खोमचो लेय'र निकळ्यो है जाणै। ठेसण पर गाड़ी तो ही पण गाडी मांय जिगा नीं ही। छात माथै भी लोग घास जियां उगेड़ा हा। पण घणी दुबळी, पतळी, कमजोर अर सजरी जापायत जाण'र लोगां छात माथै ऊचाय ली अर जिगा दे दी। लगैटगै दस घण्टा पछै गाड़ी मांय की हरकत होई। सिंझ्या बौत लाल ही। लालम लाल, तप्योड़ो, तमतमायोड़ो मूंडो। साहनी री छाती निचोइज'र छूंतको होयगी। अेक टाबर नै राखती तो दूजो उठाय लेवती। मैला कुचैला गाबां मांय दो टाबरां री पोटळ्यां। लखावै हो जाणै कूटळै रै ढिग मांय सूं उठाय'र ल्यायोड़ा होवै.... कीं घण्टां पछै जद रात होयगी तो दरसणसिंघ देख्यो कै अेक टाबर रा हाथ पग हालै हा, कदैई कदैई रोवण री अवाज भी आवै ही, पण दूजो टाबर जाबक चुप हो। पोटळी मांय हाथ घाल'र देख्यो तो कद रो ठण्डो पड़ चुक्यो हो।
दरसणसिंघ फूट-फूट'र रोवण लाग्यो तो आसै-पासै रा लोगां नै भी ठाह पडग़ी। सगळा चावता कै साहनी कनै सूं उण टाबर नै ले लेवां। पण बा तो पैलां ही पत्थर बणगी ही। पण टोकरी नीं छोड़ी।
'नीं, भाई रै बिना दूजो दूध कोनी पीवै।' घणी खींचाताण रै पछै भी साहनी बा टोकरी नीं छोड़ी।
ट्रेन दस बार रुकी, दस बार चाली।
लोग अंधारै मांय ही तीर चलावता रैया।
'बस जी....खैराबाद निकळग्यो....।'
'ओ तो गुजरांवाला है जी...।'
'बस अेक घण्टो ओर....लाहौर आयो नीं कै समझो पूगग्या हिन्दूस्तान।'
जोस मांय लोग नारा भी लगावण लाग्या।
'हर-हर महादेव.....'
'जो बोले सो निहाल.....'
गाड़ी अेक पुळ माथै चढी तो लहर सी दौड़ण लागी।
'रावी आ ग्यो जी...'
'रावी है? ....लाहौर आ ग्यो....।'
इण रोळै मांय किणी दरसणसिंघ रै कानां मांय कह्यो....'सरदारजी....टाबर नै अठै ही फैंक द्यो, रावी मांय। इण रो कल्याण हो जासी। बीं पार ले जाय'र कांई करसो?'
दरसणसिंघ होळै सी'क पोटळी आपरै कनै कर ली अर फेर अचाणचक पोटळी उठाय ली अर वाहेगुरू कर रावी मांय फैंक दी। अंधारै मांय हळकी सी अवाज सुणाई दी....किणी टाबर री।
दरसणसिंघ घबरा'र साहनी कानी देख्यो।
मुरदो टाबर साहनी री छाती सूं लिपटेड़ो हो।
फेरूं रोळै रो अेक गुबार उठ्यो।
'बाघा.....बाघा!'