रिसर्च / पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'
भक्ति ने साग्रह कहा - 'भगवान!'
ज्ञान ने सावधान उत्तर दिया - 'अनुमान!'
निकट ही विश्व-कलाकार धोकादेव भी बैठे थे। उन्होंने परम श्रद्धा से पुलकित मुख बना, अपने गुरुदेव का नाम लेने के पहले आदर के लिए कान ऐंठ, गंभीर स्वर में, दावे से कहा - 'सबमें प्रधान - शैतान!'
भगवान से हैरान मनुष्य ने एक दिन किसी विचित्र मानस के निकट भक्ति, ज्ञान और धोकादेव की उक्त बातें दूर से सुनीं। और, वह नोन-सत्तू बाँधकर शैतान की तलाश में निकल पड़ा।
राह में सोचने लगा - 'धोकादेव भी कोई मामूली हस्ती नहीं है, वह विश्व-कलाकार हैं। जरूर ही उन्होंने शैतान से साक्षात्कार किया होगा।'
'हे शैतान देव!' मनुष्य कामना करने लगा - 'कहाँ मिलोगे तुम? मैं तुम्हारी महिमा अपनी आँखों देखना चाहता हूँ। तुम्हारे प्रसाद से महान बनना चाहता हूँ।'
नाम लेते ही शैतान मनुष्य के सामने हाजिर...
मनुष्य ने साश्चर्य देखा, शैतान गोरे रंग का था।
उसने सोचा - 'जरा नादानों की मूर्खता तो देखो! लोग इन्हें काला कहते हैं!' मनुष्य ने देखा - शैतान हवा गाड़ी में, एक अल्प-वसना सुंदरी के साथ, सुर-मत्त बैठा था! सुराहियों और प्यालों से हवागाड़ी महक और चमक-दमक रही थी। शैतान ने मंद मुस्कुराकर इंसान से दरियाफ्त किया कि उसने उसे क्यों याद किया है?
'आपसे मैं अपरिचित हूँ।' मनुष्य ने श्रद्धा से उत्तर दिया - 'आपकी महिमा तो सुन चुका हूँ, लेकिन एक बार अपनी आँखों देखकर विश्वास करना चाहता हूँ। क्योंकि यह युग प्रत्यक्ष और प्रमाण का है।'
सड़क से तनिक दूर पर जो पगडंडी थी, उसी पर एक सुंदर बालक बाँसुरी बजाता जा रहा था। पगडंडी और बालक को दिखाकर शैतान ने मनुष्य से कहा -
'गला घोटकर उस बालक को पहले मार डालो! तभी मेरी महिमा देख सकोगे।' 'क्यों?' मनुष्य कुछ समझ न सका।
विश्वास की राह में 'क्यों' की गाड़ी न अड़ाओ! यदि मेरी महिमा देखना है, तो... पहले उस बालक का बलिदान करो! मैं आसमान को जमीन पर उतार सकता हूँ। सोने की बरसाती झड़ी लगा सकता हूँ। इस नन्हे-से संसार को अपने किसी भी भक्त की मुट्ठी में कर सकता हूँ। देखो, बालक बाँसुरी बजाता हुआ, अब तो दूर चला गया - मुझे देर हो रही है।'
उत्सुक मनुष्य सुंदर बालक की ओर झपटा, उसका खून करने के लिए!
शैतान और बाँसुरीवाले बालक के बीच में जो पेड़ों का एक झुरमुट था, वहीं इंसान को भगवान, बिना बुलाए, बे-तलाश मिले।
'कहाँ सनके जाते हो?'
'बाँसुरीवाले का गला टीपने!'
'शैतान की इच्छा से - क्यों?'
'जबान सँभालो! वह शैतान नहीं, संसार का महासम्राट है। शहंशाह के राज में विद्रोही? तू कौन है? हट! मैं इस समय राजसेवा में तत्पर हूँ।'
'सावधान! नादान इंसान! पछताएगा शैतान के चक्कर में पड़कर। संसार का सम्राट वह नहीं, मैं हूँ - भगवान!'
'तू सोने की झड़ी लगा सकता है?'
'सोने की झड़ी से पानी की बरसात विशेष जीवन देती है। सोने की चंग पर चढ़कर लोग नरक जाते हैं, इसीलिये उसे मैंने लोगों की आँखों से दूर, पहाड़ और पृथ्वी की छाती में छिपा दिया है।'
'हिः! गप्पी! अच्छा, स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार सकता है तू?'
'मैं न तो आसमान को जमीन पर उतारता हूँ, और न पृथ्वी को पाताल पर। किसी को पद-भ्रष्ट करना शैतान का काम है।'
'चल! जिसमें चमत्कार नहीं, उसे भगवान नहीं मानता। मैं चमत्कार देखूँगा। हट सामने से!'
भगवान को - बात मानिए - ठुकराकर मनुष्य शैतान के इशारे से हत्या के लिए दौड़ पड़ा।
सुंदर बालक की सुरीली बाँसुरी एकाएक बंद हो गई! हवागाड़ी वाले शैतान के स्फटिक-पात्र की मदिरा का रंग श्वेत से रक्त-सुवर्ण हो गया।
हत्या करते ही मनुष्य की पीठ पर शैतान का हाथ थपक उठा! वह जरा भी न डरा। स्वार्थ के लिए खून करने से उसका दिल ठंडा, सख्त और मजबूत हो गया था। 'मुर्दे के ठीक नीचे गहरा खोदो।' शैतान ने परम प्रसन्न हो मनुष्य से कहा - 'इस खोदाई में तुम्हें सोने की खान मिलेगी। इस खान की मदद से तुम अमीर बनो, फिर जुआ, शराब, सुंदरियाँ और हत्या-विनाश दिन-दहाड़े करो! इन्हीं तीव्र सत्कर्मों से मैं संतुष्ट रहता हूँ। मेरे राज में, मेरी कृपा से, तुम्हारा कोई बाल भी बाँका न कर सकेगा!' 'आप महान हैं शैतान!' कृतज्ञ मनुष्य ने कहा।
'तू भी मेरा भाई है, मनुष्य!'
मुस्कुराकर शैतान ने इंसान को जवाब दिया, और उस अर्द्धनग्ना सुंदरी को चूमता, बालक के शव को हवागाड़ी से कुचलता वह चलता बना!