रिश्तों पर भारी, मानसिक बीमारी / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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कल तक विवाह टूटने के पीछे विश्वासघात, इगो और शक वजह बनते थे; लेकिन इन दिनों परिवार परामर्श और फेमलीकोर्ट में जो मामले आ रहे हैं, वे चौकाने वाले हैं। इन दिनों मानसिक बीमारियों के कारण विवाह टूट रहे हैं और तलाक की नौबत आ रही है।

परिवार परामर्श केंद्र एवम्‌ फेमली कोर्ट की माने तो इन दिनों आने वाले मामलों में मानसिक बीमारियों के चलते तलाक हो रहे हैं। जज ऐसे मामलों को निपटाने से कतरा रहे हैं और वे इन मामलों को मनोचिकित्सकों के पास भेज रहे हैं। साथ ही तलाक पर पुनर्विचार करने के निर्देश भी दे रहे हैं।

क्या हैं ये बीमारियाँ और क्या हैं मामले: परिवार परामर्श केन्द्रों में आने वाले अधिकतर मामलों में एक पक्ष किसी न किसी मानसिक बीमारी से घिरा है। ज्यादातर मामले शिजोफ्रेनिया के हैं। कुछ उदहारण देखिये:

केस नंबर एक: मिस्टर रूपक एक बड़ी कंपनी में मेनेजर है उन्होंने चार बरस पहले नेंसी से प्रेम विवाह किया था। नेंसी एक स्कूल में टीचर है। नेंसी को अब लगता है कि उनके पति का ऑफिस में किसी से गहरा चक्कर चल रहा है। वह घर आते ही रूपक के सभी मोबाइल चेक करती है। छिप-छिप कर फोन सुनती हैं और साये की तरह पीछे लगी रहती है। नेंसी को डर है कि उनके पति किसी और को घर ले आएँगे। बात इतनी बढ़ी कि मामला फेमली कोर्ट में दर्ज है।

केस नंबर दो: विवाह के दस बरस बाद अब मिस्टर पांडे को शक है कि उनकी पत्नी उन्हें खाने में जहर देकर मार डालना चाहती है। इसलिए वे घर पर खाना नहीं खाते। वे अक्सर रात में उठ कर बैठ जाते हैं और उन्हें लगता है पत्नी कभी भी हत्या करवा सकती है।

केस नंबर तीन: विवाह के बीस बरस बाद मिस्टर खन्ना को वहम हो गया कि उनकी पत्नी जायदाद के लिए उनके बच्चों के साथ मिलकर उनकी हत्या करवा देगी।

केस नंबर चार: ग्वालियर शहर की रहने वाली इंदु अग्रवाल को अक्सर भगवान्‍ से बातें करते देखा जाता है। वे पूजा करते समय भगवान् से बातें करती है और कहती है कि भगवान्‍ साक्षात् आकर उनसे बातें करते हैं। घरवाले उनकी इस अजीब-सी बीमारी से परेशान है।

ये तो केवल कुछ उदाहरण हैं जो हमें हमारे आस-पास खोजने से मिल जाएँगे। समाज में इस तरह के व्यवहार को पागलपन कह कर बहुत मजाक बनाया जाता है। यह दरअसल सिजोफ्रेनिया नामक एक मानसिक बीमारी है जिसका इलाज न तो मनोचिकित्सक के पास है और न ही फैमली कोर्ट के जज के पास।

सिजोफ्रेनिया क्या है? सिजोफ्रेनिया या मनोविद्लता एक गंभीर मानसिक रोग है जिसे सामान्य भाषा में पागलपन भी कहा जाता है। इस रोग में रोगी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व disturb या क्षुब्ध हो जाता है। व्यक्ति वास्तविकता से दूर अपनी काल्पनिक दुनिया में खोया रहता है। इस दुनिया में तरह-तरह के व्यामोह (delusions ), विभ्रम (hallucinations ) होते हैं।

460-370 बी. सी. में एक मशहूर ग्रीक चिकित्सक हिपोक्रेट्स हुए थे। उनके अनुसार "ये रोग शरीर के द्रव्यों (body humors) में कुछ कारणों से उत्पन्न असंतुलन से होता है।“

न्यू साऊथ वेल्स में हुए एक शोध के अनुसार मस्तिष्क विकास के दौरान कोशिकाओं का एक स्थान पर अटक जाना ही सिजोफ्रेनिया का कारण होता है। जिन लोगों में ये रोग देखा गया उनके मस्तिष्क के बाहरी हिस्से (कार्टेक्स) की और जाने वाली कोशिकाए उलझी हुई पाई गईं। मस्तिष्क का यही हिस्सा "सोचने, समझने और संज्ञान लेने कि क्षमताओं के लिए जिम्मेदार होता है।“

लक्षण क्या है? ये एक पर्सनॉलिटी डिसार्डर है इस रोग में आदमी ठीक से सोच भी नहीं पाता। कुछ भी करने कि पहल उसमें समाप्त हो जाती है। चेहरा भाव शून्य हो जाता है और रोगी बेसिर-पैर की बातें करता है। उसका पूरा नजरिया ही गड़बड़ हो जाता है। जो उसके आसपास, उसके परिवेश में उपस्थित है ही नही, रोगी वो चीजे भी देख लेता है। उसे आवाज़ें सुनाई देती है; स्पर्श, गंध, स्वाद भी महसूस कर लेता है लेकिन यह सब वो अपनी कल्पना में करता है।

कौन बनते है इसके शिकार? ये मानसिक बीमारी है जो किसी को भी कभी भी हो सकती है। कभी जैविक कारण होते है कभी आनुवंशिक। ग्रीक दार्शनिक सुकरात को भी इस बीमारी ने घेरा था। अकेलापन, कुंठा और निराशा, असुरक्षा, भय इस रोग को आमन्त्रण देते हैं।

सीजोफ्रेनिया के रोगी कभी खुद को महान अविष्कारक, महान चित्रकार या कहीं का राजा समझते है या कोई धर्म गुरु जो संसार का उध्दार करने आया है। या जब उसे विभ्रम होते है तो रोगी ईश्वर से बात करता है और उसके अनुसार ईश्वर या दिवंगत लोग भी उससे आकर बात करते हैं। रोगी बहुत रुखा, कुंठित या नीरस हो जाता है। उसकी इच्छा शक्ति में कमी आती है और बाहरी दुनिया से उसका संपर्क समाप्त हो जाता है।

समाधान क्या है? सिजोफ्रेनियाँ के मरीजों का इलाज तो मनोचिकित्सक ही कर सकते है। इसलिए ऐसे रोगियों को परिवार परामर्श केन्द्रों या फेमली कोर्ट में ले जाने कि भूल न कि जाए। मनोचिकित्सक दवाओं के साथ -साथ "सूझ चिकित्सा" (insight therapy ), सामाजिक चिकित्सा (social therapy ) एवं पारिवारिक चिकित्सा (family therapy ) कि सलाह देते हैं। और अंत में: हमें रोगी का विश्वास जीत कर, उससे आत्मीय सम्बन्ध बनाकर उसकी परेशानी को समझना होता है। उसका यह अजीब व्यवहार किस वजह से है उसकी तह तक जाना होता है।

हम सभी का दायित्व है रोगी कि मानसिक स्थिति को समझे। उसे पागल मान कर हम उसे अपनी जिंदगी से, परिवार से या घर से नहीं निकाल सकते। याद रखिये, हर बीमारी पहले मन के भीतर जन्म लेती है, देह पर तो बहुत बाद में जाकर उजागर होती है।

आपसी प्रेम आपसी विश्वास की कहीं बहुत बाहरी कमी रही होगी तभी दिमाग में असंतुलन हुआ।

मन के किसी खाली कोने कि भरपाई हम सभी जीवन भर करते रहते है। कुछ लोग संतुलित रहते है कुछ असंतुलित हो जाते है। लेकिन हमें उनके रिक्त स्थान को प्रेम से भरना होगा। प्रेम के रिक्तस्थान प्रेम से ही भरे जाते हैं दवाइयों से नहीं।