रिश्तों के दबाव में गलत फैसले / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2014
व्यक्तिगत रिश्तों का असर व्यवसाय के निर्णय पर भी पड़ता है। रितिक रोशन के विवाह में संकट है और रितिक द्वारा अपनी पत्नी सुजान से पुन: मधुर संबंध बनाने के कारण उन्होंने करण जौहर की 'शुद्धि' छोड़ी क्योंकि उसकी नायिका करीना कपूर कभी उनमें बहुत रुचि लेती थी और सुजान को यह नापसंद था। करीना भी फिल्म से हट गई। सुना है कि करण जौहर रनवीर सिंह और दीपिका पादुकोण को लेकर 'शुद्धि' शुरू करना चाहते थे परंतु ताजा समाचार यह है कि रनवीर सिंह ने संजय लीला भंसाली की 'बाजीराव मस्तानी' करना पसंद किया। 'राम लीला' के समय से ही रनवीर सिंह का दीपिका पादुकोण के प्रति एक तरफा प्रेम उनके रोम-रोम से टपक रहा है और ये भी वे भूल चुके हैं कि गोलियों की लीला 'राम लीला' कब की प्रदर्शित हो चुकी है, वे दिमागी तौर पर आज भी अपने पात्र का खिलंदड़पन और पौरुष का अभद्र प्रदर्शन अपने व्यवहार में जारी रखे हैं। उधर दीपिका लोगों की कोहनी में गुड़ लगाने में निपुण है और सारी उम्र उस गुड़ को खाने के प्रयास में आदमी गुलाटियां खाता रहता है।
संजय लीला भंसाली का सहायक निर्देशक था रनवीर कपूर, उसको उसने 'सांवरिया' में प्रस्तुत किया जो इतनी बड़ी असफलता थी कि किसी भी कलाकार का कॅरिअर हमेशा के लिए चौपट हो जाता परंतु रनवीर कपूर असाधारण प्रतिभा के धनी हैं और आज वे अत्यंत लोकप्रिय सितारे हैं तथा युवा वर्ग का उनके साथ विशेष लगाव है। यह संभव है कि सांवरिया के समय अपने स्वभाव के अनुरूप संजय ने उनके साथ कुछ कठोर या अप्रिय व्यवहार किया हो और संभवत: इसी कारण रनवीर कपूर ने उनके साथ दूसरी फिल्म नहीं की है। अत: संजय जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा फिल्मकार मानते हैं को संभवत: लगा होगा कि उनकी अवहेलना हुई है, अत: अब वह कमर कसकर रनवीर सिंह को रनवीर कपूर के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में खड़ा करना चाहते हैं, अत: वे अपनी सामंतवादी ठसक के कारण कटरीना कैफ को 'बाजीराव मस्तानी' में लेना चाहते हैं ताकि रनवीर कपूर को दोहरा झटका लगे परंतु वे रनवीर कपूर की आंतरिक शक्ति से अपरिचित हैं। कोई कपूर पठान अपना सफेद घोड़ा किसी के दबाव में त्याग नहीं करता। ज्ञातव्य है कि पृथ्वीराज के दादा पुलिस में थे और उन्होंने उन दिनों अंग्रेज आला अफसर को अपना प्रिय घोड़ा देने से इनकार करके नौकरी ही छोड़ दी। पेशावरी पठान तेवर ऐसे ही होते हैं। ज्ञातव्य है कि संजय लीला भंसाली 'हम दिल दे चुके सनम' वाले दौर में 'बाजीराव मस्तानी' सलमान खान और ऐश्वर्या राय के साथ बनाना चाहते थे और बाद में सलमान करीना के साथ बनाना चाहते थे। अत: यह फिल्म उनका बारह वर्ष पूर्व देखा सपना है और पहले ये सपने के घोड़े पर सवार थे, अब सपना इन पर सवारी कर रहा है। इन बातों के बावजूद यह तो सर्वमान्य है कि अपने काम का उन्हें जुनून है और नायिका को संपूर्ण लावण्य के साथ प्रस्तुत करने में उन्हें महारत हासिल है।
इस खेल में शायद दीपिका पादुकोण की भी आंतरिक इच्छा यह होगी कि इस फिल्म को कटरीना कैफ करें ताकि रनवीर कपूर से वह दूर हो जाये। आज दीपिका के पास भव्य फिल्मों के अनेक प्रस्ताव हैं, वह कुछ भी चुन सकती है, वह 'शुद्धि' भी चुन सकती है। सभी क्षेत्रों में चुनने की शक्ति महत्वपूर्ण है। रिश्तों के दांवपेंच पर क्षेत्र में निर्णय को प्रभावित करते है। बहरहाल मनोरंजन उद्योग में युवा सितारे अपने खेल में तल्लीन रहते हैं और यह कोई आज का ट्रेंड नहीं है। हमेशा इस तरह के खेल खेले जाते रहे हैं परंतु मनोरंजन क्षेत्र में लंबी पारी वही खेलता है जो सारे प्रलोभनों को अनदेखा करके केवल अपनी प्रतिभा को मांजता है। राजकपूर के जीवन में अनेक इसी तरह की बातें और प्रलोभन रहे हैं परंतु उसने अपने फिल्म निर्माण के काम से कभी समझौता नहीं किया और उतना ही प्रतिभाशाली गुरुदत्त जाने किस आंधी से उभर नहीं पाया। आज यह कल्पना नहीं की जा सकती कि गुरुदत्त चालीस की वय में नहीं जाते तो कितनी अद्भुत फिल्में रचते। हर राह में 'भटकना है मुमकिन, बहकने का डर है'।
रिश्तों के दबाव से लिए गए गलत निर्णयों का विवरण महाभारत में जम कर किया गया है। भावना के वेग के कारण ली गई शपथ के दुष्परिणाम भी इस महाकाव्य में वर्णित हैं। भीष्म ने जनता का हित या धर्म के लिए नहीं वरन् राज सिंहासन के प्रति वफादारी की शपथ ली तो द्रोपदी का चीर हरण भी उन्हें खामोश रहकर देखना पड़ा। सारे आख्यानों में श्राप और वरदान ही प्लॉट को आगे बढ़ाते है परंतु इनके पीछे के रहस्य को लोग अनदेखा करते है। आज भीरिश्तों का दबाव विवेक को हर लेता है। इस विवेकहीन युग को अंधा युग ही मानना होगा। भयावह प्रचार तंत्र द्वारा सत्य के सूरज के लोप होने को हम सब देख रहे हैं।