रिश्तों का सौदा, भावना का बाजार / जयप्रकाश चौकसे

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रिश्तों का सौदा, भावना का बाजार
प्रकाशन तिथि : 07 फरवरी 2020


आर्थिक हकीकत रिश्तोें के अफसानों को बदल देती है। औद्योगिक घरानों में शादी-ब्याह से शेयर बाजार को प्रभावित किया जाता है। अर्से पहले अमिताभ बच्चन और नूतन अभिनीत फिल्म ‘सौदागर’ में खजूर के वृक्ष से रस निकालकर गुड़ बनाने के कार्य की पृष्ठभूमि थी। नायक अपनी उम्र से बड़ी गुणवान स्त्री से विवाह करता है जो गुड़ बनाने में निपुण है। दरअसल, नायक एक युवा स्त्री से प्रेम करता है, परंतु उसे ‘हके मेहर’ में 500 रुपए अदा करना हैं। इन्हीं रुपयों की खातिर उसने अपने से बड़ी उम्र की गुणवान स्त्री से विवाह किया था। उसने अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए रिश्ता बनाया। 500 रुपए की बचत होते ही वह पत्नी को तलाक दे देता है। उन्हीं रुपयों से वह अपनी मनपसंद युवा स्त्री से विवाह कर लेता है। उसकी दूसरी पत्नी युवा है, परंतु उसे गुड़ बनाना नहीं आता। नायक का व्यवसाय ठप हो जाता है।

दूसरी ओर उसकी तलाकशुदा स्त्री का विवाह एक दूजवर के साथ हो जाता है, जिसके तीन बच्चे हैं। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश की खातिर उसने विवाह किया है। वह एक नेक और सरल व्यक्ति है। दीवालिएपन के कगार पर पहुंचा नायक अपनी तलाकशुदा पत्नी के पास जाता है। निवेदन करता है कि उसकी पत्नी को गुड़ बनाना सिखा दे। वह मदद करती है।

इसी तरह राजिंदर सिंह बेदी के उपन्यास ‘एक चादर मैली सी’ में विधवा नायिका को अपने देवर से विवाह करना पड़ता है। उसकी शादी के समय देवर मात्र 7 वर्ष का बालक है, जिसका लालन-पालन उसकी भाभी ने किया है। गांव के सरपंच यह निर्णय लेते हैं कि उसकी सीमित आय में दो परिवार नहीं पल सकते। अतः देवर-भाभी का विवाह कर दिया जाता है। बड़े संकोच के साथ देवर-भाभी नए रिश्तों को स्वीकार कर लेते हैं। शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली ने इस उपन्यास से प्रेरित फिल्म बनाई थी। तीन चौथाई फिल्म की शूटिंग के बाद गीता बाली को स्मॉल पॉक्स हुआ। बचपन में उन्हें स्मॉल पॉक्स का टीका नहीं लगाया गया था, इसलिए रोग का इलाज कठिन था। उनकी मृत्यु के बाद शम्मी कपूर ने उस फिल्म के निगेटिव जला दिए। उनका ख्याल था कि आउटडोर शूटिंग में यह रोग लगा। तीन चौथाई फिल्म देखने वालों का विचार था कि वह सर्वकालिक महान फिल्म थी और बिना क्लाइमेक्स शूट किए भी प्रदर्शित की जा सकती थी।

ताजा खबर यह है कि किशोर कुमार अभिनीत ‘बेगुनाह’ की कुछ रीलें पूना फिल्म आर्काइव को प्राप्त हो गई हैं। ज्ञातव्य है कि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन ने दिया था। एक गीत जयकिशन पर फिल्माया गया था। ज्ञातव्य है कि यह फिल्म डैनी के अभिनीत ‘नॉक ऑन वुड’ से प्रेरित थी। अमेरिकन निर्माता ने भारी-भरकम हर्जाने के लिए आई.एस.जौहर को नोटिस जारी किया था। जब आई.एस.जौहर ने अमेरिकन निर्माता को समझाया कि हर्जाने की रकम में भारत की 50 फिल्में बन सकती हैं, तब उस दौर की हकीकत को समझने के बाद अमेरिकन निर्माता ने अदालत में मुकदमा दायर नहीं किया। आज किशोर कुमार के पुत्र अमित आदेश देने वाले कोर्ट की तलाश में हैं। उन्हें बताया गया कि कोर्ट के आदेश पर फिल्म की रील जला दी गई थी। दरअसल हमारे देश में इतिहास बोध की कमी है और अपनी हैरिटेज के प्रति हम लापरवाह रहे हैं। कितने किले ध्वस्त हो गए, कितने महान ग्रंथ नष्ट हो गए। सांस्कृतिक संपदा खो देने वाले एक फिल्म की परवाह कैसे करें? शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर कई दशकों से फिल्म हैरिटेज को एकत्रित कर रहे हैं। मुंबई के तारदेव क्षेत्र में उनका संग्रहालय देखने लायक है।

साधनों के अभाव के बावजूद फिल्मकार प्रयास करते रहे हैं। जब विश्राम बेडेकर, पृथ्वीराज और सुरैया अभिनीत फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ बना रहे थे तब अमेरिका में शिक्षा प्राप्त करने वाला उनका पुत्र स्टूडियो आया। उसने अपने पिता से पूछा कि हम किस कालखंड की फिल्म बना रहे हैं? कुछ पात्र यूनानी पोशाक पहने हैं, तो कुछ मुगलकालीन वस्त्र पहने हैं। विश्राम बेडेकर ने जवाब दिया कि यह फिल्म उनके बुरे वक्त में बन रही है। अनेक लोगों से सहायता लेकर किसी तरह यह फिल्म बनाई जा रही है। आर्थिक सीमाएं फिल्म निर्माण को भी प्रभावित करती हैं। बगीचे के सेट पर कागज के फूल लगाए जाते हैं। फिल्म के सफल होने पर यह कागज के फूल भी महकते से महसूस होते हैं और स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों में बनी फिल्म असफल होती है तो एल्प्स से बर्फ पिघलने लगती है। मध्यम वर्ग ने हर आर्थिक संकट के समय अपनी किफायत और सरल जीवन शैली से अपनी हस्ती बनाए रखी है। विगत कुछ वर्षों में अनावश्यक वस्तुओं से परे जगमग बाजार हमें भरमा रहे हैं। दरअसल हम भरमाई जाने के लिए हमेशा बेकरार रहे हैं।