रिश्ते नाते / रघुविन्द्र यादव
Gadya Kosh से
दो दिन की छुट्टी के बाद कमली जैसे ही घर में घुसी मालकिन ने गुस्से से कहा "कमली, ऐसे काम नहीं चलेगा। तुम तो हर तीसरी दिन छुट्टी करके बैठ जाती हो। अरे, तुझे पहले वाली बाई से सौ रूपये ज़्यादा इसीलिए देने तय किये थे कि रोज़ आएगी।"
"क्या करें बीबीजी, हम भी गृहस्ती लोग हैं, सगे सम्बन्धियों के सुख दुःख में हमें भी शामिल होना पड़ता है। ननद की सास गुजर गई, उसके ससुराल गए थे। अब समाज में रहते हैं तो समाज की मर्यादा तो निभानी ही पड़ेगी। हम आपकी तरह सारे रिश्ते नाते तोड़कर शहर में थोड़े न आ बसे हैं।"
"अच्छा अच्छा ज़्यादा भाषण मत दे... जाकर काम कर।"