रितिक रोशन का 'सेलिब्रेटी भवन' / जयप्रकाश चौकसे

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रितिक रोशन का 'सेलिब्रेटी भवन'
प्रकाशन तिथि : 27 मई 2014


रितिक रोशन ने मुंबई के पश्चिम अंधेरी क्षेत्र में, जहां उनके पिता का दफ्तर है, यश चोपड़ा का स्टूडियो है, एकता कपूर की स्वप्न निर्माण फैक्ट्री है, एक भव्य प्लॉट 70 करोड़ की पूंजी लगाकर भागीदारी में खरीदा है और इस पर 26 माले की इमारत बनाई जाएगी जिसमें हर माले पर एक सर्वसुविधा सम्पन्न फ्लैट होगा। गौरतलब है कि इस गगनचुंबी इटैलियन संगमरमर से सुसज्जित भवन का नाम होगा 'सेलिब्रेटी' और इसमें फ्लैट खरीदने के इच्छुक व्यक्ति की अमीरी तथा प्रसिद्धि का परीक्षण किया जाएगा और श्रेष्ठि वर्ग के उच्च मानदंड पर कमी पाए जाने पर आपका प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिया जाएगा। यह अमेरिका होने को आतुर भारत की एक छोटी सी झांकी है। एक अमेरिकन यात्री ने मुंबई हवाई पट्टी पर उतरते जहाज की खिड़की से जो विहंगम दृश्य देखा, उसमें उसे लगा कि कहीं वह पुन: अमेरिका के जेएफके एयरपोर्ट पर तो नहीं उतरने जा रहा है। वायुयान की खिड़की से गगनचुंबी इमारतों के नीचे पसरे झोपड़ पट्टी की दयनीय बस्तियां नजर नहीं आतीं, वे तो जमीन पर मौजूद हमारे हुक्मरानों को भी नजर नहीं आतीं। भारत महान के विरोधाभास और विसंगतियां समझने के लिए केवल सदियों पूर्व दृष्टि देने वाले कबीर की सहायता आवश्यक है।

आज सारे सितारे अपने विशेषज्ञों के परामर्श से पूंजी निवेश करते हैं और फिल्म से मिला मेहनताना अब उनकी समग्र आय का छोटा सा हिस्सा है। पहली पगार बड़ी बरकत थी कि आज साम्राज्य में बदल गई है। फिल्म उद्योग के इतिहास में राजेंद्र कुमार पहले सितारे थे जिन्होंने उद्योगों में पूंजी निवेश किया। राजकपूर के जीवन में पहली और आखिरी बार अन्य उद्योग में पूंजी निवेश भी राजेंद्र कुमार की सलाह पर हुआ। जब दक्षिण के एक निर्माता ने राजकपूर को अपनी फिल्म में अभिनय के भुगतान के रूप में अपनी प्लांटेशन कंपनी के शेयर देना चाहे और राजेंद्र कुमार की जिद पर उन्होंने स्वीकार किया तथा पंद्रह बीस वर्ष पश्चात उस कंपनी से अनपेक्षित लाभ प्राप्त हुआ क्योंकि वृक्ष बड़े हो गए थे और उनसे निकले द्रव्य से विरल रसायन बनते थे। अगर वृक्ष का व्यवसायिक पक्ष औद्योगिक घरानों को समझ आए तो लाभ के ही बहाने सही कुछ धरती को लौटेगा।

यह सभी क्षेत्रों में हो रहा है कि मुख्य व्यवसाय से अधिक लाभ अन्य से प्राप्त किया जा रहा है जैसे शिक्षक को वेतन से अधिक ट्यूशन से धन मिल रहा है और शिक्षा के उच्च मूल्य अब व्यापार की तराजू में पासंग की तरह इस्तेमाल होते हैं और कुछ लोग तराजू के पलड़े के नीचे कम तौलने के लिए एक चुंबक भी चस्पा कर देते है। रितिक रोशन अकेले यह काम नहीं कर रहे हैं। शाहरुख खान तो अब अति धनाड्य लोगों की 'फोब्र्स' की सूची में आ चुके हैं, अमिताभ बच्चन की जमीनों का आकलन मुश्किल है। बहरहाल दशकों पूर्व कुछ सितारों ने पूंजी निवेश नहीं किया था

तो उम्रदराज होने पर उन्हें अकल्पनीय कष्ट सहने पड़े। दरअसल बचत हमेशा ही मध्यम वर्ग का एकमात्र सम्बल रहा है परंतु आज का मध्यम वर्ग बाजार की चमक-दमक में अपने बचत की जीवन शैली को भूल गया है। मध्यम वर्ग की बचत एवं किफायती जीवन शैली देश की आर्थिक स्थिति का भी मेरुदंड रहा है। आज हमें चारवाक की उस उक्ति का स्मरण होता है कि उधार लेकर घी पूरी का सेवन करें। इस तरह ऐश्वर्य से भरे जीवन का संकेत सदियों पूर्व चारवाक कर चुके हैं। जाने कैसे यह धारणा लोकप्रिय हो गई है कि विदेशी पूंजी निवेश से विकास करें जबकि स्थायी विकास देश के परिश्रम और संपदा से ही किया जाना चाहिए और आर्थिक उपनिवेशवाद से बचना चाहिए। बहरहाल नक्कारखाने में तूती बजाते रहना खामोश रहने से बेहतर है। इस 'सेलिब्रेटी युग' में साधारण होना या आम होना जोखम भरा है परंतु शतरंज राजा रानी का खेल 'पैदल' के बिना खेला नहीं जा सकता। इसे भी भाग्य ही मानें क्योंकि आप 'पैदल' नहीं होकर शतरंज की बिसात भी हो सकते थे।

बहरहाल आज प्रधानमंत्री का शपथ के बाद पहला दिन है और वे पाकिस्तान के हुक्मरान से चर्चा करेंगे। चुनाव प्रचार में जगाया अंधड़ सत्ता आने के बाद बदल जाता है, वाजपेयी ने भी समझौता एक्सप्रेस चलाई थी। आज का दिन इसलिए भी विशेष है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरूकी पचासवीं पुण्यतिथि है। एक अंग्रेजी भाषा में लिखने वाले पत्रकार ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि मृत्यु के बाद गांधीजी का मूल्य बढ़ा है और नेहरू का अवमूल्यन हुआ है। भारत में संत छवि अनंत काल तक कायम रहती है, नेहरू तो कि-शासक रहे और यह कविता का नहीं ग्रामर का युग है। आधुनिक भारत की नींव नेहरू ने रखी है, विज्ञान की शिक्षा, एटोमिक एनर्जी आयोग का गठन, भिलाई इस्पात, भाखरा नंगल इत्यादि के साथ साहित्य अकादमी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, पूना संस्थान इत्यादि। बाजार युग में इन संस्थाओं का अवमूल्यन कोई आश्चर्य की बात नहीं।