रिसर्च / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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एट्लान्टा के माइकेल मिलर ने जीवशास्त्र की पाठ्यपुस्तक में चार्ल्स डार्विन के ‘प्रजातियों की उत्त्पत्ति’ सिद्धान्त के बारे में पढ़ रखा था, पर ‘न्यूयॉर्क हेराल्ड’ में छपी एक छोटी सी खबर ने बंदरों में उस की दिलचस्पी को एकाएक इतना बढ़ा दिया कि उसने आजीवन कुँवारे रहने और काले मुंह के बंदरों पर मौलिक शोध करने का इरादा बना लिया. खबर महज़ इतनी सी थी कि हिंदुस्तान के एक शहर तिरुचरापल्ली में एक मंदिर में बिजली के खम्भे पर करेंट आने से जो काले मुंह का बूढ़ा-बन्दर मरा, उसकी शवयात्रा, पूरे शहर ने बड़ी धूमधाम से, गाजे-बाजे के साथ निकाली थी!

माइकेल ने अपनी पक्की नौकरी छोड़ दी और फ़ौरन हिन्दुस्तान का टिकट कटाया. पहले तो उसके दोस्तों और घर-वालों के कभी-कभार खत या फोन पहुँच भी जाते थे, पर जब से उसने जंगलों का रुख किया, उनकी संख्या कमतर होती गई.

वह आसाम, केरल, तमिलनाडु, मेघालय, सिक्किम और कर्णाटक के घने जंगलों में अकेला, अपनी दूरबीन और नोट-बुकों के साथ कई-कई महीने रहा; वृन्दावन, गोकुल, मथुरा, जयपुर, काशी, इलाहाबाद; बीसियों भारतीय शहर उसने सिर्फ काले मुंह के बंदरों को देखते गुज़ारे, उसे ‘कोक’, ‘बर्गर’ और ‘हॉट डॉग’ की बजाय कच्चे फलों और जंगली कंदमूलों का स्वाद ज्यादा भाने लगा, तम्बू लगा कर उसने कई रातें और कई दिन बंदरों के झुंडों का पीछा करते निकाल दिए, वह बंदरों की ‘बोली’, उनके संकेत, उनके हावभाव, उनकी जिस्मानी-भाषा सब बिलकुल ठीक-ठीक पढ़ सकता था, उसने पेड़ों पर फुर्ती से चढ़ने, मचान बना कर रहने और डाली पर एक हाथ से लटक कर दूसरे हाथ से कैमरा थामे रखने का अभ्यास कर लिया...यहाँ तक कि बंदरों की तस्वीरें और फ़िल्में खींचने के लिए वह बिना नीचे गिरे एक डाली से दूसरी पर छोटी-छोटी छलांगें भी लगा लेता था.

इस दौरान पता नहीं कैसे उसका गोरा चिट्टा लाल मुंह धीरे-धीरे गहरा भूरा पड़ा, फिर काली झाइयां सी पूरे शरीर पर दिखलाई देने लगीं, जिस्म के बाल एकाएक काले और घने होने लगे, दाँत तीखे, नाखून बड़े, भोंहें गहरी, आँखें छोटी और नाक चपटी होने लगी...कद तेज़ी से घटने लगा....अंततः माइकेल की कमर और एकदम स्याह पड़ चुके कूल्हों के बीच बालों से भरी एक लंबी पूंछ भी उग आई- जिससे वह बड़े आराम से मक्खियाँ उड़ा सकता था. बंदरों के झुण्ड में उकडूं-मुकडूं बैठे बैठे माइकेल कोअब तो उसकी माँ तक नहीं पहचान सकती...

पर सुना यह है, हाल ही में डार्विन को चुनौती देते हुए मिशिगन विश्वविद्यालय में माइकेल मिलर के ही एक प्रतिभावान सहपाठी ने ‘आदमी से बन्दर बनने’ के विषय पर नई-शोध परियोजना का रजिस्ट्रेशन करवाया है!