रिवॉल्वर रानी कंगना के हाथ तलवार! / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :09 मई 2017
पहाड़ी नदी के वेग-सी बहने वाली कंगना रनौट अब मैदानों में मंथर गति से बह रही है। उसके सुडौल कंधों पर एक सोच-विचार करने वाला मस्तिष्क भी है। हाल ही में उसने 'बाहुबली' के लेखक एसएस राजामौली को अपनी फिल्म 'मणिकर्णिका' लिखने के लिए अनुबंधित किया है। ज्ञातव्य है कि यह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरित फिल्म है, जिसकी घोषणा केतन मेहता ने की थी। 'भवनी भवई', 'मिर्च मसाला' और 'माया मेम साहब' के लिए प्रसिद्ध केतन मेहता ने लक्ष्मीबाई बायोपिक का आकल्पन प्रस्तुत किया था और कंगना रनौट से भी उन्होंने संपर्क किया था परंतु अब बन रही इस फिल्म से उनका कोई संबंध नहीं है। यह मुमकिन है कि भव्य बजट की इस फिल्म को केतन मेहता द्वारा बनाए जाने पर पूंजी निवेशक नहीं मिल रहा होगा। आप अरबी घोड़े की सवारी उसके मालिश करने वाले साइस को नहीं देते। ऐसा लगता है कि 'रंगून' के हादसे से कंगना रनौट ने कुछ सीखा है और क्वीन को अपना सिंहासन बचाने की चिंता है।
विगत सदी के छठे दशक में सोहराब मोदी ने अपनी पत्नी मेहताब को केंद्रीय भूमिका में लेकर 'झांसी की रानी' बनाई थी। यह रंगीन फिल्म इतने भव्य पैमाने पर बनी थी कि इसकी असफलता ने सोहराब मोदी की निर्माण संस्था 'मिनर्वा' को लगभग समाप्त ही कर दिया था। फिल्म की असफलता का कारण मेहताब का भाव शून्य होना रहा। पत्नी के प्रेम या दबाव में व्यावसायिक निर्णय लेने का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है। पत्नी के संकेत पर सोने के मृग का पीछा करने स्वयं भगवान श्रीराम गए थे। निष्णात फिल्मकार वी. शांताराम ने अपनी पत्नी संध्या को केंद्रीय भूमिका में लेकर अनेक फिल्में बनाईं और संध्या ही उनमें से कुछ फिल्मों को लेकर डूबीं। 'दो आंखें बारह हाथ' इतनी पवित्र एवं महान मानवीय दस्तावेजनुमा फिल्म थी कि संध्या के उसमें होने के बाद भी वह नहीं डूबी। अनेक लोग समझ ही नहीं पाते कि, 'उनकी नाव में तूफान है।'
भारतीय कथा फिल्मों के प्रारंभिक दशक में धार्मिक आख्यान प्रेरित फिल्में बनती रहीं और इतिहास प्रेरित फिल्मों की आकी-बाकी पगडंडियों से गुजरकर सामाजिक फिल्मों के राजपथ पर आईं।
अब 'बाहुबली' फिल्मों को अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता के मार्ग से वापस मायथोलॉजी की ओर ले जा रही है। राज परिवार में सिंहासन के लिए गृहयुद्ध, गैर-प्रजातांत्रिक एवं वैचारिक पिछड़ापन है और अवाम द्वारा इसे पसंद किया जाना भी ट्रम्प एवं मोदी जैसे शासकों का अनुमोदन करना है। हम बारूदखाने पर माचिस को पहरेदार के रूप में बैठाना चाहते हैं। सामुहिक अवचेतन में जादुई घुसपैठ कर दी गई है। क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म 'इन्सेप्शन' में एक व्यापारी अपने विरोधी व्यापारी के अवचेतन में घुसपैठ करके उससे आत्मघाती निर्णय कराने में सफल होता है। इस महान फिल्म के एक दृश्य में लिफ्ट का नीचे-ऊपर आने-जाने के समय हर माला एक गुजश्ता सदी की झलक प्रस्तुत करता है। एक ही दृश्य में सदियों के फासले तय करने का यह दृश्य सिनेमा माध्यम की अपार ताकत का प्रतीक बन जाता है कि आप कोई भी आकल्पन ऐसा नहीं कर सकते, जिसे फिल्म माध्यम दिखा नहीं पाए। अक्षर और सुर को चुनौती देता है सिनेमा माध्यम।
अक्षर और सुर की जमात में फिल्म की फ्रेम साधिकार बैठ सकती है। इस तरह अक्षर, सुर और फ्रेम की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा मनुष्य की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाती है परंतु चिंता का विषय यह है कि अक्षर, सुर और फ्रेम की त्रिवेणी भी वैचारिक रेजीमेंटेशन के दौर में बेअसर होती जा रही है और अभिव्यक्ति माध्यमों के शवों पर पैर रखता तानाशाह आगे बढ़ते जा रहा है जैसे कटप्पा बाहुबली को बार-बार मारने को तत्पर हो।
इस दौर की शिखर सितारा प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा व दीपिका पादुकोण फिल्म निर्माण में पूंजी निवेश कर रही हैं। अब कंगना रनौट भी इस क्षेत्र में आ गई है। सलमान, शाहरुख, अमीर खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन भी फिल्मों से कमाकर फिल्मों में पूंजी निवेश कर रहे हैं। धर्मेंद्र की विजेता फिल्म कंपनी भी 'घायल', 'घातक,' व 'दामिनी' जैसी फिल्मों का निर्माण कर चुकी है और अब यह कंपनी सनी देओल के पुत्र को नायक लेकर फिल्म निर्माण की योजना पर काम कर रही है। कुछ क्रिकेट खिलाड़ी भी फिल् निर्माण के क्षेत्र में पूंजी निवेश कर रहे हैं। महेंद्र सिंह धोनी ध्यानचंद बायोपिक में पूंजी निवेश का विचार कर रहे हैं।
सचिन तेंडुलकर पर डाक्यू-ड्रामा की शैली में फिल्म बन चुकी है और उसकी प्रशंसा भी हो रही है। ज्ञातव्य है कि अजहरुद्दीन के जीवन से प्रेरित फिल्म बन चुकी है। ललित मोदी ने अाईपीएल तमाशा रचा था। ललित मोदी की जीवन-कथा भी फिल्म प्रेरित कर सकती है,जिसका नाम खलनायक भी हो सकता है। क्रिकेट मैदान पर कोई निर्णय लेने में अम्पायर को दुविधा हो तो प्रकरण पर थर्ड अम्पायर निर्णय देता है। वह खेल के फुटेज को स्लो मोशन में बार-बार चलाकर देखता है। हाल ही में थर्ड अम्पायर ने एक गलत निर्णय दिया, क्योंकि विभिन्न कोणों से देखने पर खिलाड़ी के आउट होने का आभास होता है। कैमरा सच बोलता है और झूठ भी बोल सकता है। मामला निर्भर करता है कि आप किस कोण से देख रहे हैं। हिमालय की गोद में जन्मी मानसरोवर झील में सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों से गिरने पर पानी का जल अलग-अलग रंग का होने का आभास देता है। इस समय जाने कैसे अवाम शासक के कोण से देख रहा है। कोण बदलते देर नहीं लगती।