रिबिन्किना की तीसरी भारत यात्रा / जयप्रकाश चौकसे

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रिबिन्किना की तीसरी भारत यात्रा
प्रकाशन तिथि :16 दिसम्बर 2016

मुंबई के बांद्रा में लीलावती अस्पताल के निकट आर्ट एंड कल्चर सेंटर में रूस की कलाकार क्षण रिबिन्किना अपने दुभाषिये और दूतावास के अधिकारी के साथ राज कपूर के तीनों पुत्रों से पुरानी यादों को ताज़ा करने के लिए पधारी थीं और श्रोताओं के प्रश्नों के जवाब भी उन्होंने दिए। ज्ञातव्य है कि राज कपूर की 1970 में प्रदर्शित 'मेरा नाम जोकर' में वे तीन में से एक नायिका की भूमिका में अभिनय कर चुकी हैं। उन्होंने दुभाषिये की मदद से संवाद किया और 'जोकर' में भी इसी तरह के दृश्य थे। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में लोग पुश्तों से बैले करते आए हैं परंतु 'जोकर' में काम करने के बाद उनके परिवार के युवा सदस्य भी अभिनय क्षेत्र से जुड़ गए हैं। उनके माता-पिता रूस मंे 'आवारा' देखने के बाद राज कपूर के सिनेमा को पसंद करने लगे और अब उनका पुत्र भी फिल्मों में अभिनय कर रहा है। इत्तेफाक है कि कपूर परिवार की चार पीढ़ियां फिल्म जगत में सक्रिय है।

क्षण रिबिन्किना के साथ वे लेखिका भी आईं थीं, जो उनकी बायोग्राफी लिख रही है। ऋषि कपूर की आत्म-कथा भी 9 जनवरी को बाजार में आ रही है। रिबिन्किना और कपूर परिवार में बहुत-सी घटनाएं एक-सी हो रही हैं। रिबिन्किना की यह तीसरी भारत यात्रा है। अपनी दूसरी यात्रा में वे 'चिंटूजी' नामक फिल्म में छोटी भूमिका निभाने भारत आई थीं। ज्ञातव्य है 'चिंटूजी' नामक फिल्म एक छोटे कस्बे की है, जिसके म्युनिसिपल रिकॉर्ड में अभिनेता चिंटू का जन्म उस कस्बे में होना दर्ज है और एक व्यक्ति अपने कस्बे के विकास के लिए लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अभिनेता चिंटू कपूर को अपने कस्बे में आमंत्रित करता है। इस मनोरंजन कथा का फिल्मांकन ठीक ढंग से नहीं हो पाया था परंतु यह विचार अद्‌भुत है कि हर क्षेत्र में सफलता अर्जित करने वाले लोग अपने जन्मस्थान पर कुछ समय के लिए जाकर उसका विकास कर सकते हैं। मसलन, धर्मेंद्र पंजाब में अपने जन्मस्थान का विकास करें। जन्म स्थान से विशेष मोह होता है जैसा कि धर्मवीर भारती की पंक्तियों में ध्वनित होता है, 'भटकोगे बेबात कहीं लौटोगे अपनी यात्रा के बाद यहीं।'

ग्रीक लोक साहित्य में महान योद्धा यूलिसिस विश्व के अनेक देशों पर विजय प्राप्त करके स्वदेश लौटता है, तो उसकी मां कहती है कि उन्हीं प्रदेशों की एक और यात्रा उसे एक आम आदमी की तरह करनी चाहिए, क्योंकि इसी दूसरी यात्रा में वह वहां के अवाम को समझ सकेगा। सेना के दम पर प्राप्त विजय से आप वहां के लोगों को समझ नहीं पाते। मुगल सम्राट 'बाबर' ने पानीपत में युद्ध के बाद अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे कोई लूटपाट नहीं करें, क्योंकि उन्हें यहीं बसना है और अवाम को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए। मुगल साम्राज्य की नींव ही बाबर के इस कथन के साथ पड़ना शुरू हुई। हम पर पुर्तगाल, फ्रांस और ब्रिटेन ने शासन किया और उन सबको हम भूल चुके हैं परंतु सुनियोजित प्रचार के कारण कुछ लोग आज भी मुगलों के वंशजों को भारतीय मानने से इनकार करते हैं। प्रचार की ताकतें आनुवांशिक तथ्यों को भी झुठला देती हैं। दुनिया के सारे देशों में अन्य देश से आए लोग बसे हैं और हम अपने ज्ञानी पूर्वजों की बात पर अमल नहीं करते कि सारा विश्व ही एक कुटुम्ब है। विज्ञान फंतासी में वर्णित किसी अन्य उपग्रह के धरती पर आक्रमण के समय ही सब एकजुट हो पाएंगे। चीन के आक्रमण के बाद अद्‌भुत एकता देखने को मिली थी। अकीला कुरोसावा की 'सेवन समुराई' से प्रेरित थी 'शोले' और सभी देशों में इस फिल्म ने अनेक फिल्मों को प्रेरित किया है। अकिरा कुरोसोवा की फिल्म के अंतिम दृश्य में एक समुराई अपनी उसी गांव की प्रेमिका से विवाह करना चाहता है, तो वह इनकार करके फसल बोने के लिए जाती है। फिल्म का गांव सभ्यता का प्रतीक है और डाकू असभ्यता के प्रतीक हैं। सभ्यता पर असभ्यता का आक्रमण होता है तो कानून की सरहद पर खड़े वीर लोगों को अपनी रक्षा के लिए आमंत्रित किया जाता है और इस प्रक्रिया में एक प्रेम-कथा का जन्म होता है परंतु सुरक्षित होते ही प्रेम टूट जाता है गोयाकि मनुष्य सुरक्षा के भाव के जागते ही अपने स्वाभाविक टुच्चेपन और संकीर्णता पर लौट आत है। एक ही मनुष्य के भीतर दस मनुष्य छिपे होते हैं और संभवत: रावण के दस सिर का आकल्पन भी इसी तथ्य को रेखांकित करने के लिए रचा गया है।

बहरहाल, रिबिन्किना की यात्रा का आखिरी पड़ाव आज राज कपूर का स्टूडियो और घर है। जोकर के सह-कलाकार धर्मेंद्र से भी मुलाकात संभव है। रिबिन्किना के प्रथम नाम कसिनिया का हिंदी अनुवाद 'क्षण' है।