राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

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काग़ज़ क़लम लेकर... पलंग पर बैठकर... कुछ लिखने के लिए, मैं सोच में निमग्न था। तभी एक गगनभेदी नारा सुनाई दिया--- राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद !

मैं चौक उठा। दौड़कर बाहर निकला। आवाज़ पूरब दिशा से आ रही थी। लगा कि आकाशवाणी हो रही है। आवाज़ को लक्ष्य करके मैं दौड़ पड़ा। नदी, नाला, जंगल, पहाड़ आदि को लांघते-फांदते मैं उड़ा जा रहा था। 'किबिथू' पहुँचने पर मुझे नारा लगाने वाला वह आदमी मिल गया। कुछ देर तक मैं उसे निहारता रहा। फिर पूछा, "महाशय, आपका नाम क्या है? आप किस धर्म के हो?" मेरे सवाल से वह क्रोधित हो उठा। आंखें लाल हो गई। बिना कुछ कहे, उसने मेरे दाएँ गाल पर एक जोरदार तमाचा लगा दिया। मैं सीधे पीछे मुड़ गया।

पीछे मुड़ते ही, वह नारा पश्चिम दिशा से आने लगा। मैं उधर दौड़ा। 'गुहार मोती' में उसी तरह का एक आदमी नारा लगा रहा था। मैंने पूछा, "महाशय, आप किस जाति के हो?" बस, इतने में वह गुस्सा गया और मेरे बाएँ गाल पर एक झापड़ रसीद कर दिया। मैं 90 डिग्री में घुम गया। नारा की दिशा भी बदल गई। मैं उत्तर तरफ़ दौड़ा। नारा लगाने वाला 'इंदिरा कॉल' पर खड़ा था। मैंने पूछा, "महाशय, आपकी भाषा...?" मेरा प्रश्न पूरा भी नहीं हुआ था कि एक जोरदार चांटा लगा। मैं पीछे मुड़ गया।

राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद !

अबकी बार नारा सुदूर दक्षिण से आ रहा था। मैं भी हार मानने वाला नहीं था। दौड़ते-दौड़ते 'इंदिरा पॉइंट' पहुँच गया। वहाँ जो आदमी मिला, वह कुछ अजीब-सा लग रहा था। इसलिए मैं डायरेक्ट पूछ बैठा, "महाशय, आप किस नस्ल के हो?"

प्रश्न सुनते ही वह तमतमा गया। एकबार ताका। फिर ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ मारा कि मेरी सारी नसें हिल उठी और मेरी नींद टूट गई।

क़लम भी हाथ से छूटकर ज़मीन तक लुढ़क गई थी !