रितिक रोशन अब उजागर हो रहे हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 मई 2014
अपने तलाक के बाद अपने कोपभवन में बिसूरते नहीं बैठते हुए रितिक अब खुलकर सामने आ रहे हैं, दावतों में जाते हैं, जमकर व्यवसाय व वर्जिश करते हैं और उनकी शर्मीली दबाई-दबाई सी मुस्कान अब ठहाके में बदल गई है। इसका यह अर्थ नहीं कि पत्नी सुजान ने उस पर कोई दबाव बनाया था या कोई बंदिश थी। वे दोनों तो 14 की कमसिन उम्र से ही एक-दूसरे से प्यार करते रहे हैं और लंबी कोर्टशिप के बाद कोई 17 बरस का विवाहित जीवन भी जी चुके हैं परंतु कोई बाहरी दबाव या बिना कारण ही उनका अलगाव और तलाक हो गया। ऐसा नहीं है कि विवाह में किसी तीसरे पुरुष या तीसरी स्त्री के आने के कारण दरार आती है, कभी कोई तीसरा नहीं है फिर भी दूरी बढ़ जाती है। यह सारा खेल ही दोनों के बीच का रहस्य है। शादी का आईना तो बुरी नजर से भी तड़क जाता है और टुकड़ा-टुकड़ा, किर्ची-किर्ची नहीं होकर भी उसमें रहस्यमय विभाजन हो जाता है। हाल ही में करण जौहर के 42वेें जन्मदिन उत्सव पर रितिक ने एक कोने में सिगरेट पीते हुए शाहरुख खान से एक सिगरेट मांगी और उसने अपने चिर-परिचित अंदाज में सिगरेट देते हुए कहा कि यह अभिनय की सिगरेट है, पी लो, अच्छा अभिनय करने लगोगे। महफिल को लगा कि अब विस्फोट होगा परंतु खिलंदड़ रितिक ने अपनी पहली फिल्म में हुए लोकप्रिय नृत्य की एक झलक दिखाते हुए कहा कि यह स्टेप्स आपके काम आ सकते हैं। सारी महफिल में ठहाके गूंजने लगे।
सितारे कभी-कभी अपने सितारा कवच से बाहर आकर सहज मानवीय से लगते हैं तो सबको अच्छा लगता है और दरअसल अपने सितारा लोहे की जिरह-बख्तर से वे जितना अधिक बाहर आएंगे उतनी अधिक ताजगी महसूस करेंगे, जिससे उनका जीवन और अभिनय दोनों ही आलोकित हो सकते हैं। बहरहाल इस समय रितिक रोशन बिना किसी युद्ध और विद्रोह के ही अपने माता-पिता और पत्नी के प्रभाव क्षेत्र से मुक्त अपने ही खुले आकाश में विचर रहे हैं। इस समय वे गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से भी मुक्त हैं। उनके माता-पिता और अब तलाकशुदा पत्नी भी उनके असली हितचिंतक हैं, ये बात वे जानते हैं परंतु इस समय उनका जीवन ऐसा है मानो कोई कठपुतली डोरियों से मुक्त अपने ही मोमेंटम अत: स्वस्फूर्त ऊर्जा से संचालित है। अब वह उस पात्र की तरह हैं जो जीवनी की पटकथा से बाहर जाकर जी रहा है। समझ लीजिए की एक कटी हुई पतंग बिना डोर और उंगलियों के नियंत्रण के ही अपनी ही गति में गाफिल उड़ रही है। थीम पार्क में एक रोलर कोस्टर होता है, जिसे बिजली की शक्ति से ऊंचाई पर पहुंचाया जाता है, फिर बिना बिजली ही वह अपनी स्वनिर्मित ऊर्जा से सारा सफर तय करती है। अब रितिक रोलर कोस्टर हैं।
हर सांसारिक सामान्य व्यक्ति के जीवन में एक रहस्यमय खिड़की उसके ही व्यक्तित्व में खुल जाती है और उसे बंद नहीं करते हुए उसमें विचरण करना स्पेस की भारहीनता का अनुभव देती है परंतु सारा जीवन हम पर ये उपदेश लाद दिए गए हैं कि खुली खिड़कियां बंद कर दो, चोर घुस आएगा परंतु इस प्रक्रिया में स्वयं की सम्पदा से ही हम अनभिज्ञ रह जाते हैं। दरअसल, स्वतंत्रता विरल है। हम सभी कहीं न कहीं बंधे हैं और निदा फाजली बजा फरमाते हैं, 'जीवन शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लम्बाई तक है तेरा सैर-सपाटा'। यह संभव है कि स्वतंत्रता,-वह महान विचार,- हमारे ही भीतर कहीं कैद है और हम ही उसके जेलर हैं। सारे कवच हमारे बनाए हैं, सारे जिरह-बख्तर हमने ही गढ़े हैं। मेरी रचना, 'ताज : बेकरारी का बयान' में औरंगजेब कहता है कि शाहजहां युद्धक्षेत्र से खून से सनी तलवार लिए खेमे में आकर मुमताज की बांहों में समा जाते थे और स्वयं औरंगजेब अपना जिरह-बख्तर उतार भी देता है तो लगता है, यह त्वचा की तरह हमेशा उसे जकड़े रहता है। आजकल रितिक सचमुच रोशन हैं और उन्हीं की फिल्म के संवाद की तरह, 'कृष, अब तुम बड़े हो गए हो'।