रिटर्न टू अल्मोड़ा / राजेन्द्र पचौरी / समीक्षा
समीक्षा:अरविन्द मिश्रा
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इंटर गवर्नमेंटल पैनेल आन क्लाईमेट चेंज (IPCC ) के मुखिया और इसी संस्थान के लिए नोबेल पुरस्कार झटक लेने वाले अपने राजेन्द्र पचौरी साहब इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं, मगर इस बार कारण दूसरे हैं . हिमालय के ग्लेशियरों के पिघल जाने संबंधी २००७ में किये गए अपने दावों में कतिपय गलतियों के लिए उनकी खिंचाई अभी थमीं नहीं थी कि एक दूसरा मामला उनकी जग हंसाई का कारण बनता जा रहा है .यह दूसरा मामला दरअसल उनके रोमांटिक उपन्यास रिटर्न टू अल्मोड़ा को लेकर है जिसके हाट विवरणों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बवेला मचा हुआ है .
कृपया ध्यान दें ,आगे वयस्क सामग्री है -
रिटर्न टू अल्मोड़ा की कहानी का मुख्य पात्र एक मौसम विज्ञानी संजय नाथ है जिसके साथ खुद पचौरी साहब का स्पष्ट तादात्म्य झलकता है -साठोत्तरी जीवन में पदार्पण कर चुके संजय नाथ अपने संस्मरणों का साझा करते हैं पाठकों से -कैसे वे भारत के एक कसबे से निकल कर पेरू से होते हुए अमेरिका पहुंचे और उनकी एक अध्यात्मिक यात्रा पूरी हुई .उनके उपन्यास में वनों को विदीर्ण करते ठेकेदार माफिया और भ्रष्ट राजकीय तंत्र के साठ गाठ का खुलासा तो है मगर उपन्यास के गर्म वृत्तांत पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और साहित्यकारों और मीडिया के बीच चर्चा का विषय बन चुके है जो चटखारे ले लेकर उन्हें पढ़ और एक दूसरे से बतिया रहे हैं -नोबेल प्रतिष्ठा प्राप्त एक जग प्रसिद्ध शख्सियत की यौनिक आसक्ति/फंतासी का मसला गरमाया हुआ है .कई विवरण तो बहुत ही गरम हैं -यहाँ उद्धृत करने में की बोर्ड पर थिरकती अंगुलियाँ शायद और भी थरथरा उठें, मगर कुछ बानगी तो न चाहते हुए भी जी कड़ा करके यहाँ दे रहा हूँ -बस गुजारिश यही है कि मित्रगण मुझे बख्श देगें -भैया इदं न मम -यह मेरा नहीं पचौरी साहब का जज्बा है और मैं तो उनके जज्बे को देख खुद भी हतप्रभ हूँ -प्रतिभा और सेक्स फंतासी में जरूर कोई न कोई सम्बन्ध है जरूर -हा हा -लीजिये मुलाहिजा फरमाएं सीधे रिटर्न टू अल्मोड़ा से .......
"अपनी महबूबा शिरले मैक्लीन से नैनीताल में संजय के मिलन का यह पहला मौका था -वह खुद संजय को बेडरूम में ले गयी ....उसने पहले गाऊँन उतारा ,नाईटी को भी नीचे सरका दिया और शरीर को रजाई के भीतर ढकेल दिया ...संजय ने उसे बहुओं के घेरे में ले लिया और ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात कर डाली...धीरे धीरे बाहुओं का कसाव और चुम्बनों की गहराई बढ़ती गयी ....
मैक्लीन फुसफुसाई ,सैंडी .मुझे आज कुछ नया अनुभव हुआ ....मेडिटेशन के ठीक बाद तो तुम गजब ढाते हो .....क्यों नही तुम हर मेडिटेशन सेशन के बाद एक यह सेशन भी करते ....."
यह तो बस एक छोटी सी बानगी है .मुख्य पात्र के नारी उभारों के प्रति असीम ललक के वृत्तांत से पृष्ठ दर पृष्ठ रंगे हुए हैं ...... यौनिक आनंदों के खुल्लम खुलाखुल्ला उल्लेख तो उपन्यास में खुला खेल फरुखाबादी से भी आगे बढ़ता चला गया है.
एक और बानगी ...."संजय ने एक स्थानीय सावली सलोनी कन्या को विनय के बिस्तर पर देखा ... उसकी भी सहसा एक अतृप्त कामना बलवती हो उठी ....उसने अपने कपड़ों को उतार फेंका और संजना के शरीर की स्पर्शानुभूति में जुट गया .खासकर उभारों को.........लेकिन अतिशय उत्तेजना के चलते शुरू होने के पहले ही वह ढेर हो गया था ...... .....उसने कन्धों को थोडा पीछे की ओर पुश किया इससे उन्नत उभार आगे की ओर और उभार पा गए ....जिन्हें देखकर उसकी सांसे धौकनी हो चलीं ...."
उपन्यास के कई वृत्तांत समूह यौनिक आनन्द पर फोकस होते हैं .एक दृश्य में तो नायक चलती ट्रेन की सहयात्री के रेशमी लाल रुमाल को झटक कर उसी के ही सहारे अपनी पिपासा शांत कर लेता है .
यूनाईटेड नेशंस के अधिकृत एक वैश्विक संगठन का बॉस और नोबेल सम्मान से जुड़े एक प्रखर मेधा के वैज्ञानिक के लिए ऐसा क्या आन पड़ा कि वह भारतीय सन्दर्भ में अश्लीलता से भरे एक सतही रूमानी उपन्यास की रचना कर बैठा ? उपन्यास का विमोचन अभी हाल ही में मुम्बई में उद्योगपति मुकेश अम्बानी के हाथों हुआ -प्रतिभा का एक और अधोपतन! सर्वे गुणा कांचन माश्रयंते ....
पचौरी अपने इन कृत्यों से भारतीयों के सामने कौन सा आदर्श स्थापित कर रहे हैं ?-कहीं इस व्यक्ति को पहचानने में पूरी दुनिया को कोई धोखा तो नहीं हुआ है ?