राष्ट्रवादी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरवाजे पर दस्तक हुई| ”मम्मा मम्मा, बाहर कोई दरवाजा पीट रहा है” एक दस ग्यारह साल के बेटे ने अपनी मां को आवाज़ लगाई|

“अब इतनी रात गये कौन आ गया”,वह बड़बड़ाआई|”पूछो कौन है,क्या काम है इतनी रात को?” उसने किचिन में से ही जोर से चिल्लाकर बेटे को समझाइश दी|

बेटे ने वैसा ही किया तो बाहर से आवाज़ आई ”दरवाजा खोलो मैं हि‍दु हूं जरूरी काम है|”

“अरे बाप रे हिंदु”,बेटा डर गया|

“माँ कोई हिंदु है, कहता है दरवाज़ा खोलो जरूरी काम है|”बेटा चिल्लाकर बोला|

माँ घबड़ाकर बाहर के कमरे में आ गई ”कौन है क्या काम है?” अब माँ ने पूछा|

“देखिये मैं राष्ट्रवादी हिंदु हूं कृपया दरवाज़ा खोल दें आप लोगों से बहुत ही जरूरी बात करना है|”

राष्ट्रवादी हिंदु और इतनी रात को, यह राष्ट्रवादी हिंदु तो साम्प्रदायिक होता है वह सिहर गई,राष्ट्रवादी हिंदु हैं तो राष्ट्र के पास जाये यहां क्यों आ मरा?”वह बड़बड़ाने लगी|

“अजी सुनते हो ,बाहर कोई राष्ट्रवादी हिंदु दर‌वाजा खोलने के लिया कह रहा है” वह अपने पति रमेश को आवाज़ देने लगी|

पति महॊदय धड़धड़ाते हुये ऊपरी मंजिल से नीचे आ गये| “क्या कहा, राष्ट्रवादी हिंदु? इतनी रात गये यहां, यहां उसका क्या काम है?” देखिये इतनी रात को हम दरवाज़ा नहीं खोल सकते|आप राष्टवादी हिंदु है,राष्ट्रवादी हिंदु देश से प्रेम करता है और हमारे देश में जो देश सॆ प्रेम करता है वह साम्प्रदायिक होता है|आप जाईये प्लीज|”

“देखिये मैं राष्ट्रवादी हिंदु………आप से आवश्यक काम…………….|”

“आप जाईये|”रमेश दहाड़ा|

इधर रमेश की पत्नी ने फोन उठाया और पड़ोसियों को सूचना देने लगी बाहर

राष्ट्रवादी हिंदू घूम रहा है कोई दरवाजा न खोले प्लीज़|