राहुल की पढ़ाई / सुकेश साहनी
वेदप्रकाश जी के घर में उदासी छाई हुई थी। बात थी ही ऐसी. राहुल का छठी कक्षा का परीक्षाफल घोषित हो गया था और वह फेल हो गया था। उसे सभी विषयों में बहुत ही कम अंक मिले थे। वेद प्रकाश जी को अपने इकलौते बेटे राहुल से बहुत आशाएँ थीं। वे राहुल को एक तरह से मेहनती लड़का मानते थे। राहुल को मोहल्ले के अन्य आवारों लड़कों की तरह रोज ही फ़िल्म देखने और फालतू में गप्पें लड़ाने की कतई आदत नहीं थी। उसका एक ही काम था...घंटों पढ़ना। ऐसे राहुल का फेल हो जाना घर वालों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं था।
वेदप्रकाश जी बहुत चिंतित थे। राहुल बहुत उदास और चुप रहने लगा था। उसने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया था। वेदप्रकाश राहुल के कक्षा अध्यापक से मिल चुके थे। वे राहुल के इतनी मेहनत करने के बाद भी परीक्षा में असफल हो जाने का कारण खोेेजने लगे थे।
उस दिन राहुल पढ़ाई कर रहा था। समीप ही अखबार पढ़ रहे वेदप्रकाश जी ने बहुत दबी जबान में अपनी पत्नी से कहा-"आज मेरे एक मित्र दोपहर दो बजे वाली गाड़ी से आ रहे हैं। मुझे उनको स्टेशन जाना है। तुम याद दिला देना।"
दो बजे वेदप्रकाश बेफिक्र होकर एक पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे। तभी राहुल तेेेजी से दौड़ता हुआ उनके पास आया और बोेेला, "पिताजी, आप स्टेशन नहीं गए? आज आपके मित्र आ रहे हैं।"
"तुम्हें कैसे मालूम?"
"आप ही ने सुबह माँ से याद दिलाने को कहा था।"
वेदप्रकाश जी के होठों पर रहस्यमयी मुस्कान रेंगने लगी, "बेटा, उस समय तो तुम पढ़ रहे थे। मैंने स्टेशन वाली बात बहुत ही धीमी आवाज में तुम्हारी माँ से कही थी, फिर भी तुमने सुन ली। इससे एक बात बिल्कुल साफ हो गयी है। जानते हो क्या?"
"नहीं पिताजी?"
वेदप्रकाश जी ने समझाया, "देखो बेटा, आज मेरे कोई मित्र यहाँ नहीं आ रहे थे। ये सब एक नाटक था। ये तो मैं जानता था कि तुम दिन में ज्यादातर समय पढ़ाई में बिताते हो, लेकिन ध्यान कहाँ तक पढ़ाई में केन्द्रित कर पाते हो, इसकी जाँच मैं करना चाहता था। आज की इस घटना से स्पष्ट है कि तुम एकाग्रचित हो कर पूरा ध्यान अपने सबक पर केन्द्रित नहीं कर पाते। यही कारण है कि घंटों पढ़ाई करने केे बाद भी पढ़ा हुआ तुम्हारे मस्तिष्क में सुरक्षित नहीं रहता और परीक्षा में ठीक जवाब नहीं लिख पाते। बेटा, यदि तुम अपने चारों ओर के वातावरण से बेसुध होकर पढ़ाई करोगे तो अवश्य सफल होगे और तुम खुद देखोगे कि इस प्रकार की पढ़ाई के लिए घंटो की ज़रूरत नहीं है।"
पिता के समझाने से राहुल को नई शक्ति मिली। वह पूरे उत्साह से अपने-अपने अध्ययन कक्ष की ओर बढ़ गया।